कुछ चीज़ें हटा दी जाएं तो ये फिल्म एक प्यारी-सी लव स्टोरी है.
‘सूर्यवंशी’, ‘अन्नाते’ और ‘इटर्नल्स’ जैसी बड़ी फिल्मों के बीच एक छोटी सी, प्यारी सी फिल्म रिलीज़ हुई है. नाम है ‘मीनाक्षी सुंदरेश्वर’. छोटी इसलिए क्योंकि यहां बूम बैम वाला एक्शन नहीं है. बल्कि, लाइफ की छोटी-छोटी नज़रअंदाज़ कर दी जाने वाली चीज़ों को यहां अच्छे से दिखाया है. करण जौहर के धर्माटिक के तले बनी इस फिल्म को डायरेक्ट किया है विवेक सोनी ने. लीड में हैं अभिमन्यु दसानी और सान्या मल्होत्रा. नेटफ्लिक्स और धर्मा की पार्टनरशिप इस बार असरदार साबित हुई या नहीं, यही जानने के लिए हमने ये फिल्म देख डाली. क्या अच्छा था और क्या नहीं, अब उसी पर बात करेंगे.
# इस लव स्टोरी में कुछ नया है?
मीनाक्षी और सुंदरेश्वर. दोनों एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत. मीनाक्षी मुस्कुराती कम, हंसती ज़्यादा है. सुंदर हंसता नहीं, बस मुस्कुराता है. एक रजनीकांत की बड़ी वाली फैन है. तो दूसरे को फिल्मों के नाम पर नींद आती है. एक को किताबें पसंद हैं. तो दूसरे ने किताबें बस बुक क्रिकेट खेलने के लिए इस्तेमाल की हैं. ऐसे दो अपोज़िट पसंद वाले लोग साथ आते हैं. दोनों की अरेंज मैरिज होती है. एक दूसरे को जानने-समझने का मौका तलाश ही रहे होते हैं कि पेच फंस जाता है. सुंदर की नौकरी लग जाती है. और उसे मीनाक्षी को मदुरई छोड़कर बेंगलुरू जाना पड़ता है.

'लाइफ इज़ अ रेस' मानने वाला बॉस.
इसमें क्या दिक्कत है! बीवी को भी साथ ले जा ही सकता है. जी नहीं, सुंदर ने जहां जॉब जॉइन की है, वहां सिर्फ सिंगल लोगों को ही प्रेफ्रेंस दी जाती है. क्योंकि शादीशुदा या रिलेशनशिप वाले लोग अपने काम पर पूरी तरह फोकस नहीं कर सकते, ऐसा वहां के बॉस का मानना है. वो बॉस जो लिटरली अपने शब्द गिनकर बोलता है. अपने एम्प्लॉईज़ के सामने बैठकर बाल कटवाता है. उन्हें ‘रैट रेस’ के लिए प्रोत्साहन देता है. बॉस की ऐसी हरकतों ने फिल्म को उसका ह्यूमर अपील बढ़ाने में भी मदद की है. और सिर्फ बॉस ही नहीं, फिल्म में ऐसे कई किरदार दिखेंगे, जिनकी बातों या हरकतों पर स्माइल आ ही जाएगी. जैसे सुंदर का भतीजा. जो घर के किसी बड़े का टिपिकल डायलॉग बोलता है. और फिर अगले सीन में वो बड़ा वही लाइन दोहरा रहा होता है. पूरी फिल्म में आपको ऐसे हल्के-फुल्के ह्यूमर के पॉइंट्स मिलते जाएंगे.