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शाहरुख को नेशनल अवॉर्ड मिलने पर बोले मनोज बाजपेयी, "अवॉर्ड्स सिर्फ सजावटी सामान बनकर रह गए हैं"

मनोज बाजपेयी का कहना है कि सभी अवॉर्ड्स की तरह नेशनल अवॉर्ड की निष्पक्षता भी अब संदेह के घेरे में आ चुकी है.

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चार बार नेशनल फिल्म अवॉर्ड जीत चुके मनोज बाजपेयी ने अपने लेटेस्ट इंटरव्यू में शाहरुख खान के राष्ट्रीय पुरस्कार के बारे में बात की.

इस साल Shahrukh Khan को Jawan के लिए Best Actor का National Film Award मिला. ये बात इंडस्ट्री में कई लोगों के गले नहीं उतरी. कुछ लोग बस मन मसोसकर रह गए, तो कुछ ने फ्रंटफुट पर आकर कहा कि शाहरुख ये अवॉर्ड डिज़र्व नहीं करते. अब इस पर Manoj Bajpayee का बयान आया है. दरअसल जब ‘जवान’ के लिए शाहरुख को ये पुरस्कार मिला, तब ये चर्चा भी चली कि ये अवॉर्ड मनोज बाजपेयी को मिलना चाहिए था. साल 2023 की फिल्म Sirf Ek Bandaa Kaafi Hai में उनका काम काफी सराहा गया था. मगर इसी साल आई ‘जवान’ के लिए जब शाहरुख को अवॉर्ड मिला, तो कुछ दर्शकों ने दोनों के काम की तुलना की. जिसमें मनोज का पलड़ा भारी बताया गया. सोशल मीडिया पर भी तर्क-वितर्क होते रहे. 

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मनोज की नई फिल्म ‘जुगनुमा’ 12 सितंबर को थिएटर्स में लग चुकी है. इसी फिल्म के प्रमोशन के सिलसिले में मनोज ने इंडिया टुडे से बातचीत की. इस इंटरव्यू में मनोज से पूछा कि क्या वो मानते हैं कि इस साल बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड उन्हें मिलना चाहिए था? इस पर मनोज ने कहा,

"अब ये चर्चा निरर्थक है. क्योंकि जो होना था, वो हो चुका. जहां तक ‘सिर्फ एक बंदा ही काफ़ी है’ की बात है, तो मेरी फिल्मोग्रफ़ी में वो बेहद ख़ास फिल्म है. ‘जोरम’ की तरह ही मेरी ये फिल्म भी बहुत अच्छी थी. मेरी फिल्मों में ये दोनों हमेशा टॉप पर रहेंगी."

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अपनी परफॉरमेंस की तुलना शाहरुख खान से किए जाने पर मनोज बाजपेयी ने कहा,

“मैं इन सब बातों पर चर्चा करता ही नहीं हूं. मेरे हिसाब से ये हारे हुए लोगों का काम है. जिसे कहते हैं लूज़र्स कन्वर्सेशन. अब ये बात अतीत बन चुका है, और उस पर बात न करना ही बेहतर है.”

फिल्म अवॉर्ड्स का झुकाव कमर्शियल फिल्मों की तरफ़ हो गया है. उनकी प्रासंगिकता पर भी लगातार सवाल उठ रहे हैं. इस बारे में मनोज ने कहा,

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“सिर्फ राष्ट्रीय पुरस्कार नहीं, बल्कि सभी अवॉर्ड्स की निष्पक्षता संदेहास्पद हो चुकी है. अवॉर्ड देने वालों को गंभीरता से सोचना चाहिए कि वो किस ढंग से ऑपरेट कर रहे हैं. ये सिर्फ मेरे सम्मान का विषय नहीं है. मैं जब कोई फिल्म चुनता हूं, तो अपने मान-सम्मान का पूरा ख़याल रखता हूं. मेरे भीतर जो एक्टर है, उसके प्रति मैं बहुत ज़िम्मेदार हूं. मगर अवॉर्ड्स किस बिनाह पर दिए जाने चाहिए, ये सोचना मेरा काम नहीं है. ये तो अवॉर्ड देने वाले ऑर्गनाइज़ेशंस को करना चाहिए. अगर उनके चुनाव से कोई व्यक्ति अपमानित महसूस कर रहा है, तो उन्हें सोचना चाहिए.”

मनोज ने ये भी कहा कि वो अवॉर्ड शोज़ के कॉन्सेप्ट से ही सहमत नहीं हैं. अपनी बात को विस्तार से समझाते हुए उन्होंने कहा,

“अव्वल तो मैं अवॉर्ड शोज़ के आइडिया को ही सही नहीं मानता. मैं तो आयोजकों के आग्रह का मान रखने के लिए चला जाता हूं. मगर अवॉर्ड्स को अब सीरियसली नहीं लेता. ये अब सिर्फ घर का सजावटी सामान बन कर रह गए हैं. आप हर रोज़ इन अवॉर्ड्स के सामने खड़े होकर ये नहीं कहने वाले हैं कि, वाह मुझे तो अवॉर्ड मिल गया.”

नेशनल अवॉर्ड्स की बात करें तो ये शाहरुख खान का पहला नेशनल फिल्म अवॉर्ड है. जबकि मनोज बाजपेयी चार बार बेस्ट एक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके हैं. ये अवॉर्ड्स उन्हें ‘सत्या’ (1998) ‘पिंजर’ (2003) ‘अलीगढ़’ (2015) और ‘भोंसले’ (2018) के लिए दिए गए थे. काम की बात करें, तो उनकी दो फिल्में हाल ही में रिलीज़ हुई हैं. पहली है 'इंस्पेक्टर ज़ेंडे' जो कि 5 सितंबर को नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई थी. जिसे काफी पसंद किया गया. और अब उनकी 'जुगनुमा' सिनेमाघरों में लगी हुई है. आने वाले समय में वो 'दी फैमिली मैन 3' में नज़र आएंगे.

वीडियो: जब Salman Khan ने अपना जीता हुआ अवॉर्ड Manoj Bajpayee को दे दिया

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