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इंस्पेक्टर झेंडे - मूवी रिव्यू

'इंस्पेक्टर झेंडे' में मनोज बाजपेयी ने पुलिस ऑफिसर मधुकर झेंडे का रोल किया, ये वो शख्स थे जिन्होंने चार्ल्स शोभराज को पकड़ा था. कैसी है उन पर बनी ये फिल्म, जानने के लिए रिव्यू पढ़िए.

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ये फिल्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई है.

Inspector Zende

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Director: Chinmay Mandlekar

Cast: Manoj Bajpayee, Jim Sarbh, Girija Oak

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Rating: 3.5 Stars

Streaming on: Netflix

इसी साल जनवरी में नेटफ्लिक्स पर एक सीरीज़ रिलीज़ हुई, Black Warrant. ये तिहाड़ जेल की कहानी थी जिसे जेलर सुनील गुप्ता के नज़रिए से दिखाया गया. उस जेल में उन दिनों कई कुख्यात अपराधी थे. उनमें से एक था Bikini Killer Charles Sobhraj. चार्ल्स को लेकर कई कहानियां चलती हैं. कोई कहता है कि वो कम शब्दों वाला आदमी रहा. अपनी आंखों में एक तिलिस्म रखता था. उसके चार्म से बच पाना मुश्किल था. तो कोई बताकर गया कि उसके शरीर से बदबू आती थी. खैर उसका नाम एक था, लेकिन रूप अनेक. सीरीज़ के अंत में वो पूरे तिहाड़ जेल को बेहोश कर के फरार हो जाता है.

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अब Manoj Bajpayee की नई फिल्म Inspector Zende नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई है. ये फिल्म उसी रात से शुरू होती है जब चार्ल्स फरार हो जाता है. हालांकि इस यूनिवर्स में उसका नाम कार्ल भोजराज है. मेकर्स ने लीगल पचड़े से बचने के लिए ऐसा किया होगा. इस फिल्म में Jim Sarbh, कार्ल भोजराज बने हैं. वो अपने किरदार के इर्द-गिर्द एक मिस्ट्री बनाकर रखते हैं. आप उस किरदार को देखेंगे और फिर भी पूरा आइडिया नहीं लगा सकेंगे. एक साफ तस्वीर नहीं बनेगी. यही लगता रहेगा कि ये आदमी जैसा दिख रहा है, वैसा नहीं है. बाहरी परत के पार कुछ और भी है. लेकिन क्या, उसका जवाब आपको नहीं मिलता. जिम ने ऐसा काम किया है. उन्होंने अपने इमोशन्स को बहुत कंजूसी से खर्च किया है. आपको समझ नहीं आता कि इस आदमी को अब गुस्सा आ रहा है, या ये दुखी है, या फिर खुश है. जिम जितने समय भी स्क्रीन पर रहते हैं, उस दौरान आपका दिमाग दौड़ता ही रहता है, कि अब ये आदमी क्या करने वाला है.

jim sarbh
एक ही साल में नेटफ्लिक्स पर दो प्रोजेक्ट रिलीज़ हुए जिनमें चार्ल्स शोभराज एक अहम किरदार था. 

इस रिव्यू की शुरुआत हमने जिम के किरदार कार्ल से इसलिए की क्योंकि वही हमारे हीरो को उसका मकसद देता है. कार्ल भाग चुका है. इंटरपोल का मोस्ट वांटेड क्रिमिनल फरार है. ऐसे में मुंबई पुलिस को याद आता है कि उनके इंस्पेक्टर मधुकर झेंडे ने साल 1971 में कार्ल को पकड़ा था. उनको एक टीम दी जाती है. उनका सीक्रेट मिशन है कि किसी भी तरह कार्ल को पकड़ो. वो कार्ल को पकड़ पाते हैं या नहीं, इस दौरान क्या-कुछ घटता है, यही फिल्म की कहानी है.

मेकर्स शुरुआत में ही फिल्म की टोन से साफ कर देते हैं कि ‘इंस्पेक्टर झेंडे’ कोई थ्रिलर फिल्म नहीं है. ये फन, क्वर्की किस्म की फिल्म है. लेकिन उसका ये मतलब नहीं कि ये सीरियस फिल्म नहीं है. फन, ह्यूमर की आड़ में ये अपने किरदारों को उनकी इंसानियत भी बख्शती है. मुझे एक बड़ी फिल्म याद आती है जो बहुत फन फिल्म थी, लेकिन उसका कोई इमोशनल इम्पैक्ट महसूस नहीं हुआ. साल 2017 में कॉलेज के दिनों में Thor: Ragnarok देखी थी. फिल्म में थोर की पूरी दुनिया बर्बाद हो जाती है. उसके करीबी लोग मारे जाते हैं. पूरा प्लेनेट खत्म हो जाता है. इतना कुछ होने के बावजूद थोर पूरी फिल्म में बस जोक मारता रहता है. फिल्म उस फन वाले ज़ोन से बाहर नहीं निकल पाती. खैर हम थिएटर से बाहर निकले. पहली फीलिंग थी कि मज़ा आया. लेकिन शाम तक दिमाग में सवाल उमड़ने लगे, कि थोर की पूरी दुनिया लुट रही थी तो भाई तुम हंसी-ठिठोली कैसे कर पा रहे थे. वहां फिल्म की टोन और किरदार की मनोदशा आपस में मिक्स हो गए. दोनों में फर्क नहीं रहा.

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ये एक फन फिल्म है, लेकिन एक नॉन-सीरियस फिल्म नहीं है.  

‘इंस्पेक्टर झेंडे’ ऐसा नहीं करती है. ये भले ही फन फिल्म है. मगर आप फिल्म के किरदारों का मानवीय पक्ष भी देखते हैं. एक ऑफिसर जेकब है जो दांत छिपाकर हंसता है. दूसरा साथी है पाटील जो मिशन पर आगे बढ़े जा रहा है, लेकिन कार्ल को अकेला पाकर घबरा जाता है. मुट्ठी भींचने लगता है. माथे से पसीना टपकने लगता है. अपने दो बच्चों का ख्याल उसके कदमों को जकड़ लेता है. फिर एक सीन है जहां झेंडे के घर पर सभी पुलिसवाले जमा हुए हैं. उसकी पत्नी सभी के लिए शर्बत लेकर आती है. ट्रे में ज़्यादातर कांच के ग्लास हैं और एक स्टील का ग्लास है. झेंडे हाथ बढ़ाकर कांच का ग्लास उठाने लगता है, लेकिन पत्नी अचानक से ट्रे मोड़ देती है. इशारा करती है कि तुम स्टील वाला ग्लास उठाओ, कांच वाला मेहमानों के लिए है. ये कुछ सेकंड्स का सीन था. एक नज़र में शायद दिमाग में कैद भी ना हो. लेकिन ऐसी ही छोटी-छोटी डिटेल्स आपके किरदारों को वास्तविक बनाती हैं.

इंस्पेक्टर मधुकर झेंडे के रोल में मनोज बाजपेयी ने बेहतरीन काम किया है. उनका किरदार कुछ मौकों पर आपको ‘द फैमिली मैन’ की याद भी दिलाता है. उन्होंने पूरी तरह कमिट होकर काम किया है. वो जब झेंडे हैं, तो आप उनके चेहरे और बॉडी लैंग्वेज में मनोज बाजपेयी को नहीं पाते. आप उस किरदार को पसंद करते हैं. उसे जीतते हुए देखना चाहते हैं. आप उस किरदार के लिए ऐसा महसूस कर पाते हैं, इसमें बड़ा क्रेडिट मनोज बाजपेयी का है. ‘इंस्पेक्टर झेंडे’ ने रिस्क लिया. कहानी को टिपिकल ढंग से कहने से बचे, कुछ मौकों पर चूके भी, लेकिन उनके बावजूद एक बढ़िया फिल्म बनाकर निकले.

 

वीडियो: Neflix की वेब सीरीज़ Black Warrant की स्टार कास्ट ने जेल की शूटिंग, चार्ल्स शोभराज के रोल पर क्या बताया?

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