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वाह! इंडियन आर्मी ने पहली बार देसी कुत्ते को शामिल किया है

सेना ने विदेशी कुत्तों के साथ पहली बार किसी देसी कुत्ते को आज़माने की ठानी है.

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इंडियन आर्मी के पास इन तीन नस्लों के कुत्ते पाए जाते हैं.
लगता है बाबा रामदेव की नज़र मार्केट के बाद अब सेना पर भी पड़ गई है. तभी वहां भी स्वदेशी की सुगबुगाहट होने लगी है. जोक को भूल जाइए और ख़बर सुनिए कि इंडियन आर्मी अब अपने डॉग स्क्वॉड में देसी कुत्ते को शामिल करने जा रही है. ऐसा पहली बार हो रहा है. अब तक सेना में सिर्फ विदेशी कुत्तों का इस्तेमाल होता आया है. जिस देसी प्रजाति का चयन हुआ है, वो है मुधोल हाउंड. मेरठ में सेना के रिमाउंट एंड वेटरनेरी कोर (RVC) सेंटर ने देसी नस्ल के छह मुधोल शिकारी कुत्तों की ट्रेनिंग को तकरीबन पूरा कर लिया है. उन्हें इस साल के आखिर तक सेना में शामिल कर लिया जाएगा. इन शिकारी कुत्तों की पहली तैनाती जम्मू और कश्मीर में किए जाने की संभावना है.

कैसे होते हैं मुधोल हाउंड?

मुधोल हाउंड मजबूत वंशावली वाले भारतीय नस्ल के कुत्ते हैं. अपनी छरहरी काया की वजह से इनमें ग़ज़ब की रफ़्तार और फुर्ती पाई जाती है. ये गार्ड के तौर पर अच्छे साबित हो सकते हैं. भारतीय सेना इनकी बॉर्डर पर तैनाती में दिलचस्पी दिखा रही है. ये दक्षिण भारत में आमतौर पर पाई जाने वाली प्रजाति है. शिकार के शौक़ीन लोगों के यहां अक्सर ये कुत्ता पाया जाता है. इन कुत्तों पर 2005 में भारत सरकार एक पांच रुपए का डाक टिकट तक निकाल चुकी है. ट्रेनिंग के लिए डॉग्स के चयन में मिजाज़ और क्षमता पर विचार किया जाता है. इसलिए यह कहना जल्दबाजी होगा कि भारतीय नस्ल के और कुत्तों को भविष्य में सेना में शामिल किया जाएगा या नहीं.
मुधोल हाउंड, सेना के डॉग स्क्वैड में सबसे छरहरे कुत्ते होंगे.
मुधोल हाउंड, सेना के डॉग स्क्वॉड में सबसे छरहरे कुत्ते होंगे.

इन छह कुत्तों को पिछले साल कर्नाटक से मेरठ ट्रेनिंग के लिए भेजा गया था. तबसे ये कड़ी ट्रेनिंग ले रहे हैं. अब तक सेना जिन विदेशी कुत्तों की मदद लेती आई है वो हैं जर्मन शेफर्ड, लैब्राडोर और ग्रेट स्विस माउंटेन डॉग्स. आइए ज़रा इन पर भी एक नज़र डाली जाए.


जर्मन शेफर्ड

जैसा कि इनके नाम से ही ज़ाहिर है कि ये जर्मनी की नस्ल है. इन्हें इनकी फुर्ती और ताकत के लिए तो सराहा जाता ही है, साथ ही इनकी वफादारी और जल्दी से सीख लेने की क्षमता भी काबिलेज़िक्र है. ज़्यादातर मुल्कों की पुलिस और आर्मी इनकी सेवाएं लेती हैं. इनकी खासियत ये है कि ये चार-पांच बार किसी चीज़ को सिखाते ही उसे सीख जाते हैं. ये अपने परिवार के लिए बहुत प्रोटेक्टिव होते हैं और अजनबियों से दोस्ती नहीं करते. किसी ज़माने में इन्हें चरवाहों के साथ इस्तेमाल किया जाता था, जहां ये जंगली जानवरों से पशुओं की रक्षा करते थे. इसलिए इनके नाम में ही 'शेफर्ड' जुड़ गया.
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पुलिस की सेवा में तैनात जर्मन शेफर्ड.



लैब्राडोर

अमेरिका, इंग्लैंड और कनाडा में सबसे लोकप्रिय प्रजाति है ये. ये तेज़ दिमाग के लिए सराहे जाते हैं. इन्हें अक्सर अंधों की सहायता करने के लिए ट्रेन किया जाता है या फिर क्राइम डिटेक्शन एजेंसीज इनका इस्तेमाल जासूसी कामों के लिए करती हैं. इसके अलावा इन्हें डॉग शोज़ में भी भेजा जाता है. शिकार करते समय भी ये प्रजाति बड़ी उपयोगी साबित होती है. ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्तियों के लिए मददगार के तौर पर भी इनकी सेवाएं ली जाती हैं.
लैब्राडोर की सूंघने की शक्ति अद्भुत होती है.
लैब्राडोर की सूंघने की शक्ति अद्भुत होती है.



ग्रेट स्विस माउंटेन डॉग्स

स्विट्ज़रलैंड के पहाड़ी क्षेत्र अल्पाइन में पाई जाने वाली ये प्रजाति अपनी जिस्मानी ताकत के लिए मशहूर है. पहाड़ों इलाकों में तो ये बहुत ही मददगार साबित होते हैं. अपनी काया से बिल्कुल उलट ये स्वभाव से फ्रेंडली होते हैं. जिस भी परिवार में रहते हैं, उससे भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं. ये हमेशा अलर्ट रहने के आदी होते हैं. इसलिए इनसे ज़्यादातर पहरे का काम लिया जाता है. ये अपने आसपास किसी बदलाव को बहुत जल्दी भांप लेते हैं और तत्काल सबको खबरदार कर देते हैं.
हमेशा अलर्ट रहते हैं ये.
हमेशा अलर्ट रहते हैं ये.

भारतीय सेना में अब इनके साथ जुड़ गए हैं मुधोल हाउंड.


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