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इललीगल- जस्टिस आउट ऑफ़ ऑर्डर: वेब सीरीज़ रिव्यू

कहानी का छोटे से छोटा किरदार भी इतनी ख़ूबसूरती से गढ़ा गया है कि बेवजह नहीं लगता.

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इल्लिगल को सिर्फ़ कोर्ट रूम ड्रामा कह देना ग़लत होगा. ये कोर्ट रूम ड्रामा तो है ही, साथ ही और भी बहुत कुछ है.
आज से 12 साल पहले की बात है. यूपी के एक गांव की लड़की शबनम ने अपने परिवार के सात लोगों को क़त्ल कर दिया था. तब शबनम ख़ुद पेट से थी. आज से कुछ महीने पहले जब हम इस स्टोरी पर रिसर्च कर रहे थे, तो महसूस हुआ कि ये कहानी कुछ अलग है. लगा कि ये एक बहुत ही अच्छी स्क्रिप्ट हो सकती है.

और अब ‘वूट’ ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म पर ‘इललीगल’ रिलीज़ हो गई. जिसमें शबनम की ये स्टोरी भी एक सब-प्लॉट है. हालांकि डाइरेक्टर साहिर राजा की 10 एपिसोड लम्बी ‘इललीगल’ का मेन प्लॉट है क़ानून, कोर्ट और वकील.
दो शेड्स. 'इल्लिगल' के दो पोस्टर्स. दो शेड्स. 'इल्लिगल' के दो पोस्टर्स.

# आइए जानते हैं कि इस सीरीज की कहानी क्या है-
जनार्दन जेटली को अपनी लॉ-फ़र्म के लिए एक ऑनेस्ट और बोल्ड लॉयर की ज़रूरत है. जो निहारिका सिंह के रूप में पूरी होती है. निहारिका इस नई जॉब के लिए बेंगलुरु से दिल्ली शिफ़्ट हो जाती है. दिल्ली आने में पहले वो हिचकिचाती है, क्यूंकि इस शहर से उसका एक पास्ट भी जुड़ा है. उसको पहला केस मेहर सलाम का मिलता है. मेहर सलाम का किरदार दरअसल उसी शबनम से प्रभावित है, जिसकी बात हमने शुरू में की थी.
निहारिका अपने इस केस पर फ़ोकस करने लग जाती है. लेकिन तभी उसे एक दूसरा ‘हाई-प्रोफ़ाइल’ केस दे दिया जाता है. ये केस है जेटली के बेटे (अक्षय जेटली) के दोस्त (नीरज शेखावत) का. जिस पर रेप का आरोप है. अक्षय भी अपने पिता की फ़र्म में एक लॉयर है. और दोस्त का केस होने के नाते नीरज के केस को बहुत पर्सनल तौर पर ले रहा है. जनार्दन भी इस केस को ‘ईगो’ का सवाल बना देता है. क्यूंकि रेप विक्टिम का केस उसका पुराना चेला पुनीत टंडन लड़ रहा है.
निहारिका और अक्षय. रिश्तों के भी रूप बदलते हैं. निहारिका और अक्षय. रिश्तों के भी रूप बदलते हैं.

निहारिका को दोनों केसेज़ की स्टडी के दौरान कई ऐसे पर्सनल और प्रफ़ेशनल शॉक लगते हैं कि उसकी ज़िन्दगी 180 डिग्री टर्न लेने लगती है. और इस सबके दौरान चलते हैं, कई कोर्ट रूम ड्रामे. इन्हीं ‘लीगल’ प्रोसिडिंग्स को टैकल करने के लिए किस हद्द तक ‘इललीगल’ हुआ जाता है, ये ‘इललीगल’ सीरीज़ का मेन प्लॉट है.
# किरदारों का दम-
‘इल्लिगल' की मेन लीड में हैं ‘तुम बिन 2’ फ़ेम नेहा शर्मा. दूसरा दमदार किरदार है ‘गुलाल’ फ़ेम पीयूष मिश्रा का. साथ में हैं अक्षय ओबरॉय और सत्यदीप मिश्रा. इनके अलावा, ‘जो जीता वही सिकंदर’ फ़ेम दीपक तिजोरी, और ‘सेक्रेड गेम्स’ में अपने ट्रांसजेंडर किरदार ‘कुक्कू’ से सुर्ख़ियों में आई कुब्रा सैत भी है. सभी किरदारों ने अपने डायलॉग्स, एक्सप्रेशन और बॉडी लैंग्वेज से कहानी को ख़ूबसूरती से आगे बढ़ाने में हेल्प की है.
कई बार किरदारों का एक कैरेक्टर आर्क होता है, वो स्क्रीन में धीरे-धीरे परिपक्व होते दिखते हैं. और अधिक क्रूर या और अधिक संवेदनशील होते चले जाते हैं. ये कितनी ख़ूबसूरती से दिखाया गया है, यही स्क्रिप्ट की तारीफ़ होती है.
पीयूष मिश्रा. कुछ लोग इस शख़्स के इतने बड़े फ़ैन हैं कि सिर्फ़ इनके चलते कंटेंट कंज़्यूम करने को तैयार हो जाते हैं. पीयूष मिश्रा. कुछ लोग इस शख़्स के इतने बड़े फ़ैन हैं कि सिर्फ़ इनके चलते कंटेंट कंज़्यूम करने को तैयार हो जाते हैं.

और फिर कई बार किरदारों का कैरेक्टर आर्क तो नहीं होता, लेकिन उनका असली चेहरा दर्शकों के सामने धीरे-धीरे आता है. मतलब किरदार पहले ही से क्रूर था, लेकिन उसे दर्शकों के सामने शुरू में अच्छे इंसान के रूप में पेश किया गया. या फिर किरदार सदा से ही एक अच्छा इंसान था लेकिन उसकी एंट्री एक बुरे इंसान के रूप में दिखाई गई. अब ये चीज़ कितनी ख़ूबसूरती से स्क्रीन पर दिखती है, यही एक्टर की तारीफ़ है. और यही दिखता है पीयूष मिश्रा और सत्यदीप मिश्रा की एक्टिंग में.
दीपक तिजोरी को देखकर बुरा लगता है. इसलिए नहीं कि उन्होंने एक्टिंग अच्छी नहीं की, या उन्हें रोल सही नहीं मिला. बल्कि इसलिए कि एक ‘हार’ उनके चेहरे पर साफ़ दिखती है. उसे डिप्रेशन कहना तो सही नहीं होगा, लेकिन ये ज़रूर है कि आप एकबारगी ‘जो जीता…’ वाले दीपक को ज़रूर याद करते हो. आप कह सकते हैं कि शायद उनके किरदार की मांग रही हो, स्पॉइल्ड या डिप्रेस सा दिखना. लेकिन एक अरबपति जो आए दिन सफलता के नए मानक गढ़ रहा है, इतना बेतरतीब नहीं हो सकता, जितना वो स्क्रीन में दिखते हैं. एक दो सीन्स में नहीं, ज़्यादातर.
नेहा शर्मा ने एक इंडिपेंडेट वुमेन, निहारिका का किरदार बढ़िया निभाया है. वो इस सीरीज़ की सूत्रधार भी हैं, और इस रूप में अपने और स्टोरी के बारे में ऐसे टीज़िंग तरीक़े से बात करती हैं कि उत्सुकता बढ़ती चली जाती है.
सीरीज़ में पुनीत टंडन का एक साइड किक है. उसकी मौजूदगी से पुनीत का निर्णय और कहानी का प्लॉट जिस तरह से प्रभावित होता है, ये दर्शकों को झकझोर देने के लिए पर्याप्त है.
निहारिका का रोल नेहा शर्मा ने प्ले किया है. ये भी देख के अच्छा लगा कि 'इललीगल' की लीड एक महिला है. निहारिका का रोल नेहा शर्मा ने प्ले किया है. ये भी देख के अच्छा लगा कि 'इललीगल' की लीड एक महिला है.

कुब्रा सैत ने अपने को ‘सेक्रेड गेम्स’ में अच्छे से प्रूफ़ किया था. ‘इललीगल’ में भी वो अपनी क़ाबिलियत को दोहराती लगती हैं. मेहर सलाम के किरदर में वो आवश्यकता के अनुरूप डरावनी और वल्नरेबल दोनों लगी हैं.
कहानी का छोटे सा छोटे किरदार भी इतनी ख़ूबसूरती से गढ़ा गया है कि बेवजह नहीं लगता. चाहे वो अक्षय की पत्नी देविका का छोटा सा रोल हो या फिर निहारिका की रूममेट सुनीता का. आपकी नज़र में ये सब आते है, ठहरते हैं और याद भी रहते हैं.
# कुछ बातें पॉइंटर्स में-
# इस सीरीज़ की सबसे अच्छी बात इसके डायलॉग्स हैं. किरदार इतने लॉजिकल ढंग से एक दूसरे की बातों की काट करते हैं कि लगता है, काश संसद में बहसें भी ऐसे ही होतीं. और ऐसा सिर्फ़ कोर्ट रूम सीन्स में ही नहीं, कमोबेश हर जगह पर है. ये डायलॉग्स देखिए-
"तुम्हारे पास सुपरपावर्स हैं ना? तुम सच्चाई सूंघ लेती हो?"
"इस सुपरपावर को रिसर्च एंड रिडक्शन कहते हैं."
या,
"अच्छा तो हम 'वो वाला’ गेम खेल रहे हैं. इनोसेंट अनलेस प्रूवन गिल्टी. ये तुम्हारी फ़ेवरेट स्ट्रेटेजी है राइट?"
"जिस स्ट्रेटेजी की तुम बात कर रही हो ना, उसपर पूरा क्रिमिनल लॉ टिका हुआ है."
"और उसे तुम्हारे जैसे लोग एक्सप्लॉईट करते हैं."
हालांकि इससे बातचीत कहीं-कहीं इतनी ज़्यादा लॉजिकल हो जाती है कि फिर वो रियल या ऑर्गेनिक नहीं रह पाती. आप खुद ही सोचिए हम रियल ज़िंदगी में इतनी तार्किक बातें कहां करते हैं.
शबनम से इंस्पायर्ड मेहर सलाम का रोल काफ़ी अलग था. और कुब्रा सैत को 'अलग' करने का तो पहले से ही अनुभव है. शबनम से इंस्पायर्ड मेहर सलाम का रोल काफ़ी अलग था. और कुब्रा सैत को 'अलग' करने का तो पहले से ही अनुभव है.

# सीरीज़ इंगेजिंग है, और बैकग्राउंड म्यूज़िक इसकी रोचकता में बढ़ावा देने वाला है.
# लॉ की दुनिया की अच्छी रिसर्च की गई लगती है. बेशक ये सब कुछ अमेरिकन टीवी सीरीज़ ‘सूट्स’ या ‘दी गुड वाइफ़’ की टक्कर का तो नहीं ही है, लेकिन गाहे-बगाहे उनकी याद ज़रूर दिलाता है. ‘इललीगल’ में ‘मेरा साया’ या ‘दामिनी’ की तरह केवल कोर्ट रूम ड्रामा ही नहीं है, बल्कि आपको इसमें क़ानून की दुनिया के दांव-पेंच, लॉ-फ़र्म्स का काम-काज, किसी केस को लड़ने से पहले की जाने वाली तैयारी और लॉयर्स की पर्सनल लाइफ़ भी देखने को मिलती है.
# सीरीज़ का एक बड़ा ड्रॉबैक है, स्क्रिप्ट की प्लॉट में ली गई क्रिएटिव लिबर्टी या ढेर सारे कोइंसिडेंट. जैसे लीड कैरेक्टर का अपने पिता, भाई और बॉय फ़्रेंड, तीनों से ही मिलना ‘आउट ऑफ़ दी वर्ल्ड’ कोइंसिडेंट्स की सीरीज़ के चलते था. ठीक है कि दुनिया छोटी है, मगर इतनी भी नहीं, कि एक केस सबको जोड़ दे.
वकालत और वकीलों की मास्टरपीस टीवी सीरीज़, 'सूट्स'. देख डालिए नेटफ़्लिक्स पर उपलब्ध है. वकालत और वकीलों की मास्टरपीस टीवी सीरीज़, 'सूट्स'. देख डालिए नेटफ़्लिक्स पर उपलब्ध है.

# सीरीज की सिनेमेटोग्राफ़ी भी स्टोरी के साथ-साथ परफ़ेक्ट तरीक़े से ब्लेंड हो रही है. कोर्ट, जेल, लॉ फ़र्म और हॉस्पिटल वाले सीन्स वो माहौल पैदा करने में सफल रहते हैं, जिसकी दर्शकों द्वारा अपेक्षा की जाती है.
# खूबसूरत बात ये है कि सीरीज़ बिलकुल साफ़-सुथरी और फोकस्ड होते हुए भी हर किरदार के पर्सनल लाइफ़ के कुछ हिस्सों पर एक अजीब सा रहस्य बनाए रखती है. और वो भी इस तरह कि कहानी कहीं से भी अधूरी ना लगे. हम एक्स्पेक्ट करते हैं कि दो पुराने दोस्त मिलें है तो अब प्यार होगा लेकिन होता कुछ और है. हम सोचते है गुरु-चेले का आमना-सामना होगा अब. लेकिन वैसा भी नहीं होता है. कहते हैं ना कि सच्चाई से ज़्यादा अनपेक्षित कुछ भी नहीं हो सकता जैसा कि ‘शबनम’ का केस ही. ठीक वैसे ही सीरीज़ और भी ज़्यादा रियलस्टिक होती जाती है.
# आख़िरी फ़ैसला-
अगर आपने ‘पाताल-लोक’ और ‘बेताल’ देख डाली है तो ‘इललीगल’ को आप दोनों के कहीं बीच में रख सकते हैं. अब ये मत कहिएगा कि हम सेब और संतरे की तुलना कर रहे हैं. क्यूंकि उपमाओं से या अनजान चीज़ों को पहचानी चीज़ों के प्रॉस्पेक्ट में रखने से ही तो अनजान चीज़ों के बारे में बेहतर जानकारी मिल पाती है. अन्यथा अनजान चीज़ को खुद से अनुभव करने का विकल्प तो है ही आपके पास. मतलब ‘इललीगल’ को देख डालने का. और लॉकडाउन में कह सकते हो- शुरू करो बिंज वॉचिंग ले कर इंटरनेट का नाम.


वीडियो देखें:
पाताल लोक' की 12 धांसू बातें जानिए, जिसकी चर्चा खत्म ही नहीं हो रही है-

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