बॉलीवुड की खूबसूरती है पिच्चरों के बीच बेवजह घुसेड़े गए गीत. जब तक हीरो और हिरोइन इश्क़, ब्रेकअप, दोबारा इश्क़, शादी, और बच्चे पर एक-एक गीत न गा लें हमारी फिल्में ख़तम नहीं होती हैं. फेविकोल, मंजन से लेकर सेंट तक, हर चीज पर बॉलीवुड ने गाने बनाए हैं. कई गीत ऐसे हैं जो सिर्फ कपड़ों पर बने. ये लिस्ट है 10 टाइप के कपड़ों और उनपर बने सबसे मशहूर गानों की. इसे पढ़ते चलिए और इसमें जोड़ते चलिए:
1. 'इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा'
चुनरी, चूनर, चादर, ओढ़नी- ये सब है नाम दुपट्टे के. औरत हो या मर्द, इन्हें कोई भी पहन सकता है. दुपट्टे इतने पुराने हैं कि हड़प्पा की खुदाई में इनके होने का सबूत मिला. मर्दों के लिए ये सजावट का काम करते थे और औरत की 'इज्ज़त' को बचाते थे. इसे शलवार-कमीज़, शेरवानी, लहंगा, घाघरा चोली और आजकल तो किसी भी चीज़ के साथ पहना जा सकता है. इस गीत में मीना कुमारी शिकायत करती हैं कि उनको दुपट्टा उनसे ले लिया गया है. और उस दुपट्टे के बदले में उन्हें चाहने वाले मर्द दिल तो क्या जान भी निकाल कर रख देंगे. चूंकि दुपट्टे को समाज ने औरत की इज्ज़त माना, हीरो ने उसे हिरोइन की लाइफ में एंट्री पॉइंट माना. इसलिए दुपट्टे और उसके पर्यायवाचियों पर इतने गीत बने. कभी हिरोइन के दुपट्टे ने हीरो का दिल मांगा, तो कभी सीधे लूट ही लिया. कभी हिरोइन ने कहा कि वो हीरो को अपनी चुनरी छूने पर कुछ नहीं कहेंगी. कभी हवा कमीनी निकली और हिरोइन का दुपट्टा उड़ा ले गई. कुल मिलाकर बॉलीवुड में फूल या चोंच लड़ाते पक्षी अगर सेक्स का सिंबल थे, तो दुपट्टे को आप फोरप्ले तो मान ही सकते हैं. https://www.youtube.com/watch?v=EDwvnOkDqSg
2. 'रेशमी सलवार, कुर्ता जाली का'
शलवार-कमीज़ एक ऐसा पहनावा है जो कई सालों से कई ससंस्कृतियों में अलग-अलग रूप लेकर भी सबसे पॉपुलर है. शलवार या सलवार एक ढीली पतलून होती है, और कमीज़ कुर्ते का ही एक रूप है जिसके बारे में हम आगे बात करेंगे. शलवार कमीज़ एक यूनिसेक्स ड्रेस है और इसे मर्द और औरतें दोनों पहनते हैं. पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया, यानि बग़दाद से लेके दिल्ली वाया आगरा तक इसे पहना जाता है. 'रेशमी सलवार कुर्ता जाली का' गाने में लड़का बनी मीनू मुमताज़ कुमकुम को छेड़ कर कहतीं है की रेशमी सलवार और जाली के कुरते में वो इतनी खूबसूरत दिखती हैं की सहा नहीं जाता. और बदले में कुमकुम कहतीं है कि वो उन्हें कोतवाली पहुंचा देगी. ये एक ऐसा गीत है जो जुबां और दिमाग पर जल्दी चढ़ता है और अगर आप इसे एक बार सुन लें तो दिन भर गुनगुनाते रहेंगे. https://www.youtube.com/watch?v=m2icsQrKnyc
3. 'लाल गरारा, मेरा लाल गरारा'
गरारे का जन्म लखनऊ में हुआ. अवध के नवाबों और तालुकदारों की पत्नियां इन्हें पहना करती थीं. गरारा स्टेटस सिंबल था और इनको पहनने वाली औरतों को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि वो किसी तोप खानदान की हैं. गरारा का घेर कमर से शुरू होता है और घुटनों पर इनमें छोटी-छोटी प्लीट्स होती हैं जिसकी वजह से घुटनों पर इनका घेर बढ़ जाता है. ट्रेडिशनल गरारे की एक टांग बनाने में ही 12 मीटर कपड़ा लगता है. इसे पहनने वाली औरतें सड़क पर महंगे सिल्क का पोंछा लगाते हुए चलती थीं. गरारे पहनने का चलन अब निकाह के बाद वाली पार्टियों तक सीमित हो गया है. रानी मुखर्जी और बॉबी देयोल वाली बादल का गाना 'लाल गरारा' याद हो तो आपको पता चलेगा कि घाघरे को गरारा कह कर इतने सालों तक आपका काटा गया है. https://www.youtube.com/watch?v=-0kp7d8uhvw
4. 'मैं लैला लैला चिल्लाऊंगा, कुर्ता फाड़ के'
अफगानिस्तान से ले कर नेपाल और श्रीलंका तक पहने जाने वाला ये कपड़ा कहां से आया, ये कहना मुश्किल है. इसे धोती, पैजामा, शलवार, लुंगी, जीन्स और चूड़ीदार पैजामे के साथ पहनते हैं. वैसे एयर कंडीशनिंग की ज्यादा ज़रूरत हो तो सिर्फ कुर्ता भी पहन सकते हैं. अफगानिस्तान में इसे पैरहन, कश्मीर में फिरान और नेपाल में दौरा के नाम से जाना जाता है. महिलाएं पहन लें तो ये कुर्ती बन जाता है. राजस्थानी, भोपाली, लखनवी, मुल्तानी, पठानी, पंजाबी, बंगाली, हर कुर्ते की डिजाइन अलग होती है. क़ैस जब इश्क में मजनू हुआ, तब फिल्मों ने उसे फटे कुर्ते में घूमते हुए दिखाया. इश्क में कुरता फटना फिर तो भाई बड़ी बात हो गयी. जब गोविंदा दावा करते हैं कि वो कुर्ता फाड़ के लैला को पुकारंगे, वो अपनी मोहब्बत का सबसे सॉलिड प्रूफ पेश कर रहे हैं. https://www.youtube.com/watch?v=4LLMgPaJdb8
5. 'चोली के पीछे क्या है'
चोली के पीछे है इतिहास 2000 साल पुराना. गुजरात और महाराष्ट्र में ईसा के जन्म से भी पहले की पेंटिंग्स में चोली को देखा गया. चोली का मकसद था औरत के स्तनों को ढकना. आधुनिक ब्लाउज का जन्म इसी से हुआ. इससे पहले राजस्थानी औरतें इसे घागरे के साथ पहनती थीं, जो आगे से ढकी होतीं थीं और पीछे से बांधने के लिए इनमें डोरी होती थी. कसी हुई चोलियां पहनना, जिनमें औरतों के कर्व्स समेत उनका पेट दिखे, उनकी सुंदरता को बढ़ाता था. साथ ही एक कल्चर्ड औरत की पहचान थी कि वो चोली को दुपट्टे से ढककर रखे. असल में खोलने और ढकने अर्थात ठरक और नैतिकता की इसी बाउंड्री पर हमारा पूरा देश खड़ा है. खलनायक फिल्म की ठरकपूर्ण स्थिति को ध्यान में रखते हुए शायद आनंद बक्शी ने ये गाना लिखा होगा. वरना एक औरत दूसरी औरत से भला क्यों पूछेगी कि उसकी चोली के पीछे क्या है. https://www.youtube.com/watch?v=8nd5NLbUu44
6. 'पुरानी जींस, और गिटार'
बात उसी जींस की हो रही है जिसे आपन महीनों तक धोते नहीं हैं. जींस का इतिहास और कपड़ों जितना पुराना नहीं, क्योंकि ये पैंट्स का ही एक रूप है. दुनिया की पहली जीन्स लगभग 150 साल पहले बनी थी खानों में खुदाई करने वाले मजदूरों के लिए. जीन्स के सुपर ब्रांड लेवाई'स ने ही दुनिया की सबसे पहले जींस बनायी थी. धीरे-धीरे जवान लौंडों में पॉपुलर हो गयी, और दुनिया की कूल चीज़ों में से एक बन गयी. जींस को हमेशा युवाओं से जोड़ा गया. इनमें पापा की पैंट्स जैसी क्रीज़ नहीं होती थी, और इसे रगड़ के पहना जा सकता था. इस तरह ये युवा बेफिक्री और लापरवाही का सिंबल बनी. अली हैदर ने जब कॉलेज को याद करते हुए लिखे गाने में जींस की बात की, तो ये लोगों में खूब हिट हुआ. https://www.youtube.com/watch?v=c1r4g63dW_U
7. 'मैं हूं इक शरारा'
शरारा मुग़ल औरतों के साथ भारत आया. एक वक़्त था जब इसे केवल शाही औरतें ही पहनती थीं. धीरे धीरे इसका डेली वियर में उपयोग होना बंद हो गया और मुसलमान औरतें इसे कभी-कभी ही पहनतीं. 70 और 80 के दशक में कई फिल्में आयीं जिनकी वजह से शरारा मुसलमान कल्चर के बाहर भी पॉपुलर होने लगा. शरारा असल में घुटनों तक मर्दाना पैंट का ढीला-ढीला रूप होता है. घुटनों से इनमें स्कर्ट की तरह का एक कपडा जोड़ देते हैं जिससे इनमें घेर आ जाता है. इसे कुर्ती और दुपट्टे के साथ पहनते हैं. याद कीजिये डेढ़ इश्क़िया वाली माधुरी दीक्षित को, जो लाल रंग का शरारा पहन कर मुशायरे में गयीं थीं, जब नसीर उनके लिए ग़ज़ल पढ़ रहे थे. पर हां, शरारा-शरारा गाने में जो शमिता शेट्टी ने पहना है, उसे शरारा मत समझ लीजियेगा. वो तो बस ऋषि कपूर के पुराने बेलबॉटम्स में चीरा लगा कर बनाया हुआ पतलून है. https://www.youtube.com/watch?v=kgMd4c9USgI
8. 'टीवी पे ब्रेकिंग न्यूज़, हाय रे मेरा घागरा'
घागरा या लहंगा उतना ही पुराना है जितनी चोली. इसे लगभग पूरे उत्तर भारत और नेपाल में भी पहना जाता है. इसे चोली और दुपट्टे के साथ पहनते हैं. चोली का डिज़ाइन कल्चर्स के साथ बदलता रहता है. पर कभी बग़दाद में घागरा पहनने वालों का ज़िक्र कहीं होते नहीं देखा. तो फिर इस गीत में बग़दाद क्यों है? क्या वहां से उनके लहंगे इम्पोर्ट होते हैं. और अगर माधुरी के घागरे बगदाद से आ भी रहे हैं, तो वाया आगरा आने का कोई तुक नहीं है. इन बुनियादी गलतियों के होने के बावजूद भी गाना अच्छा है. https://www.youtube.com/watch?v=caoGNx1LF2Q