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फिल्म रिव्यू: गॉन केश

'गॉन केश' एक अहम और आम मसले पर बनी एवरेज लेकिन स्वीट फिल्म है.

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श्वेता त्रिपाठी, विपिन शर्मा और जीतू स्टारर इस फिल्म को कासिम खालो ने डायरेक्ट किया है.
29 मार्च को 'नोटबुक' और जंगली के साथ एक और फिल्म रिलीज़ हुई. नाम है ' गॉन केश'. गॉन (Gone) अंग्रेज़ी का शब्द है, जिसका मतलब चले जाने से है. केश माने बाल. यानी ये फिल्म गंजेपन के बारे में है. कासिम खालो डायरेक्टेड इस फिल्म की कहानी कुछ ऐसी है-
बंगाल के सिलीगुड़ी में एक ऐवरेज मिडल क्लास फैमिली रहती है. मम्मी-पापा और बेटी. बाप एक लोकल घड़ियों की दुकान लगाता है. मां घर चलाती है. और बेटी इनाक्षी को एलोपीशिया है. एलोपीशिया मतलब वो बीमारी जिसमें सिर के बाल झड़ जाते हैं. इस लड़की को सबसे ज़्यादा डांस करना पसंद है. जिसके लिए वो अपनी नौकरी तक छोड़ देती है. साथ में एक लड़का है, जो इस लड़की को पसंद करता है. तीन लोगों की स्ट्रगल उसी एक लड़की के लिए चल रही है. इस लड़की के मां-बाप का एक 24 साल पुराना सपना है. आगरा जाने का. ताज देखने का. प्लान पहली बार एयरोप्लेन में बैठने का भी है. लेकिन सबसे इंपॉर्टेंट है वो लड़की, जो इस बीमारी जूझ रही है. जो एक समय के बाद वो अपना सारा दुख तज देती है. नीयती मानकर आगे बढ़ जाती है. ये सब इतनी आसानी से हो जाता है कि पचता ही नहीं है.
फिल्म के एक सीन में पिता का रोल कर रहे विपिन शर्मा और मां बनीं दीपिका अमीन के साथ श्वेता त्रिपाठी.
फिल्म के एक सीन में पिता का रोल कर रहे विपिन शर्मा और मां बनीं दीपिका अमीन के साथ श्वेता त्रिपाठी.


एक्टिंग के मामले में ये फिल्म ठीक है लेकिन समस्या ये है कि सिर्फ इसी मामले में ठीक है. श्वेता त्रिपाठी अपने किरदार में दांत गड़ाकर बैठी लगती हैं. लेकिन वो किसी किरदार पर तब फबेगा, जब कहानी आपसे वैसा कुछ करने की मांग करेगी. यहां वो डीमांड नहीं है. इनाक्षी के पापा के रोल में हैं विपिन शर्मा और मां के रोल में हैं दीपिका अमीन. ये वो किरदार हैं, जिनकी वजह से फिल्म की खूबसूरती बढ़ती है. इमोशन स्क्रीन पर दिखता है. विपिन शर्मा शायद पहली बार इतने स्वीट रोल में नज़र आ रहे हैं.
टीवीएफ वाले जीतू इस फिल्म से अपना सिनेमाई करियर शुरू कर रहे हैं.
टी.वी.एफ. वाले जीतू इस फिल्म से अपना सिनेमाई करियर शुरू कर रहे हैं.


फिल्म के डायलॉग्स बिलकुल बोलचाल की भाषा में हैं. और जिस तरह की मिडल क्लास फैमिली दिखाई गई है वो असलियत के बहुत करीब है. जिससे आप फटाक से कनेक्ट कर लेते हैं. शुरुआत से लेकर आखिर तक फिल्म कहीं भी सरप्राइज़ नहीं करती है. एक ही टोन में चलती है रहती है. ऊपर से लंबी बहुत है. इसलिए देखते वक्त कुछ हरारत सी महसूस होने लगती है. गाने भी ठीक-ठाक से हैं. ऐसा कुछ नहीं जो याद रह जाए. सिनेमैटोग्राफी रोड वाले सीन्स में इंट्रेस्टिंग लगती है. जब सड़क पर चल रहे आदमी को दिखाया जाता है, तब ऐसा लगता है जैसे कोई अपने छत पर खड़े होकर ये सब देख रहा है.
ऊपर जिस तरह की सिनेमैटोग्रफी का ज़िक्र हो रहा था, उसका नमूना आप यहां देख सकते हैं.
ऊपर जिस तरह की सिनेमैटोग्रफी का ज़िक्र हो रहा था, उसका एक नमूना आप यहां देख सकते हैं.


इस फिल्म में एक बाल झड़ जाने जैसे बहुत ही आम समस्या को उठाया गया है. लेकिन उसे किसी लड़के पर सेट करने के बदले एक लड़की को कहानी में बुनना फिल्म को एक एक्स्ट्रा पॉइंट दिलवाता है. फिल्म में एकदम नैचुलर और सिचुएशनल कॉमेडी है. जो फर्जी के बजाए फनी लगता है. फिल्म को देखते हुए कुछ बातें खलती हैं. जैसे इनाक्षी को शहर का बेस्ट डांसर बताया जाता है. लेकिन एक ड्रीम सीक्वेंस को छोड़कर उसे कहीं भी डांस करते नहीं दिखाया गया है.
श्वेता त्रिपाठी का किरदार फिल्म में एक स्कूल जाने वाली बच्ची से लेकर एक एडल्ट होने तक का सफर तय करता है.
श्वेता त्रिपाठी का किरदार फिल्म में एक स्कूल जाने वाली बच्ची से लेकर एक एडल्ट होने तक का सफर तय करता है.


'गॉन केश' में एक अच्छी मोटिवेशनल फिल्म बनने के साले गुण है, बावजूद इसके वो प्रभाव नहीं डाल पाती. फिल्म देखते वक्त कहीं भी ऐसा कोई भी मौका नहीं आता है, जब स्क्रीनप्ले की ताजगी आपको वापस कहानी की ओर ले जाए. एकाध जगह आपका इंट्रेस्ट जगता है लेकिन इसकी रफ्तार सारा गुड़ गोबर करने का काम करती है. 'गॉन केश' एक अहम और आम मसले पर बनी एवरेज लेकिन स्वीट फिल्म है. फिल्मों में ऐसे मां-बाप शायद ही आपने पहले कभी देखे होंगे. फिल्म कमज़ोर होते हुए भी ताजी है. लेकिन इन सभी चीज़ों को मिलाकर भी 'गॉन केश' इतनी अट्रैक्टिव नहीं हो पाती, कि आम जनता को अपनी ओर खींच पाए. या खिंची हुई जनता को लंबे समय तक एंटरटेन कर पाए.