इसका ट्रेलर देखकर जो उत्सुकता जगती है, उसे फिल्म पूरी तरह संतुष्टि में बदल देती है.

तापसी बहुत कम समय में बैंकेबल एक्ट्रेस बन गई हैं.
फिल्म शुरू होती है एक भयानक मर्डर सीन के साथ. एक जवान लड़की है अमृता, जिसे कोई उसके घर से बाहर से लगातार वॉच कर रहा है. फिर रात में घर में घुसकर उसका बेहद क्रूरता से मर्डर भी कर देता है. यहां से जो फिल्म का पेस सेट होता है, वो कहीं नहीं सुस्त पड़ता. फिर एंट्री होती है सपना की, जो एक वीडियो गेम डिज़ाइनर है. जिसे अंधेरे से डर लगता है, पैनिक अटैक्स आते हैं. वजह है साल भर पहले उसके साथ हुई एक घटना. सपना अपनी केयरटेकर कलाम्मा के साथ रहती है. डॉक्टर से ट्रीटमेंट भी ले रही है. वीडियो गेम्स की भयंकर एडिक्ट है. इतनी कि वीडियो गेम के रिमोट का टैटू ही गुदवा लिया है कलाई पर.
सपना कलाम्मा के साथ अकेली रहती है. उधर एक सीरियल किलर अकेली लड़कियों का मर्डर कर रहा है लगातार. सपना भी उसी ख़तरे के ज़ेरेसाया रह रही है. क्या ये ख़तरा हकीकत का रूप लेता है? सपना का अमृता से क्या कनेक्शन है? टैटू का क्या राज़ है? क्या कहानी में किसी सुपरनेचुरल एलिमेंट की भी हाज़िरी है? ये फिल्म है भी या कोई वीडियो गेम चल रहा है? ये सब फिल्म देखकर जानिएगा. कहानी की बेसिक लाइन के अलावा कुछ भी बताना स्पॉइलर की श्रेणी में आ जाएगा और आपका फिल्म देखने का मज़ा ख़राब हो जाएगा.

तापसी के घर में इस तरह के पोस्टर लगे हैं जो बहुत कुछ कह देते हैं.
फिल्म देखकर जब आप लौटते हैं तो एक सवाल से जूझ रहे होते हैं. कि ये किस जॉनर की फिल्म थी? साइकोलॉजिकल थ्रिलर? हॉरर? साई-फाई? मर्डर मिस्ट्री? सर्वाइवल ड्रामा? यकीन जानिए ये इनमें से सब कुछ है और हर एक विधा के साथ पूरा न्याय करती है. फिल्म की सबसे ख़ास बात इसकी रफ़्तार है. ये कहीं भी बोझिल नहीं होती और स्क्रीन पर लगातार कुछ न कुछ इंटरेस्टिंग चलता रहता है. इतना कि इंटरवल में पॉपकॉर्न लेते हुए आपको ये चिंता सताती है कि कहीं फिल्म शुरू न हो जाए और मैं कुछ मिस न कर दूं.
डायरेक्टर अश्विन सर्वनन कहानी को बेहद रोचक ढंग से पेश करने में कामयाब रहे हैं. फिल्म में कई परतें हैं और हर एक लेयर, या अगर वीडियो गेम्स की ज़ुबान में ही कहा जाए तो लेवल, पहले से ज़्यादा रोमांचक है. वो शुरू से ही टेंशन बिल्ड करके रखते हैं जो क्लाइमैक्स आते-आते विस्फोटक रूप ले लेता है. इस तरह की कोई इंडियन फिल्म कम से कम मैंने तो नहीं देखी आज तक. वो आपको चौंकाते भी हैं और डराते भी हैं. एक-दो सीन तो ऐसे हैं कि आप लिटरली कुर्सी पर उछल पड़ेंगे.

तापसी के किरदार का डर दर्शकों तक भी पहुंचता है.
फिल्म की स्टार अट्रैक्शन बिलाशक तापसी हैं. डरी-सहमी, अतीत के फैसलों पर पछताती और भविष्य सुधारने के लिए दृढप्रतिज्ञ सपना के रोल में वो ग़ज़ब की परफॉरमेंस दे जाती हैं. कुछ ही किरदार ऐसे होते हैं जिनकी परदे पर की छटपटाहट दर्शकों तक वैसी की वैसी पहुंच पाती है. तापसी इसे पूरी कामयाबी से कर दिखाती हैं. आप उनके साथ होते हैं हर फ्रेम में. उनके साथ डरते हैं, उनके साथ चीखते हैं, उनके साथ पलटवार भी करते हैं. सपना की बेबसी, गुस्सा, खौफ, चिढ़ सब कुछ दर्शक महसूस कर पाता है. बिलाशक तापसी का ये रोल उनकी टॉप थ्री परफॉरमेंसेस में जाएगा. मैं तो शायद पहले नंबर पर रखूं.
कलाम्मा के रोल में विनोदिनी ने उनका भरपूर साथ दिया है. सपना की कम्पैनियन, जो उसकी चिंता में घुली जाती है. विनोदिनी थ्रूआउट बेहद सहज हैं. ऐसी फिल्मों में बैकग्राउंड म्युज़िक का बेहद ख़ास रोल होता है. 'गेम ओवर' इस मामले में भी पूरे नंबर हासिल करती है.

कलाम्मा के रोल में विनोदिनी परफेक्ट कास्टिंग है.
ये फिल्म महज़ एक थ्रिलर फिल्म नहीं है. थ्रिल परोसने के साथ ही ये फिल्म एंग्ज़ाइटी, पैनिक अटैक्स, महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भी बात करती है. बिना बोझिल हुए. पौने दो घंटे में इतना कुछ समेटना यकीनन तारीफ़ के लायक काम है. एक दिलचस्प कहानी, उम्दा डायरेक्शन, कसी हुई एडिटिंग और शानदार परफॉरमेंसेस का ये पैकेज मिस करने लायक बिल्कुल नहीं है.
इस वीकेंड अगर आपके पास समय है तो देख आइए. अगर नहीं है तो निकालिए. कभी-कभार ही तो इंडियन सिनेमा कोई शानदार कॉन्सेप्ट लेकर आता है. हौसला बढ़ाइए इन लोगों का.
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