आइस एज फ्रेंचाइज़ की पांचवी किस्त रिलीज़ हुई है. आइस एज: कोलिज़न कोर्स के नाम से. पहली फिल्म 2002 में आई थी. ख़ास बात ये है कि फिल्म अमरीका में रिलीज़ होने से पहले इंडिया में रिलीज़ हुई है. इस फ़िल्म को डायरेक्ट किया है आइस एज सीरीज़ की सबसे शानदार फिल्म आइस एज: कॉन्टिनेंटल ड्रिफ्ट के को-डायरेक्टर माइकल थर्मियर ने. माइकल कैनेडियन एनिमेटर हैं ब्लू स्काई स्टूडियो में.
आते हैं फिल्म पर. फिल्म के वही कैरेक्टर्स हैं. स्क्रैट की शुरुआत होती है एक स्पेसशिप से. वो शिप कहां 'पार्क' था, क्यूं 'पार्क' था, मालूम नहीं. उसे स्क्रैट गलती से स्टार्ट कर देता है. गलती की वजह? इस बार भी वही. उसका फल. जिसके पीछे वो भागता-फिरता है. और गलती की तमाम सीरीज़ों के चलते धरती की ओर कई उल्का पिंड चल पड़ते हैं. वो सभी उल्का पिंड धरती पर प्रलय लाने की पूरी तैयारी कर चुके होते हैं. इधर, धरती पर जितने भी मैमल्स हैं, खुशी से रह रहे होते हैं. मैनी अपनी बेटी पीचेज़ और उसके दोस्त जूलियन की शादी को लेकर परेशान है. दूसरी तरफ सिड को उसकी गर्लफ्रेंड छोड़ के चली जाती है.

कुल मिलाके मैमल्स आपस में व्यस्त हैं और उनका जीवन चल रहा होता है जब अचानक उन्हें उन उल्का पिंडों के खतरे के बारे में मालूम चलता है. अपनी जान बचाने का उपाय सोचते हुए इन सभी की मुलाक़ात होती है एक आँख वाले 'बक' से. बक उल्का पिंडों और उड़ने वाले डायनासोरों से लड़ते हुए किसी तरह मैमल्स को और धरती को बचाता है. बक और बाकी मैमल्स के धरती बचाने की कोशिशों की ही कहानी है आइस एज: कोलिज़न कोर्स.

कमीना बक
फिल्म आइस एज की अब तक सभी फिल्मों में सबसे हल्की फिल्म मालूम दे रही है. होता क्या है कि ऐसी फिल्में देखने जाते वक़्त हम सभी के मन में स्क्रैट की बेवकूफियां देखने की इच्छा होती है. हम चाहते हैं कि कहानी उसके इर्द-गिर्द घूमे न कि वो एक साइड किक
बनके रह जाए. इस फिल्म में ऐसा ही मालूम दे रहा है. हम स्क्रैट को देखते रहना चाहते हैं लेकिन उसके सीक्वेंस को बहुत बेतरतीबी से काट दिया जाता है. बस यूं ही. जो कि वाकई काफी अजीब मालूम देता है. साथ ही फिल्म बनाने वालों ने मैमल्स की कहानी में काफी ज्ञान देने की कोशिश की है. मानो आप थियेटर में नहीं बल्कि स्कूल में मॉरल साइंस की क्लास में बैठे हों. न जाने क्यूं फ़िल्मों को एक अंत में एक मेसेज देने की मजबूरी में बांध दिया जाता है. फिल्म उसी बंधन की मारी लग रही है. पीचेज़ की जूलियन से शादी पर मैनी और एली के उन दोनों के भविष्य के बारे में सभी डर और अनिश्चितताओं के बहाने हमें परिवार के बारे में काफ़ी ज्ञान दिया गया है.
चूंकि फ़िल्म एक हिन्दुस्तानी ज़मीन पर बने थियेटर में चल रही थी, इस वजह से फिल्म में एक इंटरवल भी था. वो इंटरवल जो कि असल में होता ही नहीं है. मगर पॉपकॉर्न के भुक्खड़ों के लिए जिसे रखना एक रीत है जिसके खिलाफ़ सोचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. तो उसी इंटरवल के बाद फ़िल्म बहुत ही बोझिल बन जाती है. परिवार के साथ रहने और अलग रहने, शादी करके जाने वाली बेटी के बाप की शंकाएं, बेटी का टेस्ट लेती मां और काफ़ी कुछ फिल्म को अचानक आइस एज से दूर सूरज बरजात्या की 'लेजेंडरी' फिल्म 'हम साथ साथ हैं' के समकक्ष ला खड़ी कर देती है.