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फ़िल्म रिव्यू: F9

जॉन सीना और विन डीज़ल की लड़ाई में मज़ा आएगा या बोर होंगे, जान लीजिए.

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विन डीज़ल एंड जॉन सीना इन 'F9'.
फ़ास्ट एंड फ्यूरियस सीरीज़ की नौंवी फ़िल्म ‘F9’ थिएटर्स में आ गई है. ज़बरदस्त एक्शन ड्रामा की लीगेसी से आने वाली 'F9' में कुछ नया-अनोखा देखने को मिला, या पुरानी फ़िल्म को नए पैकेट में डालकर हमें परोसा गया, इस पर आगे रिव्यू में बात करेंगे. # एटीज़ की हिंदी फिल्मों को शर्मिंदा करने वाली कहानी फ़िल्म की कहानी क्या ही लिखें! एटीज़ की कोई भी हिंदी पिक्चर उठा लो. सेम वैसा ही प्लॉट है. दो भाई हैं. बड़े भैया डॉम. छोटा भाई जैकब. पिता की मौत के बाद दोनों बिछड़ जाते हैं. 20 साल और 8 फिल्मों के बाद अचानक से डॉम को याद आता है. 'अबे... मेरा तो एक छोटा भाई भी था'. अब जब बड़ा भैया इस लेवल का गजनी होगा, तो छोटा भाई तो हेट ही करेगा. जैकब पूरी जिंदगी अपने आप को डॉम से बेहतर प्रूव करने की कोशिश में रहा है. साइबर टेररिस्ट साइफ़र के साथ मिलकर काम कर रहा है. ताकि दिखा दे 'ही इज़ द वन'. अब कहीं भी इस हाई लेवल का पंगा हो, मदद मांगने सब डॉम के पास आते हैं. डॉम फ़िर से अपनी टीम इक्कठी करता है. और विलन से लड़ने निकल लेता है. बीच में दोनों भाइयों का फेस ऑफ होता है. जहां 'जब तक एक भाई बोलेगा, एक भाई सुनेगा' टाइप सीन होता है. डायलॉगबाज़ी के बाद दे मुक्के, दे लातें, दे कोहनी स्टफ होता है. उसके बाद प्लेन छोड़कर सब कुछ उड़ने लगता है. ट्रक, बस, कार सब. कार तो आसमान में नहीं स्पेस में उड़ रही है. सही पढ़ा 'स्पेस में' (समझ रहे हो). एक पल को तो लगा कहीं ऊपर इन्हें 'गार्डियन ऑफ़ दी गैलेक्सी' वाले ना मिल जाएं. खैर उसके बाद ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों से छलांगें लगती हैं. और अंत में भटके हुए नौजवान जैकब का हृदयपरिवर्तन हो जाता है. फ़िर डॉमनिक मिलाप. घर में हाउसपार्टी. लास्ट क्रेडिट्स. फ़िर पिक्चर की अलग किश्त का क्लिफ़हेंगर. दी एंड.
ब्रदर डॉम बनाम ब्रदर जैकब.
ब्रदर डॉम बनाम ब्रदर जैकब.

# कुछ भी चल रहा है भाई साब! देखने तो गए थे हम 'फ़ास्ट एंड फ्यूरियस'. सोचा था हॉलीवुड की धांसू पिक्चर है. मज़े आएंगे. मज़े तो 'बैल' नहीं आए. उल्टा दिमाग भन्ना गया है. क्यूंकि फ़िल्म में एक तो 'सास भी कभी बहु थी' के मिहीर विरानी की तरह दो फ़िल्म पहले कार क्रैश में मरा करैक्टर फ़िर जिंदा होकर आ जाता है. वहां तो तब भी एकता कपूर ने प्लास्टिक सर्जरी करवा दी थी. यहां तो ऐसे ही आ जाता है. कहता 'मैं तो कार में था ही नहीं.. खीखीखी'. आधा दिमाग तो हमारा यहीं पंक्चर हो गया. उसके ऊपर से एकदम टकले टायर जैसी घिसी हुई एटीज़ की हिंदी फिल्मों वाली कहानी. बहुत ही ज्यादा ओवर द टॉप एक्शन. हमें स्मरण है 'एफ़ एंड एफ़' सीरीज़ इन सीन्स के लिए ही फेमस है. लेकिन पिछली फिल्मों में फ़िर भी कुछ लॉजिक होता था. इस बार तो 'कुछ भी' चल रहा भाईसाब. एक्शन ऐसा कि बंदा मोबाइल चार्जर जैसी कार से दस पहिए वाला ट्रक पलट दे रहा है. कार में कुछ भी सिलिंडर टाइप का लगा कर. उसको 'नाइट्रो-माइट्रोकोंड्रीया पॉवर इंजन' जैसा फैंसी नाम देकर. कार को स्पेस में ले जा रहे हैं ये लोग. ऊपर से 'F9' का ट्रीटमेंट एकदम 'एवेंजर' जैसा लगता है. जिस तरीके से हैन लुइ की एंट्री होती है, वो सीन तो बिलकुल 'एंडगेम' में हॉकआई की एंट्री की कॉपी लगती है.
'F9' का पोस्टर.
'F9' का पोस्टर.

# पुराने एक्टर्स, पुरानी एक्टिंग विन डीज़ल पिछले 20 साल से डॉमनिक टोरैटो का रोल कर रहे हैं. इस किरदार में उन्हें इतना देख लिया है कि इस बार कुछ नएपन का अहसास नहीं होता. कहानी फीकी. किरदार पुराना. एक्टिंग डल. लेट्टी के रोल में मिशेल रोड्रिग्ज़. रोमन पीयर्स के रोल में टायरीज़ गिब्सन. मिया टोरैटो के रोल में जोर्डैना. टेज पार्कर के रोल में क्रिस ब्रिज. ये सब एकदम पहले ही जैसे हैं. सेम पहली वाली हरकते हैं. अब रोमन के जोक्स भी पकाते हैं. और उनकी टेज पार्कर के साथ की टॉम एंड जैरी वाली खुरखुर पर भी हंसी नहीं आती. उलटा झुंझलाहट होती है. जॉन सीना का करैक्टर जैकब एक फ्रेश एडिशन है फ़िल्म में. लेकिन जॉन के सीन नाममात्र के हैं. वी लिटरली 'कैंट सी हिम'. जिन सीन्स में दिखे भी, तो एक्टिंग के लिहाज़ से भी थोड़े उन्नीस ही बैठे. बाकी सब भी कुछ ऐसा स्पेशल नहीं कर रहे थे कि अलग से बात की जाए.
जॉन सीना एज़ जैकब टोरैटो.
जॉन सीना एज़ जैकब टोरैटो.

# उधड़ी राइटिंग, बिखरा डायरेक्शन स्क्रिप्ट इस फ़िल्म की सबसे कमज़ोर कड़ी है. फ़िल्म की स्क्रिप्ट इतनी उधड़ी हुई थी कि इन कमर्शियल एक्टर्स की बजाय कोई हॉपकिंस, पचीनो टाइप बढ़िया एक्टर भी होता, तो भी सी नहीं पाता. ख़राबी के मामले में जस्टिन लिन की कहानी को उनके डायरेक्शन ने मात दे दी. जस्टिन का निर्देशन वैरी वैरी वैरी पूअर रहा. बहुत सी जगहों पर उनके द्वारा लिए गए शॉट्स हूबहू मार्वल फिल्मों की कॉपी लगे. ऐसा लगा जैसे मार्वल फिल्मों की तर्ज पर 'फ़ास्ट एंड फ्यूरियस सीरीज़' अपना एक अलग यूनिवर्स बनाने की तैयारी कर रही है.
लेट्टी कहूं इन्हें. या कहूं मैं इन्हें 'ब्लैक विडो'.
लेट्टी कहूं इन्हें. या कहूं मैं इन्हें 'ब्लैक विडो'.

# देखें या नहीं? 'F9' कमज़ोर एक्टिंग, बेहद ढीली स्क्रिप्ट, छापे हुए डायरेक्शन, लेम जोक्स, इल्लोजिकल स्क्रीनप्ले की ऐसी खिचड़ी है, जिसे खाकर मतलब देखकर, आपका मानसिक हाज़मा बिगड़ सकता है. थिएटर में भी अभी पचास परसेंट ही ऑक्यूपेंसी है. ऐसे में 'F9'के लिए थिएटर तक जाने की मशक्कत करके भी कुछ ख़ास हासिल नहीं होगा. इससे बढ़िया घर पे रहें. सुना है नेटफ्लिक्स पर इसी तरीके का एक शो आ रहा है. वो निपटा दें. अगर मेरी माने तो. वरना लोकतंत्र है, जो जी में आए कीजिए.

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