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फिल्म रिव्यू 'धड़क'

कैसी है श्रीदेवी की बेटी जाह्नवी की पहली फिल्म?

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फोटो - thelallantop
'धड़क'. जाह्नवी कपूर का डेब्यू और ईशान खट्टर की पहली बड़ी फिल्म. वो फिल्म जिसपर पूरे हिंदुस्तान की नज़र है. सबको एक चीज़ बड़ी शिद्दत से जाननी है कि क्या 'धड़क', 'सैराट' साथ न्याय कर पाती है? आइए जानते हैं.
'धड़क' शुरू होती है आंखें चौंधियाने वाले एरियल शॉट से. उदयपुर की ख़ूबसूरती के साथ पूरा न्याय करता फिल्मांकन. जिन्होंने 'सैराट' देखी है, वो तो तमाम कलाकारों के रोल पहले से ही जानते हैं, नए वाले भी जल्द ही परिचित हो जाते हैं. कि एक लड़का है जो एक बड़े घराने की लड़की से दिल लगा बैठा है. हौले-हौले पनपता है प्यार, फिर घरवालों से तकरार और फिर कपल फरार. दो लाइनों में यही है फिल्म की कहानी. लेकिन फिर कुछ और भी है. फरारी के बाद का जीवन भी है और ज़माने की क्रूरता का बदसूरत विज्ञापन भी.
धड़क के प्रोड्यूसर करन जोहर हैं.
धड़क के प्रोड्यूसर करन जोहर हैं.

फिल्म का पहला हाफ, ख़ास तौर से पहले तीस-चालीस मिनट बेहद कमज़ोर हैं. इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि आप दिमाग में 'सैराट' लेकर फिल्म देखने पहुंचे होते हैं. और 'सैराट' जैसा मासूम रोमांस सिरे से गायब पाते हैं. इस दौरान परदे पर दिखने वाला हर किरदार लाउड लगता है. न सिर्फ लीड पेयर बल्कि उनके माता-पिता, यार-दोस्त सब. रोमांस वाला जितना भी हिस्सा है वो कुछ ख़ास अपील नहीं करता. सब कुछ जबरन कराया हुआ लगता है. आर्ची और परश्या की तलाश में पहुंचे दर्शकों को मधुकर और पार्थवी कन्विंस कर ही नहीं पाते.
इसी क्रम में जाह्नवी के बोले कुछेक डायलॉग आपको भयानक इरिटेट करते हैं. जैसे 'यू नो इंग्लिश, गेट आउट'. एक और बड़ा नुक्स फिल्म में राजस्थानी बैकग्राउंड का होना भी है. आप शिद्दत से चाहते हैं कि काश इस फिल्म में राजस्थान न होता. वैसे भी बॉलीवुड वाले सिर्फ म्हारो-थारो करके ही इतिश्री कर लेते हैं. उन्हें लगता है कि सिर्फ मोजड़ी पहनाने से और लोकल कौस्च्युम ओढ़ा देने भर से किरदार राजस्थानी लगने लगेगा. कुछ ज़्यादा करना हुआ तो 'नी' को 'णी' कहलवा लो.
अपने दोस्तों के साथ मधुकर बागला.
अपने दोस्तों के साथ मधुकर बागला.

आपको लगने लगता है कि फिल्म एंटरटेनिंग, एंगेजिंग तो होगी, लेकिन शायद संतुष्टि न दे पाए. सबकुछ बेहद चमकीला है. बड़ी-बड़ी हवेलियां, किले नुमा कॉलेज, डिजाइनर कपड़े. लगता है इन सब में मूल कहानी की इनोसंस कहीं खो गई है. फिल्म के एक सीन में जाह्नवी ईशान से कहती है, ज़्यादा उछल-कूद करोगे तो चोट लगेगी. ऐन यही बात इस फिल्म के फर्स्ट हाफ के लिए कही जा सकती है. वाकई इसे ज़्यादा उछलकूद से चोट लग गई है.
एक और समस्या इसमें अमीर-गरीब वाले एंगल की भी है. मतलब हिंदुस्तान में तो उस परिवार को गरीब नहीं ही माना जाएगा जिसका उदयपुर जैसे टूरिस्ट टाउन में प्राइम लोकेशन पर एग्ज़ोटिक रूफ-टॉप रेस्टोरेंट हो.
बहरहाल, जब आप मुकम्मल तौर से निराश होने ही वाले होते हैं कि फिल्म करवट बदल लेती है. जाह्नवी के पिता के कहर से बचने के लिए ये कपल सड़क पर उतर आता है और उनके साथ ही फिल्म भी पटरी पर लौट आती है. आगे का सब ठीक-ठाक है. ज़्यादा कहानी बताना ठीक न होगा. खुद देखकर जान लीजिएगा. हम कलाकारों पर बात कर लेते हैं.
जिंगाट गाना.
जिंगाट गाना.

'धड़क' के ट्रेलर में ईशान खट्टर, जाह्नवी से ज़्यादा सहज नज़र आ रहे थे. वो पूरी फिल्म में ऐसे ही हैं. अपने हिस्से भर का काम उन्होंने काफी सहजता से किया है. चाहे वो प्यार में पगलाया बेसब्रा नौजवान हो या फिर हालात के दबाव में टूटता और ज़िम्मेदारी की आंच महसूस करता शादीशुदा युवक. उन्होंने सब ठीक-ठाक ढंग से किया है.
असली सरप्राइज़ पैकेज तो जाह्नवी कपूर हैं. जान्हवी इस फिल्म में दिलोजान से मेहनत करती नज़र आई है. असल में उनके सामने एक नहीं तीन-तीन बड़ी चुनौतियां थीं.
# एक तो वो एक्सप्रेशन क्वीन कहलाने वाली श्रीदेवी की बेटी हैं. उनकी मां ने जो पैमाना सेट किया है उसपर उन्हें खरा उतरना है. जज करने के लिए तमाम क्रिटिक नाखून तेज़ किए हुए बैठे होंगे. # दूसरा ये कि अपनी पहली ही फिल्म में उन्हें आर्ची के जूतों में पैर डालने थे. 'सैराट' की आर्ची एक आइकॉनिक किरदार बन गई हैं. रिंकू राजगुरु ने जो 'सैराट' में कर दिखाया है उसे दोहराना किसी सीज़ंड एक्ट्रेस के लिए भी महा-टास्क होता, डेब्यूटेंट की तो बात ही छोड़िए. # तीसरी चुनौती थी नेपोटिज्म के इल्ज़ामात. ऊपर से फिल्म भी करण जोहर की बनाई हुई है जो स्टार किड्स पर मेहरबान होने के लिए पहले से ही बदनाम हैं. ऐसे में आपके लाए 7 नंबर भी 3 माने जाने का रिवाज़ है. उनको इससे भी जूझना था.
जाह्नवी इन सब चुनौतियों से कामयाबी से लड़ गई हैं. रोमांस वाले फ्रंट पर भले ही वो थोड़ी कमज़ोर दिखी हो लेकिन बाकी सब उन्होंने शानदार ढंग से कर दिखाया है. हमारे साथी श्वेतांक को ये बात कहनी होती तो वो कहते 'काफी अच्छा खेलीं जाह्नवी'.
जाह्नवी, उम्मीदों से बढ़कर.
जाह्नवी, उम्मीदों से बढ़कर.

सेकण्ड हाफ में नज़र आनेवाली फ्रस्ट्रेटेड जाह्नवी ज़्यादा कन्विंसिंग लगती है. रोने वाले तमाम सीन्स में उनकी एक्टिंग एफर्टलेस लगती है. ग़म, गुस्सा, चिढ़ सब सही ढंग से व्यक्त कर पाई हैं वो. इतना कि आपको हैरानी होती है कि ये ट्रेलर वाली जाह्नवी तो नहीं ही है.
एक सीन में जाह्नवी और ईशान की सड़क पर लड़ाई हो रही होती है. वो सीन सबसे बेहतरीन बन पड़ा है. वो बार-बार ईशान से कहती हैं कि 'हां, सब ,मेरी ही ग़लती है न'. उस वक़्त कहीं न कहीं ये भी लगता है कि वो तमाम आलोचकों से सवाल कर रही हैं. जैसे श्रीदेवी की बेटी होना या 'सैराट' के रीमेक से डेब्यू करना उनका अक्षम्य अपराध हो.
वही सीन.
वही सीन.

फिल्म के क्लाइमैक्स सीन में कुछ ट्विस्ट है. उनके लिए भी जिन्होंने 'सैराट' देखी है. अगर 'सैराट' का क्लाइमैक्स आपके पैरों के नीचे से ज़मीन खींच लेता है, तो 'धड़क' का क्लाइमैक्स आप पर छत ही गिरा देगा. बावजूद इसके कि आपको क्या होने वाला है इसका क्लियर हिंट होता है.
मैं वहीं शख्स हूं जिसने कहा था कि 'धड़क' वाला जिंगाट देखने के बाद मेरी 'धड़क' देखने की ख्वाहिश मर गई है. मुझे ख़ुशी है कि मैंने पूर्वाग्रह को किनारे रखकर फिल्म देखने का फैसला किया. ऐसा नहीं है कि फिल्म में सब अच्छा ही अच्छा है. कुछेक लूपहोल्स भी हैं लेकिन उन्हें नज़रअंदाज़ किया जा सकता है. 'सैराट' एवरेस्ट पहाड़ जैसी भव्य फिल्म है. आर्ची और परश्या के किरदार इंडियन सिनेमा के इतिहास में अमर हो जाएंगे एक दिन. लेकिन जाह्नवी और ईशान भी 'सैराट' की महासफलता के आगे कदम टिकाकर खड़े हैं. मज़बूती से. उनकी हौसलाअफज़ाई तो बनती ही है.
सैराट का पोस्टर.
सैराट का पोस्टर.

सहकलाकारों में लगभग सभी उम्दा है. ईशान के दोस्त अंकित बिष्ट और श्रीधर वत्सर काफी प्रभावित करते हैं. आशुतोष राणा तो खैर हैं ही बढ़िया एक्टर.
कुल-मिलाकर 'धड़क' निराश करने वाला अनुभव कतई नहीं है. अगर आप दिमाग में 'सैराट' लेकर न जाएं तो और ज़्यादा एन्जॉय कर पाएंगे. अच्छी प्रेम कहानियों को तरसते बॉलीवुड के लिए 'धड़क' वेलकम चेंज है. आज के दौर में जहां प्रेम में भी कैलकुलेटेड रिस्क लेने की प्रथा हो वहां सर-धड़ की बाज़ी लगाने वाला, बिना अंजाम की परवाह किए एक्ट करने वाला ये इश्क आपको यकीनन पसंद आएगा.


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