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फिल्म रिव्यू- देवरा

Jr. NTR, Saif Ali Khan और Janhvi Kapoor की पैन-इंडिया फिल्म Devara कैसी है, ये रिव्यू पढ़कर जानिए.

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'देवरा' के एक सीन में NTR जूनियर. ये RRR की रिलीज़ के बाद उनकी पहली फिल्म है.

फिल्म- देवरा 
डायरेक्टर- कोरताला सिवा 
एक्टर्स- Jr. NTR, सैफ अली खान, जाह्नवी कपूर, शाइन टॉम चाको, प्रकाश राज, श्रुति मराठे
रेटिंग- ** (2 स्टार्स)

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एसएस राजामौली. अपने दौर का सबसे दिग्गज फिल्मकार. मगर उनकी फिल्मों में सिनेमा का भला से ज़्यादा, नुकसान किया है. कैसे? वो हम आगे समझेंगे.

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राजामौली के साथ एक अभिशाप जुड़ गया है. उनकी फिल्म में जो भी एक्टर काम करता है, उसे अपने करियर में आगे संघर्ष करना पड़ता है. उदाहरण के तौर पर आप प्रभास को ले लीजिए. उन्होंने 'बाहुबली' में काम किया. उसके बाद अगले 7-8 सालों तक वो एक क्लीन हिट के लिए तरसते रहे. 'कल्कि 2898 AD' ने काफी हद तक उनकी इस कमी को पूरा करने की कोशिश की है. मगर उसकी पुख्तगी में अभी समय लगेगा.

दूसरे उदाहरण हैं राम चरण. उन्होंने राजामौली की RRR में काम किया. इसके बाद उन्होंने 'आचार्य' नाम की फिल्म में काम किया. जिसे कोरताला सिवा ने डायरेक्ट किया था. 'आचार्य' राम चरण के करियर की सबसे बड़ी फ्लॉप फिल्मों में से एक रही. क्रिटिक्स ने लेफ्ट-राइट-सेंटर जो झाड़ा, सो अलग.

इसके तीसरे उदाहरण बनने जा रहे हैं जूनियर NTR. NTR ने भी RRR में राम चरण के साथ पैरलेल लीड रोल किया था. RRR के फॉलो अप के लिए उन्होंने भी कोरतारा सिवा का हाथ थामा. उन्होंने 'देवरा' नाम की फिल्म में काम करना चुना. जो कि सिनेमाघरों में रिलीज़ हो चुकी है. ये पूरी भूमिका, उसी फिल्म की समीक्षा का हिस्सा है.

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'देवरा' एक से ज़्यादा मायनों में राजामौली की फिल्मों और फिल्ममेकिंग का शिकार होती है. क्योंकि साउथ के तकरीबन हर डायरेक्टर के भीतर अपनी 'बाहुबली' बनाने की चाहत है. चाहत और हक़ीकत में फर्क होता है. काबिलियत का. विज़न का. कागज़ पर लिखे हर हर्फ को परदे पर उसी करीने से उतारने के कन्विक्शन का. ये बात उन फिल्ममेकर्स को जितनी जल्दी समझ आ जाए, सिनेमा के लिए उतना बेहतर रहेगा. ये राजामौली के खिलाफ रैंट नहीं है. सोशल रीमाइंडर है.

'देवरा' की कहानी फ्लैशबैक में चालू होती है. 1984 में रत्नागिरी के पास एक गांव है. यहां के लोगों ने समुद्र को बचाने के लिए अंग्रेज़ो के खिलाफ जंग लड़ी थी. मगर आज़ादी के बाद उन लोगों की बेकद्री हुई. इसलिए अब ये लोग समुद्र के रास्ते आने वाले सामानों की स्मग्लिंग करके अपना जीवनयापन कर रहे हैं. यही उनके कबीले का मुख्य पेशा है. समुद्री तस्करों के इस गैंग का मुखिया है देवरा. सब लोग उसका सम्मान करते हैं. इस बात से देवरा का करीबी दोस्त और उसके गैंग का सदस्य भैरा चिढ़ता है.  

एक दिन स्मग्लिंग के दौरान कोस्ट गार्ड का जवान देवरा और उसकी गैंग को रंगे हाथों पकड़ लेता है. उन्हें देशभक्ति से लबालब एक लेक्चर देता है. जिसके बाद देवरा का ह्रदय परिवर्तन हो जाता है. वो फैसला करता है कि आज के बाद उसके गांव का कोई भी व्यक्ति स्मग्लिंग नहीं करेगा. ये बात भैरा समेत कुछ लोगों को पसंद नहीं आती. इसलिए भैरा, देवरा की हत्या की प्लैनिंग करता है. वो उसकी हत्या कर पाता है कि नहीं, यही फिल्म की कहानी है. मगर इसमें एक ट्विस्ट है.  

अमूमन साउथ इंडिया में जो फिल्में बनती हैं, वो सुपरस्टार्स के फैन्स को केटर करने के लिए बनाई जाती हैं. क्योंकि वो अपनी चहेते स्टार्स को उसी अंदाज़ में देखना चाहते हैं. जहां प्रयोगधर्मी हुए, स्टारडम पर ग्रैविटी हावी होने लगती है. इसलिए बिल्कुल रिक्स नहीं लेने का! मगर 'देवरा' राजामौली को इम्प्रेस करने के मक़सद से बनाई गई फिल्म लगती है. क्योंकि ये भी 'बाहुबली' की ही तरह एक पिता और बेटे की कहानी है. ये दोनों रोल एक ही एक्टर ने किए हैं. फिल्म का क्लाइमैक्स डिट्टो उसी सवाल के साथ खत्म होता है कि 'कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा?' कमोबेश सेम फैशन में. जो कि सेकंड हैंड एंबैरेसमेंट जैसा लगता है.  

दूसरी चीज़ जो 'बाहुबली' ने शुरू की, जिसका खामियाज़ा एक दर्शक होने के नाते हमें भुगतना पड़ता है, वो है सीक्वल कल्चर. यानी एक कहानी दो या तीन हिस्सों में तोड़कर दिखाना. आज की तारीख में बमुश्किल ही बड़े बजट पर कोई ऐसी फिल्म बन रही है, जिसकी पूरी कहानी हमें एक ही फिल्म में देखने को मिल जाए. ये बिजनेस मॉडल प्रोड्यूसर्स के लिए लाभकारी हो सकता है. अगर हमें लंबा चलना है, तो वित्त और चित्त का सही तालमेल बनाकर चलना होगा. आर्ट सिर्फ कॉमर्स से ड्राइव नहीं होना चाहिए.  

ख़ैर, 'देवरा' का फर्स्ट हाफ सेट-अप में निकलता है. एक धुआंधार इंटरवल ब्लॉक और भारी बिल्ड-अप के बाद सेकंड हाफ शुरू होता है. मगर ऐसा लगता है कि फर्स्ट हाफ के बाद कोरताला सिवा की स्क्रिप्ट के कुछ पन्ने कहीं गायब हो गए. क्योंकि पूरी पिक्चर बिखर जाती है. देवरा एक्वामैन सरीखा देवता बन जाता है. शार्क को उसने अपनी सवारी बना रखी है. इसके बाद एक अटपटा सा क्लाइमैक्स आता है और एक (कॉन्ट्राइव्ड) क्लिफहैंगर के साथ फिल्म खत्म हो जाती है. 

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ये इस फिल्म का सबसे खूबसूरत शॉट है. 

कोरताला सिवा का स्क्रीनप्ले एकदम फ्लैट है. फिल्म में एलीवेशन वाले जो भी गिने-चुने सीन्स हैं, उसमें लिखावट का कोई योगदान नज़र नहीं आता. या तो वो एक्शन सीक्वेंस के दौरान आते हैं, या अनिरुद्ध के बैकग्राउंड स्कोर की बदौलत. जब आपके पास दो-दो NTR हों, तो बाकी एक्टर्स डायरेक्टर के सुविधानुसार कहीं गायब हो जाते हैं. सैफ अली खान ने भैरा का रोल किया है. वो डरावना किरदार है. मगर सिर्फ फेशियल एक्सप्रेशन से. क्योंकि उसे करने के लिए कुछ दिया ही नहीं गया. कहने को तो जाह्नवी कपूर फिल्म की लीडिंग लेडी हैं. मगर वो स्क्रीन पर पहली बार सेकंड हाफ में दिखती हैं. पूरी फिल्म में वो शायद 10 मिनट के लिए दिखाई देती हैं, जिसमें गाने भी शामिल हैं. जो कि अपने आप में शर्मिंदगी का सबब है.

'देवरा' पूरी तरह से NTR की फिल्म है. जिसे वो खुद भी तमाम कोशिशों के बावजूद एक स्ट्रिक्ट्ली औसत फिल्म होने से बचा नहीं पाते. आपने कई बार सुना होगा कि इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो आपने पहले नहीं देखा होगा. 'देवरा' के केस में वो बात बिल्कुल फिट बैठती है. सिवाय एक एक्शन ब्लॉक के. फिल्म में एक सीन है, जहां NTR अपनी कटार से व्यक्ति को मारते हैं. उसके शरीर से निकलता खून, जो आसमान में लटके आधे चांद को पूरा कर देता है. इस फिल्म में वो इकलौता ब्रिलियंस वाला मौका है. बाकी आपकी तरह मैं भी मायूस हूं. लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है. दिल दुखा है लेकिन टूटा तो नहीं है. और उम्मीद का दामन छूटा तो नहीं है.  

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