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वेब सीरीज़ रिव्यू - क्रिमिनल जस्टिस: अधूरा सच

'क्रिमिनल जस्टिस' अपने किरदारों को सिर्फ किसी थ्रिलर गेम का सब्जेक्ट बनाकर नहीं छोड़ती, उनके मानवीय पक्ष को भी पूरी जगह देती है.

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मासूमियत और उसके जबरन हनन से क्या होता है, ऐसे परिणामों पर बात करता है शो.

क्रिमिनल जस्टिस का तीसरा सीज़न ‘क्रिमिनल जस्टिस: अधूरा सच’ डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ हो चुका है. पंकज त्रिपाठी का किरदार माधव मिश्रा फिर लौटा है, एक नए केस के साथ. उनके साथ स्वास्तिका मुखर्जी, श्वेता बासु प्रसाद, पूरब कोहली, गौरव गेरा और उपेन्द्र लिमये भी इस सीज़न में नज़र आएंगे. ‘क्रिमिनल जस्टिस 3’ कैसा शो है, आज के रिव्यू में यही जानेंगे. आगे बढ़ने से पहले बता दें कि ये सिर्फ शो के शुरुआती छह एपिसोड्स का रिव्यू है.  

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शो खुलता है एक फैमिली से. ये कोई आम परिवार नहीं. इनकी पहचान है घर की बेटी ज़ारा से. ज़ारा एक चाइल्ड एक्ट्रेस है. टीवी पर एक पॉपुलर शो का हिस्सा है. घर में भले ही ज़ारा की चले या न चले, लेकिन उसकी अहमियत आपको पहले सीन से ही समझ आ जाएगी. ड्रॉइंग रूम में ज़ारा की बड़ी तस्वीर अपने आप में बहुत कुछ कह देती है. उसी तस्वीर के सामने बैठकर ज़ारा की मां उसका काम मैनेज कर रही है. उसके पिता ज़ारा के एक्टिंग असाइनमेंट्स के पैसे मंगवा रहे हैं. सबसे छोटी ज़ारा घर चला रही है. एक दिन वही ज़ारा गायब हो जाती है. कुछ समय बाद पुलिस को उसकी लाश मिलती है. सबसे पहला शक जाता है उसके भाई मुकुल पर. मुकुल और ज़ारा के रिश्तों में तनाव, घटनास्थल पर मिले सबूतों का हवाला देकर पुलिस उसे अरेस्ट कर लेती है.  

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श्वेता बासु प्रसाद का किरदार इस बार माधव मिश्रा के खिलाफ केस लड़ता है. 

जब ये घटना न्यूज़ बन जाती है तो पहुंचती है माधव मिश्रा तक. जो न्यूज़ देखकर कहते हैं कि अब मीडिया की पार्टी होगी. अगले कई दिनों तक सिर्फ यही न्यूज़ चलेगी. इस केस में माधव की हिस्सेदारी सिर्फ मीडिया पर की गई टिप्पणी तक ही नहीं रहती. मुकुल की मां उनके घर पहुंचती हैं. चाहती हैं कि वो मुकुल का केस लड़ें. माधव मान जाता है. जब पूरी दुनिया मुकुल को दोषी मान चुकी है, ऐसे में माधव अपना केस कैसे बचा पाएगा, यही शो का मेन प्लॉट है.  

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अगर आपने ‘क्रिमिनल जस्टिस’ के पहले दो सीज़न देखे होंगे, तो एक बात जानते होंगे. ये शो सिर्फ केस के इर्द-गिर्द बनकर नहीं सिमट जाता. केस में उलझने से पहले उन लोगों की ज़िंदगियां कैसी थी? किन हालात में बात यहां तक पहुंची? केस का उनकी मनोदशा पर क्या फर्क पड़ता है? रिश्तों में क्या कसाव पड़ता है? ऐसी सभी बातों को शो में जगह देने की कोशिश की गई. केस में शामिल लोगों को सिर्फ एक थ्रिलर गेम का सब्जेक्ट बनाकर नहीं छोड़ा गया. जहां हमें बस ये जानने में रुचि हो कि मर्डर किसने किया. उनके आगे-पीछे की ज़िंदगी से कोई सरोकार नहीं हो. ‘क्रिमिनल जस्टिस: अधूरा सच’ भी पहले आए सीज़न का ही पैटर्न फॉलो करता है.  

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इस सीज़न की ज़रूरी थीम है चाइल्डहुड ट्रॉमा. 

इस सीज़न में विक्टिम और आरोपी दोनों ही बच्चे थे. एक जो अपनी उम्र से पहले ही बड़ी हो गई. ‘लड़कियों को ये दुनिया बड़ा नहीं होने देती’ जैसी बातें अपने इंटरव्यू में करती. एक तरह से अपनी फैमिली की आर्थिक ज़िम्मेदारी उठाती. दूसरा उसका भाई, जो बाकी घरवालों की तरह ज़ारा की पॉपुलैरिटी के साए में जी रहा था. पाता कि खुद से ज़्यादा लाड़ और अटेंशन बहन को मिल रहा है. जबकि वो खुद इतना बड़ा कहां हुआ कि घरवाले प्यार जताना बंद कर दें. पेरेंट्स के लिए हर एक फैसले का बच्चों पर कितना गहरा असर पड़ता है, उसे ये सीज़न अच्छे से एक्सप्लोर करता है. साथ ही बात करता है मां-बाप के लिए गलत फ़ैसलों से उपजने वाले ट्रॉमा पर. वो ट्रॉमा जिसके लिए बच्चों के नादान दिमाग को कोई तैयार नहीं करता. शायद पेरेंट्स खुद उससे संभलने की जद्दोज़हद में ऐसा करना भूल जाते हैं. अर्थात किसी भी इंसान की तरह ज़रूरी नहीं कि पेरेंट्स हमेशा परफेक्ट हों.  

सिर्फ मर्डर मिस्ट्री के इर्द-गिर्द न सिमट कर रह जाने वाली बात ही शो को उसका मानवीय पक्ष भी देती है. पुराने सीज़न से माधव मिश्रा के अलावा उनकी पत्नी रत्ना का किरदार भी लौटा है. ये रोल किया है खुशबू अत्रे ने. रत्ना अपने घर में ब्यूटी पार्लर चलाती है. जैसा जुगाड़ बने, उसके दम पर चलाती है. न कि अपने कस्टमर्स की इनसिक्योरिटी के दम पर. उनकी और माधव मिश्रा की केमिस्ट्री फिल्मी नहीं. लेकिन ज़िंदगी को ज़रूरी हो, वैसी लगती है. माधव की हरकतें भले ही ऐसी हों कि पहली नज़र में आप उसे सीरियसली न लें. लेकिन वो न्याय, ईमानदारी जैसी बातों को हल्के में नहीं लेता. ‘न्याय बदला नहीं, बदलाव की उम्मीद है’ जैसी बात को मानता है. माधव के रोल में पंकज त्रिपाठी नैचुरल लगते हैं. चाहे वो घर के सीन हों या कोर्ट के, वो किरदार ब्रेक नहीं करते. उनके वन लाइनर्स बीच-बीच में शो को उसका कॉमेडिक रीलीफ भी देते हैं.  

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माधव मिश्रा बने पंकज त्रिपाठी आपको लगातार एंटरटेन करते हैं.  

उनके अलावा स्वास्तिका मुखर्जी ने भी अहम किरदार निभाया है. वो शो में मुकुल की मां बनी हैं. किसी भी तरह बस अपने बेटे को बचाना चाहती है. अब तक जितने भी एपिसोड्स में स्वास्तिका को देखा, यही लग रहा है कि इस किरदार में और भी कुछ है. ऐसा जो बाहर आने का इंतज़ार कर रहा है. शायद ऐसा न भी हो. छह एपिसोड तक शो ऐसा बिल्ड अप तैयार कर देता है कि आप क्लाइमैक्स का इंतज़ार करेंगे. आखिर दो एपिसोड पूरे सीज़न के साथ इंसाफ कर पाते हैं या नहीं, ये तो समय आने पर ही पता चलेगा.    

वीडियो: मूवी रिव्यू - लाइगर

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