ये सेटिंग ऑलमोस्ट मिर्ज़ापुर टाइप है, जैसा कि हमने आपको पहले बताया. मगर यहां बेटा अपने पिता से वैलिडेशन की चाहत नहीं रखता. उसका सपना है रुद्रकुंड का किंग बनना. इसके लिए वो पिता की छत्रछाया में रहने की बजाय अपनी अलग पहचान बनाता है. वो बोर्डिंग स्कूल में रह रहे बच्चों को ड्रग्स बेचता है. मगर दिक्कत तब बढ़ जाती है, जब एक-एक करके स्कूल के बच्चे मरने लगते हैं. इसके पीछे मसान नाम के एक मॉनस्टर का हाथ बताया जाता है. यहां सीन में आते हैं उस स्कूल के टीचर जयंत और डीएसपी रत्ना संखावर. ये लोग मिलकर इस सीरियल किलिंग को रोकने और हत्यारे को पकड़ने की कोशिश करते हैं. मगर ये सब होता है फुल ऑन ट्विस्ट और टर्न के साथ. इस सीरीज़ में इतने ट्विस्ट हैं कि कहानी का सबसे बड़ा राज खुलने के बाद भी एक खुलासा होता है.

रुद्रकुंड के विधायक मनी रनौत. ये पहले एक नेगी नाम के फैक्ट्री मालिक के खास आदमी हुआ करते थे. इन्होंने अपने मालिक को मारकर उनकी सारी संपत्ती हड़प ली.
'कैंडी' अपने होने को सार्थक बनाने के लिए हर वो चीज़ करती है, जो की जा सकती थी. इसी कड़ी में वो ढेर सारे रेलेवेंट मसलों को कवर करने की कोशिश करती है. इसमें ड्रग्स से लेकर सेक्शुअल हैरसमेंट, पारिवारिक कलह, सीरियल किलिंग और स्कूल में सीनियर्स के हाथों बुलिंग तक शामिल है. हर विषय को उतनी ही गंभीरता के साथ डील करने की कोशिश भी की जाती है. मगर वो पूरी तरह से वर्क आउट नहीं हो पाता. मगर बिलकुल बिखराव वाली स्थिति भी नहीं बनती है. हालांकि इस प्रोसेस में ये सीरीज़ कई बार लाउड और ओवर द टॉप भी चली जाती है. मगर इस दौरान इसका थ्रिल फैक्टर बरकरार रहता है. ये सीरीज़ दिखती सुंदर है. फिल्म का कैमरावर्क अच्छा है. वो कहानी के लोकेशन को एस्टैब्लिश करने के साथ-साथ आंखों को भी सुहाता है. रुद्रकुंड नाम के फिक्शनल शहर को फिल्म के नैरेटिव से जोड़ने की कई बार कोशिश की जाती है. मगर ये कोशिश नाकाम साबित होती है. हालांकि एक्टर्स की मजबूत परफॉरमेंस 'कैंडी' को सिर्फ आई कैंडी बने रहने से बचा लेती है.

ये हैं मनी रनौत के अयोग्य बेटे वायु, जिन्हें अपनी योग्यता अपने पिता के सामने साबित नहीं करनी है.
इस सीरीज़ में ऋचा चड्ढा ने डीएसपी रत्ना संखावर का रोल किया है. इस महिला की एक बड़ी सैड सी बैकस्टोरी है, जो फ्लैशबैक की मदद से हमें दिखाई जाती है. सीरीज़ के शुरुआती एपिसोड्स में स्कूली बच्चों से डील करतीं ऋचा को देखना मजेदार है. वो एक बच्चे को मिड साइज़ बुली कहकर बुलाती हैं, जो कि बड़ी टेंस सिचुएशन में फनी साउंड करता है. सीरीज़ में एक सीन है, जब रत्ना अपनी 3-4 साल की बच्ची को जान से मारने की कोशिश करती है. क्योंकि उसे लगता है कि वो एक अच्छी मां नहीं है. ये सीन 'होमलैंड' सीरीज़ एक सीन से काफी मिलता-जुलता है. और दोनों ही सीरीज़ में नायिका की इस कदम के पीछे की वजह भी कमोबेश सेम है.

डीएसपी रत्ना संखावर जिन्हें लगता है कि न वो अच्छी पत्नी बन पाईं, न अच्छी मां बन पाईं और न ही अच्छी पुलिस ऑफिसर बन पा रही हैं. इस रियलाइज़ेशन के बाद इनके करियर की दिशा और दशा दोनों बदल जाती है.
सिर्फ ऋचा चड्ढा ही नहीं, इस सीरीज़ के तकरीबन सभी प्राइमरी कैरेक्टर्स की प्रॉपर बैकस्टोरी है. जैसे रोनित रॉय का निभाया जयंत नाम का स्कूल टीचर अपनी बेटी की मौत से उबर नहीं पा रहा है. इस वजह से उसे रात को नींद नहीं आती. इसलिए वो पूरी श्रद्धा से इस सीरियल किलिंग वाले मामले को सुलझाने में लगा है. मानों इस केस से उसका कुछ पर्सनल कनेक्शन हो. मनी रनौत उर्फ भैय्याजी की अलग कहानी चल रही है. जो उनके बेटे से जुड़ी हुई नहीं है. भैय्याजी का रोल किया है मनु ऋषि चड्ढा ने. उनके बेटे वायु की अपनी पिक्चर चल रही है. मगर जब इन सभी किरदारों के ट्रैक आपस में मर्ज होते हैं, तो इस सीरीज़ के लेयर्स खुलने शुरू होते हैं. जो माइंड ब्लो करने वाला तो नहीं मगर ठीक-ठाक एंगेजिंग है.

ये हैं स्कूल टीचर जयंत. जो अपनी बेटी के गुज़रने के ग़म से बाहर नहीं आ पा रहे. इसलिए स्कूल के बच्चों के मरने वाले मामलों को पर्सनल बना लेते हैं.
'कैंडी' अपनी तरह की पहली सीरियल किलर सीरीज़ है, जिसमें एक से ज़्यादा सीरियल किलर्स हैं. हालांकि उन किलर्स के पास लोगों को मारने की कोई ठोस या वाजिब वजह नहीं है. इस सीरीज़ की सबसे बड़ी दिक्कत यही है. तमाम अच्छी चीज़ों के बावजूद ये ऑथेंटिसिटी वाले मामले में मार खा जाती है. इस सीरीज़ में जो कुछ भी हो रहा है, वो बहुत यकीनी नहीं है. हमेशा आपको ये फील होता रहता है कि आप कोई बनाई हुई कहानी देख रहे हैं. मगर 'कैंडी' कभी धीमी या बोरिंग नहीं होती. वो पूरे टाइम फुल स्पीड में चलती है. और लगातार 8 एपिसोड में वो रफ्तार बनाए रखना कोई आसान या हल्की बात नहीं है. उसमें ढेर सारी मेहनत लगती है.
अगर इंडिया में बन रहे कॉन्टेंट के लिहाज़ से देखें, तो 'कैंडी' ठीक सीरीज़ लगती है. मगर जब आप इसकी तुलना किसी विदेशी सीरीज़ से करेंगे, तो निराश होंगे. इस सीरीज़ में वो पैनापन नहीं होना, एक दर्शक होने के नाते आपको चुभता है. डायरेक्टर आशीष आर. शुक्ला यहां वो नहीं कर पाए हैं, जो उन्होंने अपनी पिछली सीरीज़ 'अनदेखी' में की थी. मगर आप इस सीरीज़ की अनदेखी कर सकते हैं.
'कैंडी' में ऑन एन ऐवरेज 40-40 मिनट के कुल आठ एपिसोड्स हैं. इसे आप स्ट्रीमिंग प्लैटफॉर्म वूट पर देख सकते हैं.