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गांधी ने मुसलमान से इश्क के लिए लड़की को बहुत डांटा था!

जर्नलिस्ट शीला रेड्डी की किताब 'मिस्टर एंड मिसेज जिन्ना' का हिस्सा.

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फोटो - thelallantop
ये आर्टिकल मिन्हाज मर्चेंट ने वेबसाइट 'डेली ओ' के लिए लिखा है. मिन्हाज ने राजीव गांधी की जीवनी लिखी है. वो कई बड़े मीडिया हाउस में रह चुके हैं. वेबसाइट की इजाजत से ये आर्टिकल हम आपको अनुवाद करके पढ़ा रहे हैं.


आजकल हिंदुत्व का माहौल जिस तरह गरम है, ऐसे में हिंंदू-मुस्लिम रिश्तों पर महात्मा गांधी के विचार ध्यान खींचते हैं. और वो वैसे तो कतई नहीं लगते, जैसा वामपंथी-लिबरल इतिहासकार बताते हैं.

शीला रेड्डी की एक किताब आई है, 'मिस्टर एंड मिसेज जिन्ना'. इसमें उन्होंने महात्मा गांधी की अलग सोच के बारे में विस्तार से बताया है. साथ ही जिन्ना दंपत्ति की कहानी भी सुनाई है, जो उस वक्त बंबई में सबके आकर्षण का केंद्र थे.

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jin_032717123024_033117080559 'मिस्टर एंड मिसेज जिन्ना' का कवर पेज

जिन्ना की बीवी रट्टी बहुत मॉडर्न थीं

लेकिन महात्मा के बारे में बात करने से पहले बताते हैं रट्टी के बारे में. वो अंग्रेजों के मुलाजिम सर दिनशॉ पेटी की बेटी थीं. वो पारसी लोग थे. रट्टी एक आजादख्याल लड़की थीं. जब वो 18 साल की थीं तो उन्होंने दकियानूसी सोच रखने वाले 42 साल के जिन्ना को प्रपोज किया था. तो रट्टी के पिता ने जिन्ना के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी. उन्होंने जिन्ना पर रट्टी को किडनैप का आरोप लगाया. लेकिन रट्टी ने जज के सामने कहा,'मिस्टर जिन्ना ने मुझे नहीं, मैंने जिन्ना को किडनैप किया है.'

ये सब उसी वक्त हो रहा था, जब महात्मा गांधी आजादी के लिए आंदोलन चला रहे थे. बेनजीर भुट्टो की भतीजी फातिमा भुट्टो ने 'मिंट' में लिखा है,

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'इस किताब में सबसे ज्यादा ध्यान किसी ने खींचा है, तो वो हैं रट्टी पेटी. कोई कैसे उस औरत की तारीफ नहीं करेगा. जिसने शिमला में हुए असेंबली सेशन में वॉयसराय के सम्मान में खड़े होने से इंकार कर दिया. रट्टी वॉयसराय लॉर्ड चैम्सफोर्ड के सामने भी खड़ी नहीं हुई थीं. इसके बजाय उन्हें नमस्ते बोला. चैम्सफोर्ड ने धमकी दी कि वो उनके पति का राजनीतिक भविष्य बर्बाद कर देंगे. रट्टी को बोला गया कि वो वैसे ही करें जैसा रोमन रोम में करते हैं. रट्टी ने जवाब दिया, मैंने बिल्कुल वही किया है. आप अभी भारत में हैं और भारत में ऐसे ही सलाम-दुआ की जाती है. इसके बाद रट्टी को कभी वॉयसराय से मिलने नहीं बुलाया गया. लेकिन रट्टी को कहां इससे फर्क पड़ने वाला था.'
मि. एंड मिसेज जिन्ना
मिस्टर एंड मिसेज जिन्ना

किताब के मुताबिक, नेहरू परिवार बंद ख्याल का था
किताब ये भी खुलासा करती है कि एक सदी पहले नेहरू परिवार किस कदर बंद ख्यालात वाला था. और इन सबके सबसे बड़े जिम्मेदार थे मोतीलाल नेहरू. जवाहर लाल नेहरू के पिता. अपनी बेटी विजय लक्ष्मी पंडित के अफेयर को रोकने के लिए वो किसी भी हद तक गए. लक्ष्मी एक मुसलमान पत्रकार सैयद हुसैन से इश्क करती थीं. हुसैन ऑक्सफोर्ड से पढ़ कर लौटे थे.

किताब में लिखा है,


बात सिर्फ सोच की ही नहीं थी. दोनों प्यार करने वालों को अलग करने की पूरी प्लानिंग की गई. तय हुआ कि दोनों को अलग-अलग गांधी के आश्रम में भेज दिया जाए. हुसैन को अहमदाबाद में उस आश्रम में भेजना आसान था. गांधी अभी कांग्रेस के सबसे बड़े नेता तो नहीं हुए थे लेकिन जल्द ही होने वाले थे. हुसैन गांधी को बहुत मानता था. लेकिन असली मशक्कत तो लक्ष्मी को वहां भेजने में आई. एक दिन गांधी, कस्तूरबा संग आनंद भवन पहुंचे. वहां उनको इस नई-नई हुई आफत के बारे में पता चला. मोतीलाल नेहरू चाहते थे कि लक्ष्मी कुछ दिन आश्रम में रहे. और हारकर लक्ष्मी को गांधी के साथ जाना पड़ा.
रट्टी की ही तरह लक्ष्मी भी एक आजादी पसंद लड़की थी. आश्रम के कठिन जीवन ने उसका दिल मैला नहीं किया. हालांकि वहां उसे अपने कपड़े खुद धोने पड़ते थे, जमीन पर ही सोना पड़ता था, बिना नमक-मिर्च वाला खाना खाना पड़ता था. ये जिंदगी आनंद भवन के ऐशोआराम वाली जिंदगी से काफी अलग थी.
उधर दूसरी तरफ जवाहर कैंब्रिज से पढ़ाई पूरी कर लौट आए थे. और आनंद भवन में शानदार जिंदगी जी रहे थे.
भाई जवाहर के साथ विजय लक्ष्मी पंडित
भाई जवाहर के साथ विजय लक्ष्मी पंडित

महात्मा गांधी की मुसलमानों पर सोच के बारे में किताब कुछ और कहती है
आश्रम में लक्ष्मी को जिस बात ने सबसे ज्यादा चौंकाया, वो थी गांधी की मुसलमानों के बारे में बुरी सोच. वो उस वक्त वैसा ही सोचते थे, जैसा सौ सालों बाद अबके कट्टर हिंदू संगठनों की सोच है. एक खत में लक्ष्मी ने लिखा था,
'गांधी उसके और हुसैन के प्यार को बड़ी हिकारत से देखते हैं. वो मुझसे कहते हैं कि तुम हुसैन को एक भाई के अलावा किसी और नजरों से कैसे देख सकती हो. तुम्हें उससे प्यार करने की इजाजत किसने दी. एक मिनट के लिए भी तुम एक मुसलमान को प्यार भरी नजरों से कैसे देख सकती हो. बीस करोड़ हिंदुओं में तुम्हें कोई भी नहीं मिला दिल लगाने को? उन सबको छोड़ कर तुमने खुद को जिसकी बांहों में गिराया भी तो किसकी बांहों में. एक मुसलमान की!!!
सरूप (लक्ष्मी का बचपन का नाम), अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो मैं किसी मुसलमान के लिए दिल में मुहब्बत लाने की खुद को इजाजत ही नहीं देता. अगर हुसैन मुझे प्रपोज करता तो मैं उसे प्यार से लेकिन कड़े शब्दों में मना कर देता. मैं उसे बताता कि जो भी वो चाह रहा है, वो गलत है. वो मुसलमान है और मैं एक हिंदू. हम कभी साथ नहीं आ सकते. तुम मेरे भाई बन सकते हो लेकिन मैं पति के तौर पर तुम्हें नहीं देख सकती.'
जिन्ना के साथ गांधी, 1944
जिन्ना के साथ गांधी, 1944

ये है लव जिहाद. सौ साल पहले वाला लव जिहाद. हां ये सच है कि जैसे-जैसे आजादी का आंदोलन आगे बढ़ा, वैसे-वैसे महात्मा गांधी की मुसलमानों के लिए सोच भी बदली. उन्होंने पहले विश्व युद्ध के बाद खिलाफत मूवमेंट को भी सपोर्ट किया. और कुछ सालों बाद हिंदुओं ने उन्हें मुसलमानों का समर्थक कहकर बुलाना शुरू कर दिया.

और अभी के भारत में धर्म की राजनीति में नाटकीय बदलाव आ गया है, जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं. नेहरू परिवार के बनाए हुए 70 साल पुराने झूठे सेकुलरवाद का खात्मा हो चुका है. सेकुलरिज्म की सही परिभाषा है, सबकी भलाई, लेकिन तरफदारी किसी की नहीं.

लेकिन आलोचक ये भी कह रहे हैं कि यूपी के सीएम के तौर पर एक हिंदू पुजारी कैसे सारे धर्मों को बराबर नजरों से देख सकता है.
अमेरिका में वो क्रिश्चियन जो अबॉर्शन, प्रवासियों, समलैंगिकों से नफरत करते हैं, अभी देश चला रहे हैं. यूरोप में राजनैतिक पार्टियों ने अपने नाम में क्रिश्चियन शामिल कर लिया है, जैसे कि एंजेला मर्केल की क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन. ब्रिटेन में सिर्फ एक प्रोटेस्टैंट ईसाई ही राज कर सकता है, कैथलिक या एक मुसलमान गद्दी तक नहीं पहुंच सकता.
मजहब हर देश के सिर पर चढ़ कर बोल रहा है. भारत इसका अपवाद नहीं है. ये क्रूर सच्चाई है. अगर हमारे पास और 'रट्टी पेटी' होंगी तो हम धर्म के बारे में कम से कम सोचेंगे.

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