
# जब 13 साल की उम्र में रेल से कटकर आत्महत्या करने पहुंच गए जॉनी लीवर जॉनी लीवर का जन्म 14 अगस्त, 1957 को मुंबई में हुआ था. तब उनका नाम जॉन राव रखा गया था. उनकी पैदाइश के वक्त फैमिली की माली हालत ठीक नहीं थी. पूरा परिवार चॉल में रहता था. समय के साथ आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती चली गई. दिक्कत इतनी बढ़ गई कि उनकी फैमिली को धारावी स्लम में शिफ्ट होना पड़ा. जॉन के पिता प्रकाश राव हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड नाम की कंपनी में काम करते थे. जॉन आंध्रा एजुकेशन सोसाइटी नाम के स्कूल में पढ़ते थे. घर पर चूल्हा जलता रहे, इसके लिए जॉन स्कूल से आने के बाद भी छोटे-मोटे काम करके पैसे कमाते थे. क्योंकि उनके पिता बहुत सारा पैसा शराब पीने में उड़ा देते. घर आकर मारपीट करते. मोहल्ले में किसी से झगड़ जाते. ये चीज़ें जॉन को बहुत परेशान करने लगीं. जब उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ, तो आत्महत्या के इरादे से पास के ही रेलवे प्लैटफॉर्म पर जाकर लेट गए. मगर तभी नज़रों के सामने एक-एक कर उनके परिवार वालों की शक्लें उभरने लगीं. ट्रेन कुछ कदम दूर थी कि जॉन उठ खड़े हुए. सुसाइड का प्लैन कैंसिल कर घर पहुंचे. तब उनकी उम्र कुछ 13 साल रही होगी.
जॉन ने सातवीं के बाद स्कूल जाना बंद कर दिया. वो पैसे कमाना चाहते थे. इसके लिए डांस-कॉमेडी वगैरह किया करते थे. तब कॉमेडी का मतलब स्टार्स की मिमिक्री करना होता था. स्लम में जिसके भी घर फंक्शन होता, वो एंटरटेनमेंट के लिए जॉन को अपने घर ले जाता. उन्हें परफॉर्म करने के बदले एक-दो रुपए मिल जाते थे. उनके स्लम के बगल में एक सिंधी कैंप था. वहां प्रताप जानी और राम कुमार नाम के दो लोग रहते थे. वो जॉन को मिमिक्री वगैरह सिखाते थे. जॉन उन्हें अपना पहला गुरु मानते हैं. एक दिन जॉन, प्रताप और राम कुमार कहीं जा रहे थे. उन्हें साथ जाते देख सिंधी कैंप में बैठे एक शख्स ने जॉन से कहा कि उन्हें इन दोनों लोगों के साथ नहीं रहना चाहिए. उनकी संगत में वो भी शराबी बन जाएंगे. उन्होंने जॉन को सलाह दी कि अपना कुछ करो. जॉन ने पूछा, क्या करूं? उन्होंने कहा कि मैं पेन बेचता हूं. तुम पेन बेचेगा. जॉनी ने कहा सिखाओ. उन सज्जन ने जॉनी को पेन खरीदकर दिया. अगले तीन महीने तक जॉन राव उनके साथ सड़क पर बैठकर पेन बेचते रहे. यहां जॉन को अपनी कला को तराशना का मौका और समय दोनों मिल रहा था. अपने कस्टमर लोगों से स्टार्स की आवाज़ में बात करते थे. इससे हुआ ये कि जिस आदमी ने जॉन को पेन बेचने के बिज़नेस में उतारा था, उनका धंधा ठप होने लगा. क्योंकि सब लोग मज़े के लिए जॉन से पेन खरीदने लगे.

अपने करियर के शुरुआती फेज़ में स्टेज पर स्टैंड अप कॉमेडी करते जॉनी लीवर.
# साबुन फैक्ट्री में लेबर का काम करने वाले जॉन राव कैसे बन गए जॉनी लीवर? जॉन काफी कम उम्र से स्टेज पर शोज़ वगैरह किया करते थे. जब 18 के हुए, तो पिता ने उनकी नौकरी भी हिंदुस्तान लीवर में लगवा दी. जॉन को साबुन बनाने वाली फैक्ट्री के कैटलीस्ट डिपार्टमेंट में लेबर का काम मिला. झाड़ू मारना, चीज़ें एक जगह से उठाकर दूसरे जगह रखने का काम था. मगर जॉन काम से छुट्टी मारकर स्टेज शोज़ करने निकल जाते. क्योंकि इस नौकरी से कुछ खास कमाई नहीं होती थी. ऊपर से सुपरवाइज़र लोग चार बातें सुनाकर चले जाते थे. दूसरी तरफ जब वो स्टेज पर कॉमेडी करने जाते, तब उनके लिए खूब तालियां बजती. परफॉरमेंस के बाद लोग बड़े सम्मान से आकर मिलते. मगर फैमिली और समाज के प्रेशर में जॉन नौकरी छोड़कर फुल टाइम कॉमेडी नहीं कर पा रहे थे. प्रकाश राव को ये डर था कि छुट्टी मारकर कॉमेडी करने जा रहे उनके बेटे की नौकरी न चली.
हमेशा की तरह जॉन एक दिन नौकरी से बंक मारकर स्टैंड अप कॉमेडी करने गए हुए थे. जैसे-तैसे प्रकाश राव ने पता लगाया कि जॉन कहां परफॉर्म करने जा सकते हैं. उन्होंने एक रबर की पाइप उठाई और वेन्यू की ओर चल पड़े. उस दिन जॉन शन्मुखानंद ऑडिटोरियम में परफॉर्म कर रहे थे, जहां तीन हज़ार लोग मौजूद थे. प्रकाश राव जब ऑडिटोरियम पहुंचे तो देखा कि जॉन स्टेज से कॉमेडी कर रहे हैं और ऑडियंस हंस-हंस के पागल हो रही है. प्रकाश राव पहली बार अपने बेटे को परफॉर्म करते हुए देख रहे थे. जॉन ने स्टेज से हाथ में पाइप लिए अपने पिता जी को देख लिया था. उन्हें मजबूत पिटाई का अंदेशा हो गया था. शो खत्म करके जॉन अपने एक दोस्त के घर गए और देर रात छुप-छुपाकर अपने घर पहुंचे.
एक बार उनकी कंपनी यानी हिंदुस्तान लीवर में एक फंक्शन चल रहा था. इस मौके पर जॉन को परफॉर्म करने को कहा गया. जॉन ने नाम लिए बगैर अपने ऑफिस के सभी सीनियर अफसरों की नकल की. खूब तालियां बजी. उनकी इस परफॉरमेंस के बाद यूनियन लीडर सुरेश भोसले उनके पास आए और कहा-
''आज तून पूरे लीवर की कर डाली. आज से तेरा नाम जॉनी लीवर.''इसके बाद से कंपनी में सब लोग उन्हें जॉनी लीवर ही बुलाने लगे. तो ऐसे जॉन राव बन गए जॉनी लीवर.

एक इवेंट के दौरान जॉनी लीवर.
# जॉनी के काम में ऐसा क्या था, जो कल्याण जी-आनंद जी के शो में शत्रुघ्न सिन्हा उन्हें देखने आए? अब छुपने-छुपाने वाली बात नहीं थी, तो जॉनी लीवर खुलकर स्टेज परफॉरमेंस करने लगे. हिंदुस्तान लीवर में 6 साल काम करने के बाद वो उस कंपनी से अलग हो गए. अब वो फुल टाइम स्टैंड अप कॉमिक बन गए थे. शुरुआत में छोटे-मोटे सिंगर्स के शोज़ में कॉमेडी करते थे. इसके बाद जॉनी सोनू निगम के पिता अगम कुमार निगम के शोज़ में परफॉर्म करने लगे. धीरे-धीरे जॉनी लीवर के नाम की चर्चा बढ़ी. कल्याण जी - आनंद जी जैसे नामचीन म्यूज़िक डायरेक्टर जोड़ी ने जॉनी को अपने साथ जोड़ा. अब जॉनी इंडिया समेत दुनिया के कई हिस्सों म्यूज़िक डायरेक्टर जोड़ी के साथ परफॉर्म करते थे. तब एक स्टेज शो के लिए जॉनी को 30 रुपए मिलते थे. जॉनी अधिकतर मामलों में स्टार्स की नकल किया करते थे. अपने एक इंटरव्यू में जॉनी बताते हैं कि स्टेज पर सबसे पहले उन्होंने अशोक कुमार की मिमिक्री की थी. मगर उन्हें शत्रुघ्न सिन्हा की नकल करते देख खूब पसंद किया जाता था.
एक बार कल्याण जी - आनंद जी का शो शुरू होने वाला था. ठीक इसी समय वहां शत्रुघ्न सिन्हा आ धमके. उन्होंने कहा कि वो यहां सिर्फ जॉनी लीवर को देखने आए. जॉनी ने सुना तो घबरा गए कि कहीं शत्रु साहब नाराज़ तो नहीं हो गए. जॉनी उनसे मिलने आए. शत्रुघ्न सिन्हा ने उनसे अपनी नकल करने को कहा. जॉनी उठकर जाने लगे. थोड़ी दूर जाकर वो पूरे शत्रुघ्न सिन्हा वाले अंदाज़ में लौटे. उनकी आवाज़ में डायलॉग वगैरह बोलकर सुनाया. शत्रुघ्न सिन्हा उनसे इम्प्रेस हो गए. इसके बाद सुनील दत्त ने जॉनी को स्टेज पर परफॉर्म करते हुए देखा. वो उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाए. उन दिनों सुनील दत्त एक फिल्म बना रहे थे. उसमें उन्होंने जॉनी लीवर को भी कास्ट कर लिया. 1982 में आई उस फिल्म का नाम था- 'दर्द का रिश्ता'. यहां से जॉनी का फिल्मी करियर शुरू हुआ.

स्टेज पर मिमिक्री करते जॉनी लीवर. प्रताप जानी और राम कुमार नाम के दो लोगों ने मिलकर जॉनी को मिमिक्री सिखाई थी. ये कॉमेडी में जॉनी का पहला स्टेप था.
# सुपरहिट कॉमेडियन बन चुके जॉनी लीवर के लिए कोई फिल्ममेकर रोल्स क्यों नहीं लिखता था? 'दर्द का रिश्ता' से जॉनी का फिल्मी करियर शुरू तो हो चुका था मगर बहुत फल-फूल नहीं पा रहा था. 1986 में आई 'लव 86' में जॉनी का काम नोटिस तो हुआ. मगर अब भी कुछ बड़ा या इवेंटफुल नहीं हो रहा था. इस दौरान जॉनी 'जलवा', 'तेज़ाब', 'जादुगर', 'चालबाज़', 'नरसिम्हा' और 'खिलाड़ी' जैसी फिल्मों में नज़र आए. मगर जिस फिल्म के बाद जॉनी स्टार बने, वो थी 1993 में आई शाहरुख खान की 'बाज़ीगर'. इसमें जॉनी ने एक भुलक्कड़ हाउसहेल्प का रोल किया था. दिनेश हिंगू के साथ फिल्म में उनका बिना चीनी की चाय पीने वाला सीन खूब पसंद किया गया. मगर दिलचस्प बात ये कि इस कैरेक्टर से जुड़ी एक भी लाइन जॉनी को लिखकर नहीं मिली थी. 'बाज़ीगर' की डायरेक्टर जोड़ी अब्बास-मुस्तन ने सिर्फ जॉनी से इतना पूछा-
'आपको इसमें क्या बनाएं? भुलक्कड़ या बहरा?'जवाब में जॉनी ने कहा-
'भुलक्कड़ ठीक है.''बाज़ीगर' में जॉनी के किरदार से जुड़ी सिर्फ इतनी ही बातचीत हुई थी. फिल्म में आप जो कुछ भी देखते हैं, वो सब कुछ जॉनी के दिमाग की उपज थी. 'अनारकली का फोन था. आइस-क्रीम खाना ज़रूरी है' वाला ये पूरा सीक्वेंस जॉनी ने शूटिंग के दौरान खुद बनाया था. शूटिंग के दौरान जॉनी को जो समझ आया, उन्होंने बोल दिया. दिक्कत डबिंग के दौरान शुरू हुई. डबिंग इसलिए की जाती है, ताकि दर्शकों को एक्टर्स का बोला डायलॉग साफ-साफ सुनाई दे. 'बाज़ीगर' की डबिंग के दौरान जॉनी को अपने डायलॉग्स खुद ही याद नहीं आ रहे थे क्योंकि वो कहीं लिखे ही नहीं थे. इसलिए उन्हें ओरिजिनल आवाज़ सुनकर उसकी डबिंग करनी पड़ी.

फिल्म 'बाज़ीगर' के एक सीन में भुलक्कड़ हाउसहेल्प के रोल में जॉनी लीवर. इस सीन में उनके साथी कलाकार थे दिनेश हिंगू.
'अनाड़ी नंबर 1' में जॉनी ने दलेर मेहंदी से प्रेरित एक किरदार निभाया था. वो भी उनकी खुद की क्रिएटिविटी थी. उन्होंने प्रोडक्शन से सिर्फ एक टेप रिकॉर्डर की मांग की थी, जिसमें 'तुनक तुनक' गान फीड हो. मगर थोड़े समय के बाद फिल्ममेकर्स ने जॉनी लीवर के लिए सीन्स न लिखने की आदत बना ली थी. उन्हें लगता था कि जॉनी खुद अपने लिए कुछ मज़ेदार सा क्रिएट कर लेंगे. कई बार तो डायरेक्टर्स को पता तक नहीं होता था कि जॉनी क्या करने वाले हैं. इसी प्रोसेस से जॉनी एक दिन में पांच-पांच फिल्मों की शूटिंग कर डालते थे. क्योंकि उनके कैरेक्टर का फिल्म की कहानी से कुछ खास लेना-देना नहीं होता था. जॉनी अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि वो कभी भी पूरी फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं सुनते थे. वो बस अपना पार्ट शूट करते, जिसे फिल्ममेकर्स जैसे-तैसे कहानी से जोड़ देते थे. # किस जादू से ठीक हुई जॉनी के बेटे की जानलेवा बीमारी? 1984 में जॉनी लीवर की शादी सुजाता से हो गई. इस शादी से उन्हें दो बच्चे हुए. बेटी जैमी और बेटा जेस्सी. जब जेस्सी छोटे थे, तब उन्हें थ्रोट यानी गले में ट्यूमर डायग्नोज़ हुआ. जॉनी अपने बेटे को मुंबई के मशहूर नानावटी अस्पताल लेकर गए. डॉक्टर ने सर्जरी करने की कोशिश की मगर इससे जेस्सी के शरीर को लकवाग्रस्त होने का खतरा था. जॉनी ने सर्जरी के लिए मना कर दिया. धीरे-धीरे वो ट्यूमर बड़ा होने लगा. जॉनी दवा ट्राय कर चुके था, अब बस दुआ का सहारा था. कई लोगों ने कहा बच्चे के लिए प्रार्थना करिए. ईसाइयों में सर्विस नाम की रवायत होती है, जहां सब लोग मिलकर एक-दूसरे की मदद करते हैं. एक-दूसरे के लिए प्रार्थना की जाती है. जॉनी ने सपरिवार इसमें हिस्सा लेना शुरू किया. ये सब करने के कुछ समय बाद जॉनी अपनी फैमिली के साथ अमेरिका गए हुए थे. न्यू जर्सी में एक पैस्टर बीमारी जेस्सी को देखकर बड़े दुखी हुए. उन्होंने जॉनी को सलाह दी कि बच्चे को न्यू यॉर्क के स्लोन केटरिंग हॉस्पिटल ले जाएं. जॉनी उनकी बात मानकर न्यू यॉर्क पहुंचे. बच्चे को अस्पताल में भर्ती करवाया गया. तीन घंटे बाद जेस्सी ऑपरेशन थिएटर से बाहर आए, तो उनके गले पर ट्यूमर की जगह सिर्फ एक पट्टी लगी हुई थी. तब से जॉनी बड़े स्पिरिचुअल हो गए. लगातार सर्विस में जाने लगे. लोगों के लिए दुआएं करने लगे. शराब पीना तक छोड़ दिया. वो इन आस्था-श्रद्धा की बातों में इतने मग्न हो गए कि फिल्मों में काम करना भी बेहद कम कर दिया.

पत्नी सुजाता, बेटे जेस्सी और बिटिया जैमी के साथ जॉनी लीवर.
इसके बाद जैमी और जेस्सी को यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टमिंस्टर में पढ़ाई के लिए भेज जॉनी निश्चिंत हो गए. जेस्सी एक्टर बनना चाहते थे और जैमी को बिज़नेस की फील्ड में जाना था. मगर एक दिन जैमी ने इंग्लैंड में एक स्टैंड कॉमेडी एक्ट देखा. इससे वो इतनी इंप्रेस्ड हुईं कि खुद भी कॉमेडी करने का मन बना लिया. उन्होंने अपनी मां को फोन कर अपनी ये इच्छा बताई. वही रेगुलर कहानी. मां ने कहा पापा से बात करो. और पापा ने सीधे मना कर दिया. बड़ी मिन्नत के बाद जॉनी, जैमी की बात मानें. कुछ समय बाद लंदन में जॉनी का एक शो था. उन्होंने जैमी को फोन कर कहा कि वो अपने शो में उन्हें 10 मिनट का स्लॉट देंगे स्टैंड अप करने के लिए. वो देखना चाहते थे कि जैमी में टैलेंट है या नहीं. जैमी शो वाले स्टेज पर आईं और 10 मिनट में जनता को हंसाकर लहालोट कर दिया. जब उनका समय खत्म हुआ, तब शो में मौजूद ऑडियंस ने उन्हें स्टैंडिंग ओवेशन दिया. अब जैमी भी अपने पिता की तरह फिल्मों, टीवी और डिजिटल स्पेस में कॉमेडी करती हैं. जॉनी हिंदी फिल्मों में अब भी मजबूती से जमे हुए हैं. उन्हें पिछले दिनों 'हाउसफुल 4' और 'कुली नंबर 1' जैसी फिल्मों में देखा गया.