अमेरिका में भारत के नाम का डंका बजाने वाले भारत के इस राष्ट्रपति की ये 15 बातें सुनिए
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है.
बीस साल की उम्र में दर्शन पढ़ाने वाले भारत के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने जब आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की दर्शन सभा में लेक्चर दिया तो 33 साल पहले शिकागो में दिया स्वामी विवेकानंद का दिया भाषण पूरे अमेरिका को याद हो आया.
5 सितंबर 2020 (अपडेटेड: 4 सितंबर 2020, 04:52 IST)
साल 1921 में मैसूर के महाराजा कॉलेज से एक प्रोफ़ेसर कलकत्ता यूनिवर्सिटी जा रहे थे. छात्रों ने अपने सबसे प्रिय अध्यापक को फूलों से सजी बग्घी में बिठाया. लेकिन उस बग्घी को खींचने के लिए घोड़े नहीं थे. बल्कि छात्रों ने ख़ुद उसे खींचकर प्रोफ़ेसर को मैसूर स्टेशन तक पहुंचाया और विदाई दी. प्रोफ़ेसर का नाम था डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन. 20 साल की उम्र में प्रोफ़ेसर बने राधाकृष्णन आगे चलकर भारत के राष्ट्रपति बने. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का नाम 1937 में दर्शन के क्षेत्र में किए उनके काम की वजह से साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया.
भारत में हर साल 5 सितंबर को ‘शिक्षक दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है. जब एक बार कुछ छात्रों ने राधाकृष्णन का जन्मदिन मनाना चाहा तो उनका जवाब था कि ‘मेरे जन्मदिन पर अगर भारत में शिक्षकों का सम्मान होगा तो मैं भी सम्मानित महसूस करूंगा’. इसी के बाद भारत में हर 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाने लगा.
पूरी दुनिया में राधाकृष्णन बतौर भारत के राष्ट्रपति कम और दार्शनिक-विचारक के तौर पर ज़्यादा पहचाने जाते हैं. साल 1926 में अमेरिका की हावर्ड यूनिवर्सिटी में फ़िलॉसफ़ी कांग्रेस हुई. वहां डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने लेक्चर दिया, उससे पूरे अमेरिका को स्वामी विवेकानंद याद आ गए. जिन्होंने ऐसा ही एक भाषण शिकागो में दिया था. आइए आज जानते हैं डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की कही 15 बातें -
#1) शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए, जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके.
#2) शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे,
बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे.
#3) कोई भी आज़ादी तब तक सच्ची नहीं होती,
जब तक उसे विचार की आज़ादी प्राप्त न हो.
#4) शिक्षा से ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है. अत: विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए.
#5) किताबें पढ़ने से हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है.
#6) हमें मानवता की उन नैतिक जड़ों को अवश्य याद रखना चाहिए जिनसे अच्छी व्यवस्था और स्वतंत्रता दोनों बनी रहें.
#7) राष्ट्र,
व्यक्तियों की तरह हैं,
उनका निर्माण केवल इससे नहीं होता है कि उन्होंने क्या प्राप्त किया, बल्कि इससे होता है कि उन्होंने क्या त्याग किया है.
#8) मानव का दानव बनना उसकी हार है. मानव का महामानव बनना उसका चमत्कार है. मनुष्य का मानव बनना उसकी जीत है.
#9) हमारे सारे विश्व संगठन गलत साबित हो जाएंगे यदि वे इस सत्य से प्रेरित नहीं होंगे कि प्यार ईर्ष्या से ज्यादा मजबूत है.
#10) इस जीवन में जो कुछ होता है,
वह सब कुछ हमारी आंखें नहीं देख पातीं. जीवन केवल भौतिक कारणों तथा प्रभावों की श्रृंखला मात्र नहीं है.
#11) हम दुनिया के सामने पराजय की तुलना में अपनी सफलता, और अपनी हानि के बजाय लाभ का दिखावा करने के लिए ज़्यादा उत्सुक रहते हैं.
#12) सच्चा गुरु भगवद् गीता के कृष्ण की तरह होता है,
जो अर्जुन को स्वयं देखने तथा अपनी इच्छानुसार कार्य करने का परामर्श देता है- ‘यथे इच्छसि तथा कुरू’
#13) ज्ञान हमें शक्ति देता है और प्रेम हमें पूर्णता प्रदान करता है.
#14) वैभव,
ताकत और कार्यकुशलता जीवन के साधन हैं,
जीवन नहीं.
#15) पूजा ईश्वर की नहीं होती बल्कि उनके नाम पर प्रवचन करनेवालों की होती है. पवित्रता का उल्लंघन करना पाप नहीं, बल्कि इनकी आज्ञा नहीं मानना पाप बन जाता है.
तो ये थीं वो 15 बातें जो डॉक्टर राधाकृष्णन ने दुनिया को बताई थीं. दुनिया के लिए बताई थीं. भारत के दूसरे राष्ट्रपति को शिक्षा से इतना लगाव था कि उनके जन्मदिन पर देशभर के शिक्षक सम्मानित किए जाते हैं. ये उनकी शिक्षाओं का निचोड़ है. पढ़िए, समझिए.
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