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120 बहादुर : परम गति की सुंदर विजुअल पोयम (120 Bahadur Movie Review)

"Border" बनी है, "300" बनी है, फिर "120 बहादुर" भी बनी है. जो उन जितनी तड़क भड़क वाली war movie न हो, पर फ़िल्म खत्म होते होते एक अनूठा इम्पैक्ट छोड़ जाती है. क्या है वो इम्पैक्ट? जाने इस 120 Bahadur Movie Review में. Farhan Akhtar ने उस यौद्धा का रोल किया है जिसकी (और उसके साथियों की) युद्ध रणनीति, शौर्य और परम बलिदान को वॉर स्कूल्स में पढ़ाया जाता है.

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यौद्धा की गति परम गति.

     Rating : 3.5 / 5 Stars      

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"120 बहादुर" को देखने के बाद जो एक शब्द उसे डिस्क्राइब करने के लिए आता है, वह है - निष्कपट.

यह एक निष्कपट फ़िल्म है. सीधी, सरल, बिना लाग लपेट वाली. अपनी तमाम औसतताओं के बाद भी ये फ़िल्म अपने अंत के लंबे एक्शन सीक्वेंस में धमाका करती है. और अपने नायक के अंतिम क्षणों को एक ग्रेसफुल पोएटिक विजुअल वाली कविता बना जाती है. एक ऐसी फ़िल्म जिसे सभी को देखना चाहिए. अपने परिवार के साथ, बच्चों के साथ. एक ऐसी कहानी के लिए जो 1962 में घटी और उसके नायक के नाम पर कई चौक, चोबारे, गलियां, मुहल्ले, कॉलोनियां, गांव रखे गए, अमर चित्रकथाएं लिखी गईं, लेकिन कभी कोई मुकम्मल फीचर फ़िल्म नहीं बनी.

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एक लिहाज से "120 बहादुर" उस परमवीर का इंट्रोडक्शन है - उन वर्तमान पीढ़ियों के लिए जिन्होंने इस "शैतान" हीरो का नाम भी न सुना होगा, जिसकी हरकतों से चीन की सेना का मुंह खुला का खुला रह गया था. उनकी रीढ़ की हड्डी में जिसने पारा पिघलाकर भर दिया था. जो चीन रेज़ांग ला के दर्रे से होते हुए जम्मू कश्मीर को हथियाना चाहता था, उसे कुमाऊं रेजीमेंट के 120 फौलादी सैनिकों और जोधपुर के बनासर गांव से आने वाले इसी "शैतान" अफसर ने यूं ख़ौफ में डाल दिया जिसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं. चीन ने अपने हज़ारों सैनिक रेज़ांग ला की तरफ छोड़ दिए थे, तमाम आधुनिक हथियारों के साथ. लेकिन वहां उनके साथ जो हुआ वो वॉर स्कूल्स में पढ़ाया जाता है और कथाकारों द्वारा सिर्फ इमैजिन ही किया जाता है. वहां उनका गिद्ध भोज हुआ. ऐसा पैशाचिक नृत्य कि जब चीनी सेना के अफसर वहां पहुंचे तो पहाड़ियों पर शव ही शव थे. तकरीबन 1300 चीनी सैनिकों के शव पहाड़ों और दर्रों में बिछे पड़े थे. उनका अंत किया सिर्फ इन 120 "स्पार्टन्स" ने. उनका पराक्रम इतना अप्रतिम था कि कहा जाता है चीनी सेना के अफसरों ने अपनी राइफल मज़ल का मुंह नीचे करते हुए उन्हें आर्म्स डाउन सैल्यूट दिया था.

उस नायक का नाम है शैतान सिंह. परमवीर मेजर शैतान सिंह भाटी. विश्व में सेनाओं के इतिहास के सबसे अप्रतिम नायकों में से एक.

डायरेक्टर रजनीश घई (धाकड़) ने इस फ़िल्म को बनाने के लिए वॉर मूवीज़ का चटखारे और मसाले वाला रूट नहीं लिया. ग्रेस, सादगी और सारा फोकस रेज़ांग ला की टक्कर पर रखा.

फ़िल्म खुलती है तो बतर्ज "लगान" एक ऐतिहासिकता की पुष्टि सी लिए अमिताभ बच्चन अपनी आवाज़ के साथ कुछ ही क्षणों में पृष्ठभूमि निर्मित कर देते हैं और 1962 में चीन के विश्वासघात से होते हुए सीधा कहानी को वॉर थियेटर में पहुंचा देते हैं. फिर थोड़ी सी देर में अहीरों की रेजिमेंट का कैरेक्टर बिल्ड कर दिया जाता है. उसके बाद उनके अफसर मेजर शैतान सिंह भाटी (फरहान अख़्तर) की एंट्री होती है. राइटर सुमित अरोड़ा और राजीव जी. मेनन ने उन्हें कुछ वैसा ही सॉलिड इंट्रो दिया है जैसा कुलदीप सिंह चांदपुरी को जेपी दत्ता ने "बॉर्डर" (1997) में दिया था. जब सनी देओल मेजर चांदपुरी के रोल में राजस्थान-पाकिस्तान बॉर्डर पर पोस्ट से बाहर निकलकर दुश्मन की फायरिंग रेंज के सामने सीमारेखा तक बढ़ते हैं और पिलर नंबर 635 को छूकर आते हैं और सामने पाकिस्तानी सैनिक कन्फ्यूज़ हो बुदबुदाता है कि ये अफसर पागल है क्या. कुछ ऐसा ही स्मार्ट तरीके से "120 बहादुर" भी करती हैं. मनमोहक. इस दृश्य और क्लाइमैक्स के एक्शन दृश्यों को छोड़ दें तो फिल्म कहीं भी इन्वेंटिव होने की कोशिश नहीं करती है.

इस फ़िल्म से एक बड़ी शिकायत ये है कि शैतान सिंह जहां से थे (बनासर, जोधपुर) वहां के ट्रेसेज फ़िल्म ने मिटा दिए हैं. यही काम “शैतान सिंह” (1988) नाम की टेली फ़िल्म में भी किया गया था जिसमें पंकज धीर ने यह रोल किया. जिसमें उनका बेटा उन्हें बापू कहता है और वे गैर-मारवाड़ी, गलत रंग का साफा पहनते हैं. न बोली, न कपड़े, न कोई संवेदना उनकी कल्चरल पहचान को लेकर दिखती है.  

"120 बहादुर" में सफेद पगड़ी में शैतान सिंह खेत में हल चलाते दिखाए जाते हैं, जबकि वो जिस समुदाय से आते हैं उसमें सफेद पगड़ी नहीं पहनी जाती. न ही वे यूं खेती करते थे. उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह ने वर्ल्ड वॉर-1 के दौरान इंडियन आर्मी की तरफ से फ्रांस में सर्व किया था. उन्हें ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एंपायर मिला था. उनकी मां और पत्नी गैर-राजपूती परिधानों में नजर आती हैं, जो परिधान उनके घरों में पहने ही नहीं जाते हैं.

"120 बहादुर" शैतान सिंह के घर, लोगों, कल्चर, भाषा का गलत और ग़ैर-जिम्मेदाराना चित्रण करती हैं. दर्शक कभी नहीं जान पाएगा कि असल शैतान सिंह भाटी क्या थे और किस प्लेस से आते थे. कैसे बात करते थे. 

मारवाड़ी पात्र का हिंदीकरण कर दिया गया है, जो हिंदी सिनेमा की बहुत पुरानी घृणित लाइलाज बीमारी है. चीन के सैनिक मैंडरिन बोलते हैं, अहीरों की भाषा का एक्सेंट भी आता है लेकिन शैतान सिंह के लहजे में मारवाड़ी का कोई अवशेष नहीं रहता. न जाने फरहान अख़्तर ने ऐसा क्यों किया होगा.

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1962 को बहुत कन्विंसिंग तरीके से रीक्रिएट नहीं किया जा सका है.

"हम भी राजपूत हैं, सर झुकाने का कारण नहीं देंगे" - पत्नी से बात करते मेजर शैतान सिंह के होठ कंप्यूटर ग्राफिक्स से बदले गए हैं. उन्होंने बोला कुछ था, फ़िल्म ने उसे मिटाकर यह डब किया है.

डायलॉग्स औसत हैं.

तमाम ख़ामियों के इतर फ़िल्म को अगर उसके सत्व में देखें तो वह है - परम गति का चित्रण.

कि जब शैतान सिंह और उनके साथियों को कमांड कह देता है कि आप लोग पीछे हट जाएं, दुश्मन बहुत बड़ी संख्या में हैं, तब भी मेजर कहते हैं अपने साथियों से कि - मैं तो रुकूंगा. अपनी जमीन में उन्हें घुसने न दूंगा. प्रैक्टिकली हर इंसान को पता था कि उसका मरना तय है. ये देह, ये जीवन, ये परिवार, बच्चे, मां-पिता सब छोड़ देना है और इसके बाद कुछ नहीं बचना है. लेकिन सबने चुनी - परम गति. फिर वे ऐसे लड़े कि कैसे बयान करें. अंत में उनका युद्ध नृत्य देखकर चीनी अफसर, "बॉर्डर" के उस पाकिस्तानी सैनिक की तरह फटी आंखों से बुदबुदाता है - "गोलियां चल रही हैं, फिर भी ये लोग रुक नहीं रहे. ऐसा लग रहा है कि उन पर किसी शैतान का साया है. कि शैतान ख़ुद उनके साथ लड़ रहा है."

आज लद्दाख़ के रेज़ांग ला मेमोरियल में मेजर और उनको वीरों के लिए पत्थर पर लिखा है - "आदमी की मृत्यु इससे अर्थपूर्ण क्या हो सकती है कि अपने पूर्वजों की विरासत और अपने देवताओं के पवित्र स्थलों की रक्षा करने के लिए वह भयावह ख़तरों से भिड़ जाए."

"120 बहादुर" का एक सीन नहीं भूलता. लद्दाख़. रेज़ांग ला. अंत में शैतान सिंह भाटी एक छोटी चट्टान से टिककर बैठे हैं. बर्फ के कण उड़ रहे हैं. उनके प्राण जा चुके हैं. प्रेरणा रह गई है अगले हज़ार वर्षों के लिए. परम वीरता की. परम बलिदान की. अनुपम काव्यात्मक चित्र.

अवश्य देखें. 

Film: 120 Bahadur । Director: Razneesh Ghai । Writer: Sumit Arora, Rajiv G. Menon । Cast: Farhan Akhtar, Vivan Bhatena, Amitabh Bachchan (voice), Raashi Khanna, Ankit Siwach, Eijaz Khan, Ajinkya Deo, Devendra Ahirwar, Dhanveer Singh, Ashutosh Shukla । Run Time: 137 min । Release: 21 November, 2025 । Watch at: Cinemas 

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