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16 दिन, सैकड़ों पड़ाव, वोटर अधिकार यात्रा से राहुल गांधी और कांग्रेस को क्या हासिल हुआ?

Rahul Gandhi की वोटर अधिकार यात्रा से अरसे बाद कांग्रेस जमीन पर दिख रही है. उनके काडर और समर्थकों में एक जोश दिख रहा है. राहुल की इस यात्रा ने कांग्रेस को 'टॉक ऑफ द टाउन' बना दिया है. यानी कांग्रेस खुद को Public Memory में रिवाइव करने में सफल रही है.

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राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा 1 सितंबर को समाप्त होगी. (एक्स)

राहुल गांधी (Rahul Gandhi). बिहार की सियासत में पिछले कुछ दिनों का सबसे मजबूत कीवर्ड. वजह वोटर अधिकार यात्रा (Voter Adhikar Yatra). राहुल की इस यात्रा का आज आखिरी दिन है. बिहार के शाहाबाद क्षेत्र से शुरू हुई यात्रा राजधानी पटना में समाप्त होगी. 17 अगस्त से 1 सितंबर तक चलने वाली इस यात्रा के कई पड़ाव रहे हैं. साथ ही इसमें अनगिनत रंग भी देखने को मिले हैं. यात्रा के जरिए सियासी कीवर्ड बने राहुल गांधी क्या-क्या साध पाए हैं या साधने की कोशिश रही है इसको समझने की कोशिश करते हैं.

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कार्यकर्ताओं को रिचार्ज कर दिया

कुछ महीने पहले कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने मुलाकात की थी. मुलाकात में उन्होंने राहुल गांधी से कहा कि जितना समय वो दूसरे राज्यों को देते हैं, उतना अगर बिहार को दें तो पार्टी राज्य में पार्टी फिर से जिंदा हो जाएगी. अब अखिलेश प्रसाद की तो प्रदेश अध्यक्ष पद से छुट्टी हो गई. 

लेकिन लगता है कि राहुल गांधी ने उनकी सुन ली. राहुल की इस यात्रा से अरसे बाद कांग्रेस जमीन पर दिख रही है. उनके काडर और समर्थकों में एक जोश दिख रहा है. राहुल की इस यात्रा ने कांग्रेस को 'टॉक ऑफ द टाउन' बना दिया है. यानी कांग्रेस खुद को पब्लिक मेमोरी में रिवाइव करने में सफल रही है. दैनिक जागरण से जुड़े सीनियर पत्रकार अरविंद शर्मा बताते हैं,

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 कांग्रेस के पास पुराने कार्यकर्ता हैं लेकिन पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन और शीर्ष नेतृत्व के उपेक्षा के चलते वो इधर-उधर भटक गए थे. राहुल गांधी ने एक बार फिर से उनको पार्टी की ओर लौटने के लिए प्रेरित किया है. यात्रा से उनमें ऊर्जा और उत्साह आया है. मृतप्राय और लालू यादव के कंधों पर चल रही कांग्रेस को वहां से उतारकर राहुल गांधी ने उम्मीद भरी है. अब कांग्रेस बिहार में नए अवतार में दिख रही है.

सीट बंटवारे में अब मजबूत स्थिति में रहेगी कांग्रेस

पिछली बार कांग्रेस 70 विधानसभा सीटों पर लड़ी थी. इसमें से अधिकतर सीटें ऐसी थीं जिस पर बीजेपी या एनडीए मजबूत स्थिति में थी. कांग्रेस इनमें से मात्र 19 सीटें जीत पाई. पार्टी का स्ट्राइक रेट महागठबंधन में सबसे खराब रहा था. इसको लेकर घटक दलों से कांग्रेस को ताने भी मिले कि अगर उनका प्रदर्शन ठीक होता तो राज्य में महागठबंधन की सरकार होती. कांग्रेस इस बार फूंक-फूंक कर कदम रख रही है. ऐसे में वोटर अधिकार यात्रा ने उसका वजन बढ़ा दिया है. और इसका असर सीट शेयरिंग की बातचीत पर भी देखने को मिल सकता है. अरविंद शर्मा बताते हैं,

 कांग्रेस को राहुल गांधी ने जो नई लाइफलाइन दी है उसका फायदा ये होगा कि इस बार कांग्रेस उन सीटों पर समझौता नहीं करेगी जहां गठबंधन कमजोर स्थिति में है. कांग्रेस इस बार इन सीटों पर बराबर की हिस्सेदारी चाहेगी. यानी सीटों की संख्या के अनुपात में कमजोर सीटें सबके हिस्से में जाएगी. जैसे माले अपनी मजबूत आधार वाली सीटें नहीं छोड़ता कुछ वैसी ही रणनीति कांग्रेस की भी रहेगी. कांग्रेस अपने मजबूत आधार वाली सीटों को इस बार नहीं छोड़ने जा रही और इससे उनका स्ट्राइक रेट सुधरने की संभावना रहेगी.

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यही नहीं चुनाव नतीजों के बाद अगर महागठबंधन सरकार नहीं बना पाती है. लेकिन कांग्रेस का स्ट्राइक रेट अच्छा रहता है तो पार्टी राज्य में एक मजबूत विपक्ष की भूमिका में खुद को स्थापित कर सकती है. 

और ऐसी स्थिति में जो वोटर लालू यादव की जंगलराज वाली छवि के चलते एनडीए को वोट करते हैं. उनका रुझान भी कांग्रेस की ओर हो सकता है. इसके अलावा मुस्लिम वोटर्स का भरोसा भी कांग्रेस पर मजबूत हो सकता है. और एंटी बीजेपी वोट कांग्रेस की छतरी तले आ सकते हैं. 

 

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अपने गढ़ को मजबूत करने की कवायद 

राहुल गांधी ने सासाराम से यात्रा शुरू करके पटना में खत्म किया. यानी शाहाबाद से शुरू होकर यात्रा मगध में समाप्त हुई. पिछले लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो ये इलाके कांग्रेस और महागठबंधन का गढ़ रहे हैं. गया सीट छोड़ दें तो पूरे मगध शाहाबाद में एनडीए गठबंधन साल 2024 में एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत पाई. 

वहीं साल 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिलने वाली 19 सीटों में से 8 सीटें मगध- शाहाबाद इलाके से ही मिली थी. कांग्रेस का एक सांसद भी इस इलाके से हैं. इसके अलावा माले और राजद भी इस इलाके में काफी मजबूत है. इस यात्रा के जरिए कांग्रेस ने इलाके में महागठबंधन की सियासी पकड़ को और मजबूत करने की कोशिश की है.

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उन सीटों से गुजरी यात्रा जहां कांग्रेस की दावेदारी

बिहार के शाहाबाद और मगध में तो कांग्रेस के साथ-साथ भाकपा माले और राजद का बेहतर प्रदर्शन रहा है. लेकिन इस बार कांग्रेस की यात्रा के फोकस में उत्तर बिहार के तकरीबन आधा दर्जन जिले रहे. इन जिलों की जिन 23 विधानसभा सीटों से होकर यात्रा गुजरी है, इनमें से अधिकतर सीटें ऐसी हैं जहां पर कांग्रेस ने बीते विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार दिए थे. और फिर से इन सीटों पर लड़ने की पार्टी की तैयारी है. 

राहुल की वोटर अधिकार यात्रा उत्तर बिहार में छह जिलों से गुजरी. दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण और मुजफ्फरपुर. इन जिलों में 60 विधानसभा सीट है. लेकिन यात्रा इनमें से 23 सीटों से होकर गुजरी. इंडिया टुडे के सीनियर रिपोर्टर शशिभूषण के मुताबिक, 

कांग्रेस के रणनीतिकारों ने यात्रा का जो रूट मैप बनाया है वो बेहद सोच समझ कर तैयार किया गया है. इन 23 विधानसभा सीटों में  दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा और मुस्लिम वोटर्स की अच्छी खासी तादाद है. बिहार में कांग्रेस का वोटर इसी तबके को फोकस करने की चुनावी रणनीति पर चल रही है.

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महागठबंधन और कांग्रेस के अंदर समन्वय 

कांग्रेस ने वोटर अधिकार यात्रा के जरिए SIR को मुद्दा बनाया. और बिहार में इसको लीड किया. महागठबंधन और इंडिया अलायंस के दूसरे नेता भी कांग्रेस की इस मुहिम से जुड़े. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी इस यात्रा में शामिल हुए. 

इसके अलावा कांग्रेस के दूसरे राज्यों के तमाम नेता और मुख्यमंत्री भी इसमें शामिल हुए. जिससे राहुल गांधी का कद बढ़ा है. दूसरी तरफ इस यात्रा ने बिहार चुनाव से पहले सभी विपक्षी दल एकजुट नजर आए. राजद, कांग्रेस, माले और VIP के शीर्ष नेता साथ-साथ चले. इससे कार्यकर्ताओं में भी अच्छा मैसेज गया. वरिष्ठ पत्रकार मनोज मुकुल ने बताया,

 इस यात्रा से पहले पप्पू यादव और तेजस्वी यादव एक दूसरे को लेकर असहज थे. SIR को लेकर पटना में हुए एक प्रोटेस्ट में पप्पू यादव को राहुल गांधी के रथ पर एंट्री नहीं मिली थी. लेकिन इस यात्रा में ये दूरी मिटती नजर आई. पप्पू यादव पहले लालू यादव और फिर तेजस्वी यादव से मिले. और दोनों के गिले शिकवे दूर हुए. यानी अब पप्पू यादव की महागठबंधन में आधिकारिक एंट्री को लालू एंड तेजस्वी यादव की ओर से हरी झंडी मिल गई है. कांग्रेस और महागठबंधन को सीमांचल की सीटों पर इसका लाभ मिलने की उम्मीद है. 

इसके अलावा अलग-अलग खेमों में बंटी कांग्रेस भी इस यात्रा के दौरान एक यूनिट के तौर पर नजर आई. प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह, युवा नेता कन्हैया कुमार, शकील अहमद खान और मदन मोहन झा जैसे सीनियर नेता इस यात्रा में एक्टिव दिखे.

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मुस्लिम वोटर्स को मैसेज देने की कोशिश 

राहुल गांधी ने वोटर अधिकार यात्रा के जरिए मुस्लिम वोटर्स को भी साधने की कोशिश की है. उनकी यात्रा रूट में भागलपुर, कटिहार, अररिया, पूर्णिया, मोतिहारी, बेतिया, सीतामढ़ी, दरभंगा, सिवान और गोपालगंज जैसे जिले शामिल थे. इन जिलों में लगभग 15 फीसदी से लेकर 45 फीसदी तक की मुस्लिम आबादी है. सवाल उठता है कि मुस्लिम तो महागठबंधन के वोटर्स माने जाते हैं फिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी. इसकी वजह समझिए. 

वक्फ बिल के दौरान विपक्ष मुसलमानों के साथ खड़ा हुआ. बिहार में बड़ी रैली हुई. इसके अलावा SIR में भी माहौल बनाया गया कि मुसलिम वोटर्स को निशाना बनाया जाएगा. इसके बावजूद भी मुस्लिम वोटर्स का एक बड़ा तबका इस बार कंफ्यूजन में है. उनको लग रहा है कि 18 फीसदी आबादी होने के बावजूद महागठबंधन में वैसी सियासी हिस्सेदारी नहीं मिल रही है, जिसके वो हकदार हैं. मुख्यमंत्री के दावेदार तेजस्वी यादव है. डिप्टी सीएम के तौर पर मुकेश सहनी का नाम चल रहा है. सत्ता के शीर्ष पर दावेदारी करने वाला कोई मुस्लिम नाम न राजद की ओर से आ रहा है, न ही कांग्रेस में कोई बड़ा अल्पसंख्यक चेहरा उभर पाया है.

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बिहार के अलग-अलग में मुस्लिम आबादी.

अब मुस्लिम वोटों के दावेदारों की बात करें तो महागठबंधन के अलावा नीतीश कुमार को भी मुस्लिमों का एक तबका वोट करता रहा है. लेकिन हाल में एक कार्यक्रम में उन्होंने मुस्लिम टोपी पहनने से इनकार कर दिया. इससे साफ मैसेज जाता है कि नीतीश कुमार भले मुस्लिमों को कुछ टिकट दे दें लेकिन इस बार अल्पसंख्यक वोट उनकी प्राथमिकता में नहीं  है.

 मुस्लिम वोटों का एक और दावेदार ओवैसी की पार्टी AIMIM है. पिछली बार इस पार्टी ने मुस्लिम बहुल 19 सीटों पर अपने कैंडिडेट दिए थे. और पांच सीट जीतने में सफल रही थी. इस बार भी ओवैसी मुस्लिम वोटों पर दावे के साथ मैदान में जुटे हैं. इस बार उनकी तैयारी और ज्यादा सीटों पर लड़ने की है. 

तीसरा दावेदार प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज है. थोड़ा फ्लैशबैक में चलेंगे तो 2024 की शुरुआत में मुस्लिमों को लेकर राजद असहज स्थिति में थी. तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह का एक लेटर भी लीक हुआ था. जिसमें मुस्लिमों को जन सुराज की तरफ जाने को लेकर सतर्क किया गया था. पिछले साल लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों में मुस्लिम वोटों में बंटवारे की वजह से राजद को हार मिली. 

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PTI (फाइल फोटो)

राजद को इसका इल्म भी हुआ. शायद इसी वजह से हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण की आशंका के बावजूद तेजस्वी यादव वक्फ के मुद्दे पर काफी आक्रमक नजर आए. वहीं दूसरी तरफ प्रशांत किशोर भी मुस्लिम वोटर्स को जोड़ने को लेकर लगातार कार्यक्रम चला रहे हैं. 

अभी मोतिहारी के बापू सभागार में उन्होंने मुस्लिम एकता सम्मेलन कराया था. इस सम्मेलन में उन्होंने कहा कि अगर मुसलमान उन्हें समर्थन करते हैं तो वो बिहार में नीतीश और बीजेपी को ही नहीं, बल्कि दो साल बाद उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को भी हरा देंगे. इस दौरान उन्होंने मुसलमानों को आबादी के हिसाब से टिकट देने का भी दावा किया. 

मनोज मुकुल की मानें तो महागठबंधन के रणनीतिकारों को लग रहा है कि उनके वोट टूट रहे हैं. इसी वजह से प्रशांत किशोर और ओवैसी को काउंटर करने के  इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी को आगे किया गया है. राहुल की इस यात्रा के जरिए मुसलमानों को मैसेज देने की कोशिश है कि SIR से लेकर वक्फ के मोर्चे पर महागठबंधन उनके पीछे खड़ा रहा है. 

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