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कन्नौज से अखिलेश यादव के नामांकन की नौबत क्यों आई? BJP की निंजा टेक्निक, जिसने तेज प्रताप का पत्ता काट दिया

UP की Kannauj लोकसभा सीट पर 1998 से 2014 तक Samajwadi Party को जीत मिली. लेकिन 2019 में पार्टी की हार हुई. कारण क्या रहा? और अब इस चुनाव में Akhilesh Yadav के लड़ने से क्या बदल जाएगा?

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कन्नौज में 13 मई को वोटिंग होनी है. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे/PTI)

उत्तर प्रदेश (UP) की कन्नौज (Kannauj) लोकसभा सीट. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की समाजवादी पार्टी (सपा) ने यहां से तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) को अपना उम्मीदवार बनाया था. तेज प्रताप यादव, लालू प्रसाद यादव के दामाद और अखिलेश यादव के भतीजे हैं. तेज प्रताप के नाम की घोषणा के बाद से ही कन्नौज सीट पर चर्चा शुरू हो गई. कुछ और समय बीता तो उनकी जगह खुद अखिलेश यादव के इस सीट से चुनाव लड़ने की बात चलने लगी. अब सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने एलान किया है कि अखिलेश यादव ही कन्नौज से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने कहा, "पार्टी में कोई कंफ्यूजन नहीं है. अब साफ है कि अखिलेश यादव चुनाव लड़ने जा रहे हैं."

आखिर कन्नौज सीट अखिलेश यादव के लिए इतनी जरूरी क्यों है? और तेज प्रताप यादव के यहां से उतरने से सपा को किस तरह का खतरा नजर आ रहा है? और Akhilesh Yadav के लड़ने से यहां क्या बदल जाएगा? 

मुलायम सिंह यादव ने कन्नौज को सपा का गढ़ बनाया था

कन्नौज सीट पर 1998 से 2014 तक के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को जीत मिली. यहां 2 उपचुनावों समेत 7 चुनावी मुकाबले में सपा विजयी रही. इस दौरान मुलायम सिंह से लेकर अखिलेश यादव और अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव तक यहां से सांसद रहीं. उसके पहले 1998 में सपा के ही प्रदीप यादव को यहां से जीत मिली थी. इसीलिए इस लोकसभा सीट को सपा का 'सुरक्षित किला' माना जाता था.

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2012 के उपचुनाव में डिंपल यादव यहां से निर्विरोध चुनी गई थीं. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा. तब BJP उम्मीदवार सुब्रत पाठक को 10 हजार से ज्यादा वोटों से जीत मिली थी.

2019 में सपा की हार का कारण क्या रहा? इस बारे में हमने इंडिया टुडे से जुड़े पत्रकार आशीष मिश्रा से बात की. उन्होंने बताया,

"2019 में कन्नौज की लोकसभा सीट पर जातीय ध्रुवीकरण हुआ था. ब्राह्मण वोटर BJP उम्मीदवार सुब्रत पाठक के फेवर में चले गए थे. साथ ही BJP ने परंपरागत OBC, दलित और मुसलमान वोट में भी सेंध लगा दी थी." 

वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिंह इसमें कुछ और कारण भी जोड़ते हैं. वो बताते हैं,

"स्थानीय स्तर पर सुब्रत पाठक तब भी बहुत ज्यादा मजबूत उम्मीदवार नहीं थे. 2019 में जातीय ध्रुवीकरण के अलावा ‘मोदी फैक्टर’ उनके काम आया था. 2017 में UP में अखिलेश यादव की सरकार चली गई. इस कारण से भी उनकी पकड़ कमजोर हो गई थी. एक कारण ये भी था कि इस सीट पर सपा को लगातार जीत मिल रही थी तो इसलिए 2019 में सपा डिंपल यादव को लेकर ओवर कॉन्फिडेंस में रही. इसका भी नुकसान हुआ."

इस क्षेत्र में मुस्लिम और यादव वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है. इसके बाद आते हैं ब्राह्मण और राजपूत वोटर्स. दलित समाज के वोटर्स की भी संख्या ठीक-ठाक है.

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डिंपल यादव कन्नौज से एक बार निर्विरोध भी लोकसभा चुनाव जीत चुकी हैं | फ़ाइल फोटो: आजतक
Akhilesh Yadav यहां समीकरण बदल देंगे?

इस बार सुब्रत पाठक कितने मजबूत हैं? और अगर तेज प्रताप की जगह अखिलेश चुनाव लड़ते हैं तो स्थिति क्या होगी? इस पर राजकुमार सिंह स्पष्ट कहते हैं,

“अखिलेश के जीतने की संभावना बहुत ज्यादा है. जैसा कि पहले बताया सुब्रत को मोदी फैक्टर का फायदा मिला था. और अखिलेश यादव का ओहदा बड़ा है. लेकिन अगर तेज प्रताप ही चुनाव लड़ते हैं तो मामला फंस सकता है. ऐसा ही स्थानीय नेता भी कह रहे हैं.”

अब बात करते हैं कि आखिर तेज प्रताप की उम्मीदवारी पर सवाल उठ क्यों रहे हैं. दरअसल, 23 अप्रैल को कन्नौज से समाजवादी पार्टी के एक प्रतिनिधि मंडल ने लखनऊ में अखिलेश यादव से मुलाकात की थी. सपा नेताओं ने कहा कि कन्नौज सीट के लिए तेज प्रताप मजबूत उम्मीदवार नहीं हैं. BJP उम्मीदवार सुब्रत पाठक को हराने के लिए खुद अखिलेश यादव को यहां से चुनाव लड़ना चाहिए. सुब्रत पाठक ने भी अपने एक बयान में कह दिया कि वो भी चाहते हैं कि यहां से अखिलेश ही चुनाव लड़ें, तभी चुनाव दमदार होगा.

Subrat Pathak का कद

सुब्रत पाठक साल 2009 में कन्नौज की लोकसभा सीट से ही अखिलेश यादव के खिलाफ चुनाव लड़े थे. हार गए और तीसरे नंबर पर रहे. तब उन्हें BSP उम्मीदवार महेश चंद्र वर्मा से भी कम वोट मिले. साल 2014 में डिंपल यादव के खिलाफ चुनाव लड़े. फिर हार गए. लेकिन कड़ी टक्कर दी थी. दूसरे नंबर पर रहे थे. 2019 में भी डिंपल यादव के खिलाफ चुनाव लड़े. इस बार जीत गए. लेकिन इस बार डिंपल यादव ने कड़ी टक्कर दी थी.

इस सीट से 1967 में राम मनोहर लोहिया और 1984 में शीला दीक्षित जैसे बड़े नेताओं को यहां से जीत मिल चुकी है. 1996 में यहां से BJP को पहली बार जीत मिली थी. तब भाजपा के चंद्र भूषण सिंह को जीत मिली थी. इसके बाद 1998 में ये सीट सपा के पास चली गई. 1999 में मुलायम सिंह यादव को जीत मिली, लेकिन उन्होंने ये सीट छोड़ दी.

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कन्नौज से बीजेपी प्रत्याशी सुब्रत पाठक (फाइल फोटो)

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साल 2000 में यहां उपचुनाव हुआ तो अखिलेश यादव जीत गए. इसके बाद साल 2004 और 2009 में भी उनको यहां से जीत मिली. साल 2012 में UP विधानसभा चुनाव में जब सपा की जीत हुई तो अखिलेश ने ये सीट छोड़ दी. उपचुनाव हुआ तो डिंपल यादव निर्विरोध चुन ली गईं. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उनको जीत मिली. लेकिन इस बार, यानी लोकसभा चुनाव 2024 में डिंपल यादव मैनपुरी से मैदान में हैं.

लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में 13 मई को UP की कन्नौज सीट के साथ ही शाहजहांपुर, खीरी, धौरहरा, सीतापुर, हरदोई, मिसरिख, उन्नाव, फर्रूखाबाद, इटावा, कानपुर, अकबरपुर और बहराइच सीट पर वोटिंग होनी है.

वीडियो: नेता नगरी: लोकसभा चुनाव में पहले चरण की वोटिंग के बाद कौन आगे, किसकी सीट फंसी?