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दिल्ली चुनाव: महज आठ फीसदी वोट होने के बाद भी जाट एक बड़ी ताकत कैसे बने हुए हैं?

दिल्ली BJP ने जाट नेता प्रवेश वर्मा को इस बार विधानसभा चुनाव के रण में उतारा है. तो वहीं AAP ने जाटों को ओबीसी में शामिल करने का दांव खेल दिया है. हालांकि दिल्ली की राजनीति में समय के साथ-साथ जाटों का प्रभाव कम हुआ है. लेकिन फिर भी ऐसा क्यों है कि अलग-अलग पार्टियां उन्हें लुभाने में लगी हुई हैं?

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दिल्ली में जाट वोटर्स को साधने के लिए AAP और BJP दोनों ने अपने दांव चल दिए हैं | फोटो: PTI
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कुमार कुणाल

आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार, 09 जनवरी को दिल्ली के जाट समुदाय को आरक्षण दिए जाने का मुद्दा उठाया. इस संबंध में अरविंद केजरीवाल ने पीएम नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी भी लिखी है. उन्होंने इस चिट्ठी में मांग की है कि दिल्ली में ओबीसी का दर्जा प्राप्त जाटों को केंद्र की ओबीसी लिस्ट में शामिल किया जाए.

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अरविंद केजरीवाल ने सवाल उठाते हुए कहा कि राजस्थान के जाट समाज के छात्रों को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में आरक्षण मिलता है, तो दिल्ली के जाट समाज को क्यों नहीं मिलता? उनके मुताबिक केंद्र की ओबीसी लिस्ट में न होने से दिल्ली के जाट समाज के हजारों बच्चों को डीयू में दाखिला नहीं मिलता. ऐसे में दिल्ली के जाटों को केंद्र सरकार की ओबीसी लिस्ट में शामिल किया जाए.

कैसे घटा जाटों का प्रभाव?

अगर दिल्ली में जाटों की स्थिति की बात करें तो एक समय यहां के जाट राजनीतिक रूप से काफी ताकतवर थे. हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में परंपरागत रूप से जाट काफी मजबूत थे, लेकिन समय के साथ ये क्षेत्र शहरी इलाकों में तब्दील हुए और फिर यहां बाहर से आबादी आई, जिससे जाटों का राजनीतिक प्रभाव कम होता गया.

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इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक जाटों का राजनीति पर प्रभाव कम होने की एक वजह उनकी आबादी के विकेन्द्रीकरण को भी माना जाता है, हालांकि इसके लिए निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्माण को जिम्मेदार बताया जाता है. उदाहरण के लिए बाहरी दिल्ली सीट, जो कभी जाटों का गढ़ हुआ करती थी, ये तीन निर्वाचन क्षेत्रों- पश्चिमी दिल्ली, उत्तर पश्चिमी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली में बंट गई, इसके बाद नए निर्वाचन क्षेत्रों में जाटों का राजनीतिक असर उतना नहीं रह गया, जितना बंटवारे से पहले हुआ करता था.

पश्चिमी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो नजफगढ़, विकासपुरी और मटियाला जैसे इलाकों में अभी भी जाटों का प्रभाव है, हालांकि इन इलाकों को बिहार, उत्तर प्रदेश और हरियाणा से आए लोगों ने नया आकार दे दिया है.

इसी तरह उत्तर-पश्चिमी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में बड़ी जाट आबादी रहती है, लेकिन ये सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है, जिससे यहां राजनीतिक फोकस दलितों पर शिफ्ट हो गया है. वहीं, दक्षिणी दिल्ली क्षेत्र की बात करें तो जनसंख्या में बदलाव के कारण यहां गुज्जर समुदाय का प्रभाव बढ़ गया.

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साभार: इंडिया टुडे
जाट इसके बावजूद एक बड़ा फैक्टर क्यों?

हालांकि, इस स्थिति के बावजूद, दिल्ली में जाट एक महत्वपूर्ण फैक्टर बने हुए हैं. इंडिया टुडे से मिले आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में महज 8 प्रतिशत जाट वोट हैं. लेकिन मुंडका में 28%, नजफगढ़ में 25% और बिजवासन में 23% के आसपास जाट आबादी रहती है. महरौली, रिठाला और नांगलोई भी जाट बहुल इलाके हैं. मोटा-माटी देखें तो दिल्ली की 70 में से 10 सीटें ऐसी हैं, जिन पर जाट निर्णायक भूमिका में हैं. इसके अलावा कई और भी ऐसे इलाके हैं, जहां जाटों की ठीक-ठाक संख्या है, और इस संख्या को दिल्ली के छोटे-छोटे विधानसभा क्षेत्रों में नकारा नहीं जा सकता.

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साभार: इंडिया टुडे

कुल मिलाकर यही वजह है कि दिल्ली में अलग-अलग पार्टियां जाटों के महत्व को समझते हुए उन्हें लुभाने में लगी हुई हैं. BJP ने ग्रामीण इलाकों के जाटों का वोट पाने के लिए प्रमुख जाट नेता प्रवेश वर्मा को इस बार विधानसभा चुनाव के रण में उतारा है. वहीं AAP जिसके पिछली बार 7 जाट उम्मीदवार चुनाव जीते थे, उसने इस समुदाय को फिर से साधने के लिए इन्हें ओबीसी में शामिल करने का दांव खेल दिया है.

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