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बिहार की वो सीट जो सीएम नीतीश के मंत्रियों के लिए नाक की लड़ाई हो गई!

बिहार के Samastipur Loksabha Seat पर इस बार Nitish कैबिनेट के दो मंत्रियों की संतानें आमने-सामने हैं. चिराग की पार्टी से जहां Ashok Choudhary की बेटी Shambhavi Choudhary को टिकट मिला है. वहीं कांग्रेस ने Maheshwar Hazari के बेटे Sunny Hazari को टिकट दिया है.

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समस्तीपुर लोकसभा सीट पर नीतीश कैबिनेट के दो मंत्री की संतानें आमने-सामने हैं.

बिहार में चौथे चरण में पांच सीटों पर चुनाव होने हैं. इन सीटों में बेगूसराय, दरभंगा, मुंगेर, उजियारपुर और समस्तीपुर शामिल हैं जिसमें से समस्तीपुर अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीट है. NDA गठबंधन की बात करें तो समस्तीपुर सीट चिराग पासवान (Chirag Paswan) के पाले में है, लेकिन यहां इस बार चिराग से ज्यादा प्रदेश के मुखिया नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की चर्चा है. चर्चा की वजह नीतीश सरकार के दो मंत्री हैं, जिनकी संतानें इस सीट पर आमने-सामने हैं. 

एनडीए गठबंधन की तरफ से चिराग ने यहां से नीतीश कुमार के विश्वासपात्र और मंत्री अशोक चौधरी की बेटी शांभवी चौधरी को टिकट दिया है. महागठबंधन में यह सीट कांग्रेस को मिली है, जिसने यहां से नीतीश सरकार में एक और मंत्री महेश्वर हजारी के बेटे सन्नी हजारी को टिकट दिया है.

राजनीति Maheshwar Hazari की

समस्तीपुर लोकसभा सीट पर महेश्वर हजारी (Maheshwar Hazari) की मजबूत राजनीतिक पकड़ रही है. 2009 में महेश्वर हजारी खुद भी इस सीट की सदारत कर चुके हैं. और वर्तमान में समस्तीपुर के कल्याणपुर विधानसभा से विधायक और नीतीश सरकार में सूचना जनसंपर्क मंत्री हैं. हजारी पासवान समुदाय से आते हैं और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के करीबी रिश्तेदार हैं. समस्तीपुर सीट पर इन दो परिवारों का दबदबा रहा है. महेश्वर हजारी के पिता भी विधायक और सांसद रह चुके हैं.

हालांकि महेश्वर हजारी खुलकर अपने बेटे के लिए प्रचार नहीं कर रहे हैं. लेकिन पर्दे के पीछे से बेटे के चुनावी अभियान की कमान वही संभाल रहे हैं. स्थानीय मीडिया में चल रही खबरों की मानें तो समस्तीपुर के एक होटल में महेश्वर हजारी ने अपना ठिकाना बनाया है. बेटे सन्नी दिनभर चुनाव प्रचार करते हैं, जबकि पिता रात को चुनाव के सिलसिले में लोगों से मुलाकात करते हैं. 

इमेज क्रेडिट - इंडिया टुडे

जेडीयू नेतृत्व को भी इस बात का इलहाम है कि महेश्वर हजारी पार्टी के खिलाफ जाकर अपने बेटे की मदद कर रहे हैं. समस्तीपुर में आयोजित सभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इशारों-इशारों में उनको चेतावनी भी दे दी है. नीतीश ने कहा कि गड़बड़ी करने वालों को चुनाव बाद मुक्त कर दिया जाएगा. माना जा रहा है कि उनका इशारा हजारी की ओर ही था. 

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राजनीति Ashok Choudhary की

महेश्वर हजारी का समस्तीपुर की राजनीति पर मजबूत पकड़ है तो अशोक चौधरी (Ashok Choudhary) भी बिहार की राजनीति के एक स्थापित चेहरे हैं. चौधरी राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता महावीर चौधरी की पहचान कांग्रेस के बड़े दलित चेहरे के रूप में रही है. वे 9 बार बिहार विधानसभा के लिए चुने गए. कई बार राज्य सरकार में मंत्री भी रहे. अशोक चौधरी ने भी अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस से ही की थी. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी बने थे. लेकिन 2018 में पार्टी छोड़कर जदयू में शामिल हो गए. उनकी नीतीश कुमार के साथ करीबी ऐसी है कि जेडीयू प्रमुख चाहे जिस खेमे में रहें, अशोक चौधरी का कैबिनेट बर्थ हमेशा पक्का होता है.

अब बात Sunny Hazari की

इस सीट से दावेदारी कर रहे सन्नी हजारी (Sunny Hazari) की बात करें तो वे अपने परिवार में तीसरी पीढ़ी के नेता हैं. उन्होंने NIT पटना से बीटेक किया है. इसके बाद समस्तीपुर में खुद का बिजनेस शुरू किया. वे वर्तमान में समस्तीपुर के खानपुर प्रखंड के प्रमुख हैं. सन्नी करीब एक महीने पहले 5 अप्रैल को जेडीयू छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे. तभी से उनके लोकसभा चुनाव लड़ने के कयास लगाए जाने लगे थे.

इंडिया टुडे से जुड़े पत्रकार पुष्यमित्र के मुताबिक,

“कांग्रेस में शामिल होने के कुछ दिन पहले तक सन्नी भी चिराग की पार्टी से टिकट के जुगाड़ में थे. उन्होंने अपने बेटे का बर्थडे केक भी चिराग पासवान से कटवाया था. लेकिन वहां से निराशा मिलने के बाद उन्होंने कांग्रेस का रुख किया.”

सन्नी के पिता महेश्वर हजारी कल्याणपुर और चचेरे भाई अमन हजारी कुशेश्वरस्थान से विधायक हैं. ये दोनों सीटें समस्तीपुर लोकसभा में आती हैं. इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े संतोष सिंह कहते हैं, 

“इन दोनों सीटों पर खासकर कुशेश्वरस्थान विधानसभा में सन्नी हजारी को इसका फायदा मिलने की उम्मीद है.”

अब बात Shambhavi Choudhary की

सन्नी हजारी के सामने समस्तीपुर में शांभवी चौधरी (Shambhavi Choudhary) की दावेदारी है. शांभवी पासी जाति से ताल्लुक रखती हैं. उनके पिता अशोक चौधरी नीतीश कैबिनेट में मंत्री हैं. शादी बिहार के चर्चित IPS किशोर कुणाल के बेटे सायण कुणाल से हुई है. सायण कुणाल भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं. कहा जा रहा है कि सायण खुद चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनी कि शांभवी को मैदान में उतरना पड़ा.

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राजनीति में इतनी जल्दी ब्रेक मिलने के सवाल पर बीबीसी से बात करते हुए शांभवी ने बताया, 

मुझे पॉलिटिकल ब्रेक मिलने के पीछे मेरे पति सायण कुणाल की बड़ी भूमिका है. मरे पति के लोजपा (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के साथ व्यक्तिगत संबंध हैं. कई वर्षों का पुराना संबंध है. मेरे पति के जीवन में चिराग पासवान एक बड़े भाई की भूमिका निभाते रहे हैं.

पटना के नॉट्रेडैम एकेडमी से स्कूली पढ़ाई के बाद शांभवी चौधरी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज से ग्रेजुएशन और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से मास्टर डिग्री हासिल की है. शांभवी के बाहरी होने और सवर्ण से शादी करने के कारण दलित पहचान को लेकर विपक्षी खेमा लगातार सवाल उठा रहा है. 

इस पर वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं, 

शांभवी की पहचान भले ही अशोक चौधरी की बेटी की हो, लेकिन वो यहां मोदी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रही हैं. अपने चुनावी अभियान में वो मोदी सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं जैसे राशन, उज्ज्वला योजना इत्यादि के नाम पर वोट मांग रही हैं. इसके अलावा वो स्थानीय मुद्दों को भी एड्रेस कर रही हैं. 

उन्होंने आगे बताया कि महिलाओं में भी उनकी फॉलोइंग दिख रही है. शांभवी के पक्ष में नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की रैली भी हो चुकी है. इसके अलावा उनके ससुर किशोर कुणाल भी उनके लिए कैंपेन कर रहे हैं.

समस्तीपुर का सामाजिक समीकरण

समस्तीपुर (Samastipur Loksabh Seat) में ओबीसी वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है. इनमें यादव और कुशवाहा जाति का बाहुल्य है. यहां 12 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता और दलित मतदाताओं की संख्या 19 फीसदी से ज्यादा है. पुष्यमित्र के मुताबिक,

चिराग के कोटे की दूसरी सीटों पर नीतीश कुमार के वोटर दूरी बना रहे हैं, लेकिन इस सीट पर नीतीश कुमार के कोर वोटर भी शांभवी के साथ दिख रहे हैं.

समस्तीपुर चिराग पासवान की पारिवारिक सीट मानी जाती है. 2014 और 2019 में उनके चाचा दिवंंगत रामचंद्र पासवान यहां से सांसद रहे थे. 2019 में उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनके बेटे प्रिंस राज यहां से सांसद चुने गए थे. हालांकि एलजेपी के बंटवारे में प्रिंस राज ने चाचा पशुपति पारस का साथ दिया था. नतीजा ये हुआ कि अब उनका टिकट काट दिया गया. दी प्रिंट से जुड़े दीपक मिश्रा के मुताबिक, 

दिवंगत रामविलास पासवान के समय से ही पार्टी आरक्षित सीटों पर पासवान समुदाय के लोगों को ही टिकट देती आई है. इस बार भी चिराग पासवान पहले अपने पुराने सहयोगी संजय पासवान को टिकट दे रहे थे. लेकिन अचानक, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने चिराग पर दबाव डाला कि उन्हें इस मोड से बाहर निकलना होगा. और पासवान नेता के बजाय दलित नेता के रूप में उभरने के लिए अन्य दलित वर्गों को टिकट देना होगा, जिससे शांभवी को टिकट मिल पाया.

समस्तीपुर अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट है. इसमें समस्तीपुर जिले की चार कल्याणपुर, वारिसनगर, समस्तीपुर, रोसड़ा और दरभंगा जिले की दो कुशेश्वर स्थान और हायाघाट विधानसभा सीट शामिल है. समस्तीपुर पहले सामान्य सीट थी. 2009 में नए परिसीमन के बाद इसे अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित कर दिया गया.

ये वो तमाम कीवर्ड्स थे जिनके इर्दगिर्द समस्तीपुर की राजनीति घूम रही है. समस्तीपुर के सियासी शह-मात में कौन सफल होगा? हम इसकी भविष्यवाणी नहीं कर रहे हैं. लेकिन इतना तो तय है कि नीतीश सरकार के दो मंत्रियों की लड़ाई में जीत किसी एक ही होगी. चुनाव परिणामों के बाद दोनों की जगह नीतीश कैबिनट में सुरक्षित रहेगी, इस बारे में भी बहुत भरोसे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता.

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