राजनीतिक पार्टियां हर चुनाव से पहले जनता के लिए भर-भर के वादे करती हैं. लेकिन बिहार में तो पार्टियों ने राज्य का पूरा खजाना ही जनता पर लुटाने का ऐलान कर दिया है. जी हां. यहां के सियासी दलों ने चुनाव के पहले जो वादे किए हैं, उन्हें अगर पूरा किया गया तो राज्य का खजाना खाली हो सकता है. यानी जरूरी कामों पर खर्च करने के लिए राज्य के पास पैसे बचेंगे ही नहीं. कम से कम रिपोर्ट और आंकड़े तो यही कहते हैं. जानकार लगातार ये सवाल उठाते रहे हैं कि जो घोषणाएं की जा रही हैं, आखिर इसके लिए पैसे आएंगे कहां से.
नीतीश-तेजस्वी के ये वादे बिहार को बहुत भारी पड़ेंगे, पूरा किया तो राज्य का भट्ठा बैठना तय
बिहार चुनाव से पहले नीतीश सरकार ने लाखों महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपये डाल दिए. साथ ही फ्री बिजली से लेकर पेंशन बढ़ाने और युवाओं को भत्ता देने जैसे बड़े ऐलान किए. दूसरी तरफ तेजस्वी ने तो हर घर में सरकारी नौकरी देने का ही वादा कर दिया. पर सवाल है कि आखिर इन वादों को पूरा करने के लिए पैसा आएगा कहां से?


बिहार में आचार संहिता लागू होने से पहले नीतीश कुमार की सरकार ने लगभग सभी वर्गों के लिए योजनाओं की झड़ी लगा दी. चुनाव के ऐलान से ठीक पहले राज्य की 1.21 करोड़ महिलाओं के खाते में 10,000 रुपये डाले गए. यह पैसे मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत उन्हें भविष्य में बिजनेस शुरू करने में मदद करने के लिए दिए गए. इसके अलावा नीतीश सरकार ने
- अगस्त से बिहार के 1.89 लाख उपभोक्ताओं को 125 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने की घोषणा की है.
- अगस्त से सामाजिक सुरक्षा पेंशन भी 400 रुपये से बढ़ाकर 1,100 रुपये प्रति माह कर दी है.
- 18 से 25 वर्ष की आयु के लगभग 12 लाख बेरोजगार युवाओं को 1,000 रुपये मासिक भत्ते देने की घोषणा की है.
- 16 लाख मजदूरों को 5,000 रुपये का एकमुश्त कपड़ा भत्ता देने की घोषणा की है.
- जीविका, आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं का मासिक मानदेय भी बढ़ा दिया है.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन सभी योजनाओं का खर्च मिला दें तो इसकी लागत लगभग 40 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच जाती है. यह राज्य की सालाना आय 56 हजार करोड़ का लगभग तीन चौथाई हिस्सा है. तेजस्वी यादव ने तो नीतीश सरकार से भी बड़ा ऐलान करते हुए राज्य के हर परिवार को सरकारी नौकरी देने का वादा किया है. बिहार जाति सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में परिवारों की कुल संख्या 2.76 करोड़ है. रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर औसतन एक कर्मचारी की 30 हजार रुपये भी सैलरी मानी जाए तो सरकार को यह वादा पूरा करने के लिए सालाना अतिरिक्त 90,000 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे.
साल 2025-26 में बिहार का कुल बजट 3.17 लाख करोड़ रुपये है. इसमें से एक तिहाई से भी अधिक, 1.12 लाख करोड़ रुपये वेतन और पेंशन देने में खर्च हो जाते हैं. वहीं अगर नीतीश सरकार और तेजस्वी यादव की घोषणाओं का कुल खर्च जोड़ दें तो यह भी लगभग 1.12 लाख करोड़ के आसपास आता है. यानी ऐसी स्थिति में सरकार के पास जरूरी कामों में खर्च करने के लिए केवल एक तिहाई बजट ही बचेगा. ऐसे में स्वास्थ्य और शिक्षा से लेकर बुनियादी कामों के लिए भी पैसे की तंगी आ जाएगी.
जानकारों ने पूरा गणित समझायारिपोर्ट में बिहार के वित्त विभाग के एक अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि अगर इन चुनावी वादों को पूरा किया गया तो राज्य की पूरी कमाई का 80 फीसदी हिस्सा इसी में खर्च हो जाएगा. यह राज्य की वित्तीय हालात के लिए अच्छा नहीं है. पटना स्थित एक अर्थशास्त्री सूर्य भूषण ने इंडियन एक्स्प्रेस से कहा कि कि अगर राज्य के हर परिवार को सरकारी नौकरी दी गई तो उनकी सैलरी का बिल, राज्य की सालाना आय से कई गुना ज्यादा हो जाएगा. वादा पूरा करने के लिए 2 करोड़ से ज्यादा नई सरकारी नौकरियां पैदा करनी होंगी. इसके लिए राज्य के पूरे बजट से भी दोगुना खर्च करना होगा.
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कुल मिलाकर दोनों ही तरफ से किए जा रहे चुनावी वादे पूरी तरह प्रैक्टिकल नहीं हैं. और अगर इन्हें पूरा किया जाता है तो राज्य की माली हालत खराब हो सकती है. प्रति व्यक्ति आय के मामले में बिहार पहले ही काफी पीछे चल रहा है. 2024-25 में, इसकी प्रति व्यक्ति आय 66,828 रुपये वार्षिक थी. जो कि राष्ट्रीय औसत 2.05 लाख रुपये से काफी कम है. नीतीश कुमार ने एक बार खुद कहा था कि भले ही हमारी अर्थव्यवस्था राष्ट्रीय औसत के मुकाबले काफी तेजी से बढ़े, लेकिन फिर भी हमें प्रति व्यक्ति आय के मामले में राष्ट्रीय औसत तक पहुंचने में 20 साल लगेंगे.
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