जिला- पटना
पटना जिले की पालीगंज सीट से चौंकाने वाला नतीजा सामने आया है. इस सीट पर सीपीआई-एमएल के उम्मीदवार और जेएनयू के छात्र नेता संदीप सौरव ने पिछली बार के विधायक जय वर्धन यादव को चुनाव हरा दिया है. संदीप काउंटिंग में शुरुआत से ही बढ़त बनाए हुए थे और उन्होंने यह बढ़त आखिरी तक बढ़ाए रखी.

पालीगंज सीट से जीत हासिल करके जेएनयू के पूर्व छात्र नेता संदीप सौरव ने सभी कौ चौंका दिया.
विजयी
नाम- संदीप सौरव पार्टी– सीपीआई-एमएल अब तक वोट मिले- 67917
नंबर 2
नाम- जयवर्धन यादव पार्टी- जेडीयू अब तक वोट मिले- 37002
नंबर 3
नाम- डॉ. उषा विद्यार्थी पार्टी- एलजेपी अब तक वोट मिले-16102
पिछले चुनाव के नतीजे:
2015
2015 के विधानसभा चुनाव में पालीगंज सीट से आरजेडी के टिकट पर जयवर्धन यादव ने जीत हासिल की थी. जयवर्धन यादव ने चुनाव में 65 हजार 932 वोट हासिल किया था. वहीं बीजेपी के कैंडिडेट राम जनम शर्मा को 41 हजार 479 वोट ही मिल पाया था. इस तरह से आरजेडी कैंडिडेट जयवर्धन यादव ने बीजेपी के कैंडिडेट राम जनम शर्मा को 24 हजार 453 वोट के बड़े अंतर से हरा दिया था. वहीं सीपीआई-एमएल कैंडिडेट अनवर हुसैन 19 हजार 438 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे.
2010
साल 2010 के विधानसभा चुनाव में पालीगंज सीट पर बीजेपी कैंडिडेट उषा विद्यार्थी ने जीत हासिल की थी. उषा विद्यार्थी ने 43 हजार 692 वोट हासिल किया था. वहीं आरजेडी के कैंडिडेट जयवर्धन यादव ने 33 हजार 450 वोट हासिल किया था. इस तरह से बीजेपी कैंडिडेट उषा विद्यार्थी ने आरजेडी के कैंडिडेट जयवर्धन यादव को 10 हजार 242 वोट से हरा दिया था. वहीं सीपीआई-एमएल के कैंडिडेट एनके नंदा 16 हजार 748 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे.
सीट ट्रिविया
# पालीगंज विधानसभा सीट पाटलीपुत्र लोकसभा सीट के अंतर्गत आती है.
# पालीगंज के पास उलार नाम की जगह अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए जानी जाती है. यहां पर उलार्क सूर्य मंदिर है. कहते हैं कि भगवान कृष्ण के वंशज साम्ब ने 12 जगहों पर भव्य सूर्य मन्दिर बनवाए थे और भगवान सूर्य की आराधना की थी. उन्हीं 12 मन्दिरों में उलार एक है.
# यहां का मुगलकालीन पुस्तकालय भी बहुत प्रसिद्ध है. यह भारतपुरा में पड़ता है और फिलहाल इसका नाम गोपाल नारायण पब्लिक लाइब्रेरी है.
# इस लाइब्रेरी में 5000 से ज्यादा पांडुलिपियां मौजूद हैं जो अरबी, फारसी और संस्कृत में हैं.
# पालीगंज में आने वाले भारतपुरा गांव साइट पर पिछले छह साल में एक हजार से ज्यादा मुगलकालीन सिक्के मिल चुके हैं. आर्कियोलॉजिस्ट इसे भारत की मध्यकालीन इतिहास की एक महत्वपूर्ण साइट की तरह देखते हैं.