क्या भारत के आसमान में इंडिगो और एयर इंडिया का एकाधिकार खत्म होगा? क्या इंडिगो संकट अब दोबारा नहीं आएगा? इस तरह के कई सवाल अब इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि भारत के सिविल एविएशन सेक्टर में पहले से ज्यादा प्रतिस्पर्धा देखने को मिल सकती है. सरकार ने दो नई एयरलाइंस अल हिंद एयर (Al Hind Air) और फ्लाईएक्सप्रेस (FlyExpress) को मंजूरी दे दी है. इन दोनों एयरलाइंस को सिविल एविएशन मिनिस्ट्री (नागरिक उड्डयन मंत्रालय) से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) मिल गया है.
इंडिगो-एयर इंडिया को मिली चुनौती, इन दो एयरलाइंस को सरकार की मंजूरी, लेकिन उस डर का क्या?
देश में अभी दो बड़ी एयरलाइंस का इस सेक्टर में दबदबा है. इंडिगो (इंटरग्लोब एविएशन ), एयर इंडिया (क्रमश:) नंबर 1 और नंबर दो पर काबिज हैं. इंडिगो की मार्केट हिस्सेदारी करीब 65% है. जबकि एयर इंडिया करीब 25%-27% हिस्सेदारी के साथ नंबर दो पर काबिज है. बचा खुचा अकासा एयरलाइन समेत कुछ दूसरी कंपनियों के पास है.
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वहीं, इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश की कंपनी शंख एयर (Shankh Air) अगले साल से अपनी उड़ाने शुरू कर सकती है. कंपनी को केन्द्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय से पहले ही एनओसी मिल चुका है. सिविल एविएशन मिनिस्टर के राममोहन नायडू ने मंगलवार 24 दिसंबर को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट के जरिए इसकी पुष्टि की. उन्होंने बताया कि मंत्रालय ने शंख एयर, अल हिंद एयर और फ्लाईएक्सप्रेस की टीमों से मुलाकात की है. उन्होंने कहा कि जहां शंख एयर के पास पहले से ही एनओसी है, वहीं अल हिंद एयर और फ्लाईएक्सप्रेस को इस हफ्ते मंजूरी दी गई है.
देश में अभी दो बड़ी एयरलाइंस का इस सेक्टर में दबदबा है. इंडिगो (इंटरग्लोब एविएशन ), एयर इंडिया (क्रमश:) नंबर 1 और नंबर दो पर काबिज हैं. इंडिगो की मार्केट हिस्सेदारी करीब 65% है. जबकि एयर इंडिया करीब 25%-27% हिस्सेदारी के साथ नंबर दो पर काबिज है. बचा खुचा अकासा एयरलाइन समेत कुछ दूसरी कंपनियों के पास है.
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इस समय देश में केवल 9 शेड्यूल्ड घरेलू एयरलाइंस चल रही हैं. शेड्यूल्ड घरेलू एयरलाइंस वे होती हैं जो DGCA (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय) से अनुमति लेकर नियमित समय-सारिणी के हिसाब से यात्रियों या कार्गो को ले जाती हैं. नागरिक उड्डयन महानिदेशालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, इन शेड्यूल्ड एयरलाइंस में इंडिगो, एयर इंडिया, एयर इंडिया एक्सप्रेस, सरकारी एलायंस एयर, अकासा एयर, स्पाइसजेट, स्टार एयर, फ्लाई91 और इंडिया वन एयर शामिल हैं.
इंडिगो संकट के बाद जागी सरकार?इंडिगो के हालिया संकट ने भारत के घरेलू विमानन सेक्टर की हकीकत को सामने ला दिया था. दिसंबर की शुरुआत में देश की सबसे बड़ी एयरलाइन को अपनी सैकड़ों फ्लाइट्स कैंसिल करनी पड़ी थीं. इस वजह से देशभर के एयरपोर्ट्स पर यात्रियों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी थी. इंडिगो संकट ने न केवल डुओपॉली (दो कंपनियों का दबदबा) की समस्या को सामने रखा, बल्कि यह भी दिखाया कि प्रतिस्पर्धा की कमी यात्रियों के हितों और सेवा की गुणवत्ता दोनों के लिए संकट पैदा कर सकती है.
भारत के घरेलू विमानन बाजार में इंडिगो की हिस्सेदारी इतनी है कि अभी हर 3 में से 2 यात्री इंडिगो से हवाई यात्रा कर रहे हैं.
इंडिगो के बाद एयर इंडिया ग्रुप की एयरलाइन (एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस) में सबसे ज्यादा लोग हवाई सफर करते हैं. इस तरह से इंडिगो और एयर इंडिया भारतीय एविएशन सेक्टर में 90% से भी ज्यादा हिस्सेदारी रखती हैं. ऐसे में नई एयरलाइंस को मंजूरी मिलना काफी अहम माना जा रहा है.
इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक UDAN योजना के तहत स्टार एयर, इंडिया वन एयर और फ्लाई91 जैसी एयरलाइंस ने ऐसी फ्लाइट्स बढ़ाई हैं जिनके रूट्स पर अभी हवाई सफर की सुविधा नहीं थी. इससे छोटे शहरों में हवाई सेवाएं बढ़ी हैं. सिविल एविएशन मिनिस्टर के राममोहन नायडू ने कहा कि इस सेगमेंट में अभी विस्तार करने की गुंजाइश बनी हुई है.
कितने दिन टिकेंगी नई एयरलाइंस?केन्द्र सरकार ने नई एयरलाइंस कंपनियों को भले ही मंजूरी दे दी है, लेकिन ये स्थायी संचालन के साथ सफल बिजनेस कर पाएंगी या नहीं, ये देखने वाली बात होगी. एयरलाइन कंपनियों का पुराना ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो पता चलता है कि भारतीय एविएशन बाजार जितना लुभाता है, उतना ही जोखिम भरा भी है. जाहिर है ये आशंका भी जताई जा रही है कि नई एयरलाइंस कितने दिन टिकेंगी. सबसे बड़ा उदाहरण जेट एयरवेज का है, जो कभी एविएशन सेक्टर की सबसे प्रतिष्ठित एयरलाइंस में शुमार थी. लेकिन साल 2019 में भारी कर्ज, ईंधन लागत में बढ़ोतरी के चलते जेट एयरवेज को अपना कामकाज समेटना पड़ा था.
इसी तरह साल 2023 में गो फर्स्ट (पहले गोएयर) को इंजन सप्लाई की समस्या और पैसों की कमी के चलते बंद कर दिया गया. विजय माल्या की किंगफिशर एयरलाइंस साल 2012 में बंद हो चुकी थी.
ये तो कुछ बड़ी एयरलाइंस हैं. इनके अलावा भी कई छोटी एयरलाइंस को भी अपना कामकाज समेटना पड़ा है. इनमें से ज्यादातर एयरलाइंस के डूबने का कारण कम मार्जिन, तगड़ा मुकाबला और जेट फ्यूल (विमान ईंधन) का महंगा होना रहा है.
अडानी एयरपोर्ट्स होल्डिंग्स लिमिटेड (AAHL) के डायरेक्टर जीत अडानी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि अडानी समूह का एयरलाइंस शुरू करने का कोई इरादा नहीं है. उनका कहना है कि इस सेक्टर में मुनाफा बहुत कम होता है. अडानी समूह अभी एयरलाइंस चलाने की जगह एयरपोर्ट का कामकाज संभालता है. फिलहाल समूह देशभर के 8 एयरपोर्ट संभाल रहा है.
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