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कंपनी बिका हुआ शेयर वापस ज्यादा कीमत पर खरीदे तो क्या बेच देना चाहिए?

कंपनियां बाजार से ज्यादा भाव देकर निवेशकों से अपना ही शेयर वापस खरीदती हैं. इस प्रक्रिया को 'शेयर बायबैक' कहते हैं.

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शेयर बायबैक में हिस्सा लेने से पहले कंपनी का कैशफ्लो जरूर देख लेना चाहिए. (Image Credit- Businesstoday & Freepik)

ज्यादातर लोग ये तो जानते हैं कि कंपनियां शेयर बेचती और खरीदती हैं, लेकिन कई लोग ये नहीं जानते कि ये कंपनियां अपने शेयर वापस भी खरीदती हैं. मार्केट की भाषा में यह प्रक्रिया ‘शेयर बायबैक’ कहलाती है. कंपनियां अमूमन बाजार से अधिक दाम पर अपने शेयर वापस खरीदती हैं. ये सुनकर निवेशकों को लगता है कि प्रॉफिट कमाने का ये सही मौका है. लेकिन कई बार शेयर बायबैक का चक्कर भारी भी पड़ सकता है. आइए समझते हैं आखिर कंपनियां अपने शेयर वापस क्यों खरीदती हैं, उनमें हिस्सा लेना चाहिए या नहीं? अगर हां, तो किन चीजों की जांच पड़ताल कर लेनी चाहिए?

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क्यों लाते हैं बायबैक?

सबसे पहले ये समझते हैं कि कंपनी शेयर जारी क्यों करती है. शेयर बाजार कंपनियों के लिए पैसे जुटाने का एक तरीका है. निवेशक पैसे देते हैं, जिसके बदले उन्हें कंपनी में हिस्सेदारी यानी शेयर मिलते हैं. बाद में बिजनेस बढ़ता है तो कंपनियों के पास प्रॉफिट आता है. कंपनियां सोचती हैं कि शेयरधारकों को भी इसका फायदा दिया जाए. ऐसी स्थिति में कंपनी निवेशकों को शेयर के लिए बाजार से ज्यादा भाव देकर उनसे शेयर वापस खरीद लेती हैं. शेयर वापस लेकर कंपनी दो मकसद पूरे करती है. पहला, निवेश के लिए इनवेस्टर्स को इनाम देना. दूसरा, कंपनी की ज्यादातर हिस्सेदारी अपने पास रखना.

कई बार ऐसा भी होता है कि बाजार में किसी कंपनी को लेकर काफी खबरें आने लगती हैं. निवेशक घबराकर शेयर बेचने लगते हैं और शेयरों के दाम बिल्कुल लुढ़क जाते हैं. इस स्थिति में भी कंपनी शेयरों को वापस खरीदकर यह संकेत देती है कि उसकी हालत पूरी तरह मजबूत है. कंपनी के प्रमोटर्स को बिजनेस पर पूरा भरोसा है. खराब माहौल में भी जब कंपनी अपने शेयर वापस खरीदती है तो छोटे ही नहीं बड़े निवेशकों का भी भरोसा बढ़ता है.

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इस मसले पर दी लल्लनटॉप ने केडिया फिनकॉर्प के फाउंडर नितिन केडिया से बात की. ये कंपनी शेयर बाजार में ट्रेडिंग की सुविधा देती है. नितिन ने बताया कि अगर कोई कंपनी बायबैक ला रही है तो इसका मतलब है कि उसका खाताबही काफी मजबूत चल रहा है. बिजनेस मजबूत चल रहा है. शेयरों को वापस खरीदकर वो कंपनी अपने निवेशकों को भी इसका फायदा देना चाहती है. 

उन्होंने बताया,

“बड़े निवेशक, जिन्हें संस्थागत निवेशक भी कहते हैं, उन्हें लगता है कि कंपनी शेयर वापस खरीद रही है इसका मतलब है कंपनी में अंदर स्थिरता है. इस तरह बड़े निवेशकों की भी कंपनी में दिलचस्पी बढ़ने लगती है.”

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फायदा देखकर फिसलें नहीं

नितिन ने आगे कहा,

"लेकिन याद रहे कि बायबैक लाने वाली हर कंपनी का बिजनेस दमदार चल रहा हो ये जरूरी नहीं. कई बार कंपनियां अपना वैल्यूएशन बढ़ाने के लिए भी बायबैक लाती हैं. किसी भी बायबैक प्लान पर भरोसा करने से पहले उस कंपनी का कैशफ्लो चेक करें. कैशफ्लो यानी कंपनी में कहां से पैसे आ रहे हैं और कहां जा रहे हैं.

 

कैशफ्लो में देखें कि कहीं कोई गड़बड़झाला तो नहीं है. अगर कैशफ्लो समझने में दिक्कत है तो गूगल पर इसके लिए कई टूल्स मिल जाएंगे. कई बार होता है कि एक कंपनी पिछले कुछ सालों से घाटे में थी और अचानक से उसे फायदा दिख रहा है. ऐसे में उसके हालिया तिमाही के वित्तीय नतीजे देख सकते हैं. देखना होगा कि कमाई कारोबार के कामकाज से हुई है या अन्य किसी तरीके से. अगर बिजनेस के कामकाज से कमाई की है तो चिंता की बात नहीं है. बायबैक में बेहिचक हिस्सा ले सकते हैं."

अगर कमाई अन्य जरियों से दिखाई गई है तो बायबैक में हिस्सा लेने से बच सकते हैं. इसके अलावा कई बार प्रमोटर्स को लगता है कि कंपनी आगे जाकर अच्छा प्रदर्शन कर सकती है. इसलिए वो बायबैक लाकर ज्यादा शेयर अपने पास ही रखना चाहते हैं.

रिकॉर्ड डेट

शेयरों को वापस खरीदने के लिए कंपनी एक तारीख तय करती है. इसे रिकॉर्ड डेट कहते हैं. इस तारीख तक जिन निवेशकों के पास शेयर होगा केवल वही बायबैक प्लान में हिस्सा ले सकते हैं. बायबैक में हिस्सा लेने के लिए डीमैट खाते में कंपनी के शेयर होने चाहिए. किस तारीख को कंपनी शेयरों को वापस खरीदेगी इसका फैसला भी कंपनी ही करती है. जो शेयरधारक बायबैक में शेयर बेचना चाहते हैं उन्हें इस तारीख तक कंपनी को बताना होगा कि मैं शेयर वापस करना चाहता हूं. ब्रोकिंग प्लेटफॉर्म्स के जरिए शेयरों को वापस बेचने के लिए आवेदन दे सकते हैं.

कंपनी देती है मंजूरी

शेयर वापस बेचने के लिए शेयरधारक जो आवेदन देते हैं उस पर कंपनी ठप्पा लगाती है. आवेदन देते ही डीमैट खाते में उतने शेयर ब्लॉक हो जाते हैं. यानी उन्हें मार्केट में बेच नहीं सकते. जिनका आवेदन मंजूर होता है उनके डीमैट खाते से शेयर ट्रांसफर हो जाते हैं. इन शेयरों के बदले की रकम रजिस्टर्ड बैंक खाते में आ जाती है. अगर आवेदन मंजूर नहीं होता है तो ये शेयर से लॉक हट जाता है और निवेशक उन्हें सामान्य तरीके खरीद बेच सकते हैं.

ध्यान रहे कि शेयर खरीदने के बाद उसे डीमैट खाते में आने में कम से कम दो दिन लगते हैं. इसलिए बायबैक प्लान में हिस्सा लेना चाहते हैं तो रिकॉर्ड डेट से कुछ दिन पहले ही शेयर खरीद कर लें. पूरे बायबैक ऑफर में रिटेल निवेशकों के लिए 15 फीसदी हिस्सा रिजर्व रहता है.

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