सरकार ने 12 जून को बताया है कि इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) अप्रैल में 4.2 पर्सेंट पर पहुंच गया जो मार्च में 1.1 पर्सेंट पर था. यह इंडेक्स बताता है कि फलां महीने में इन-इन इंडस्ट्रीज से इतने सामानों का उत्पादन हुआ है. उत्पादन में बढ़ोतरी रहने पर सरकार उसे ग्रोथ की तरह पेश करती है. बता दें कि मार्च, 2023 में IIP की ग्रोथ 1.1 फीसदी रही थी जो 5 महीने के निचले स्तर पर थी.
ये IIP क्या बला है, जिसके दम पर सरकार 'विकास' का दावा करती है?
इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) अप्रैल में 4.2% पर पहुंच गया.
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मार्च के मुकाबले अप्रैल के आंकड़ों में तेजी को एक बार फिर इकॉनमी में तेजी के सबूत के तौर पर पेश किया जाएगा. विपक्ष एक बार फिर इस पर सवाल खड़े करेगी. आरोप प्रत्यारोप के दौर चलेंगे, लेकिन हम उस झमेले में नहीं फंसते हैं. हम जरा समझते हैं कि आखिर ये IIP होता क्या है और इसे कैसे निकालते हैं. इसकी अहमियत क्या है?
इस आंकड़े को मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लिमेंटेशन का NSO डिविजन जारी करता है. NSO यानी नेशनल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस. IIP इंडेक्स कुछ चुनिंदा इंडस्ट्री के अंदर बनाए गए कुल सामानों की संख्या में इजाफे या गिरावट की दर बताता है. यह इंडेक्स सामानों के दाम में किसी तरह के बदलाव की जानकारी नहीं देता है. हर महीने का IIP इंडेक्स निकालने के बाद उसे 6 सप्ताह के अंतराल पर जारी किया जाता है. मिसाल के तौर पर अप्रैल, 2023 का IIP इंडेक्स 6 सप्ताह बाद 12 जून, 2023 को जारी किया गया है.
IIP इंडेक्स को मुख्यतः दो समूहों में बांटा गया है. पहला है व्यापक क्षेत्र. यानी मैन्युफैक्चरिंग, माइनिंग और इलेक्ट्रिसिटी. दूसरा है- जरूरत का सामान बनाने वाले क्षेत्र. जैसे- कैपिटल गुड्स, बेसिक गुड्स, इंफ्रास्ट्रक्चर गुड्स, इंटरमीडिएट गुड्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और कंज्यूमर नॉन-ड्यूरेबल गुड्स. इसमें कुल आठ प्रमुख इंडस्ट्री को जगह दी गई है, जो बड़े उत्पादन करते हैं. ये सेक्टर हैंः बिजली, स्टील, रिफाइनरी प्रोडक्ट्स, क्रूड ऑयल, कोयला, सीमेंट, नैचुरल गैस, फर्टिलाइजर्स.
इनका IIP इंडेक्स में 40 फीसदी वजन है. IIP निकालने के लिए किन चीजों के उत्पादन आंकड़े लेने हैं उसकी एक लिस्ट है. लिस्ट में शामिल हर आईटम को एक तय वजन मिला हुआ है. उसी हिसाब से चीजों का औसत उत्पादन निकाला जाता है. मैथ्स की भाषा में इन आंकड़ों को निकालने के लिए लास्पेयर्स फिक्स्ड बेस फॉर्म्यूला का इस्तेमाल किया जाता है.
बेस ईयर कौन सी बला हैलगे हाथों ये भी जान लेते हैं बेस-ईयर क्या होता है. बेस-ईयर यानी जिस साल को आंकड़ों की गणना के लिए आधार माना जाता है. 2017 में सरकार ने बेस ईयर बदलकर 2011-12 कर दिया था. यह नौंवीं बार था जब बेस ईयर को बदला गया था. इससे पहले 1937, 1946, 1951, 1956, 1960, 1970, 1980-81, 1993-94 और 2004-05 को बेस ईयर बनाया गया था. वैसे तो बेस-ईयर बदलने से IIP ग्रोथ के आंकड़ों पर कुछ खास फरक नहीं दिखता है.
हां, अगर इंडेक्स के कंपोनेंट्स में कोई बदलाव होता है तब IIP के आंकड़ों में अधिक फेरबदल दिख सकता है. किसी इंडस्ट्री को अगर इंडेक्स में ज्यादा वजन दे दिया गया या कम कर दिया गया उस स्थिति में भी IIP इंडेक्स में बड़ा फेरबदल दिख सकता है. मिसाल के तौर पर जब बेस ईयर 2011-12 से बदला तब 149 नई चीजों को लिस्ट में जोड़ा गया और 124 चीजों को हटा दिया गया.
किसके काम आता है IIP का डेटाइस IIP इंडेक्स के जरिए एक ही जगह पर अर्थव्यवस्था में औद्योगिक गतिविधियों का हिसाब किताब मिल जाता है. इस आंकड़े को सरकारी एजेंसियां, वित्त मंत्रालय, केंद्रीय बैंक नीतियां बनाने के लिए इस्तेमाल करती हैं. कई वित्तीय कंपनियां, पॉलिसी एनालिस्ट और निजी कंपनियां अलग-अलग एनालिटिकल उद्देश्यों के लिए करती हैं. IIP इकलौता ऐसा संकेतक है जो संख्या के आधार पर कुल उत्पादन की जानकारी देता है. तिमाही और एडवांस जीडीपी के अनुमान निकालने में यह बेहद अहम भूमिका निभाता है.
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