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हिंदुओं को HUF के नाम पर मिलने वाली टैक्स छूट का सच ये है

क्या है हिंदू अविभाजित परिवार या HUF, जिसे ओवैसी UCC लाने से पहले खत्म करवाना चाहते हैं?

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परिवार के सदस्यों की तरह HUF का भी अलग से परमानेंट अकाउंट( PAN) नंबर बनता है. (तस्वीर साभार- India today & Pexels)

पीएम मोदी ने हाल ही में भोपाल में अपने भाषण में यूनिफॉर्म सिविल कोड(UCC) का जिक्र किया था. AIMIM के चीफ असुद्दीन ओवैसी ने UCC को लेकर पीएम मोदी पर हमला बोल दिया. ओवैसी ने कहा, उन्हें UCC पर बात करने से पहले हिंदू अविभाजित परिवार HUF के तहत मिलने वाली छूट को खत्म करना चाहिए. तब समान संहिता की बात करनी चाहिए.

ओवैसी के इस तंज के बाद से HUF शब्द चर्चा में आ गया है. लोग जानना चाहते हैं कि हिंदुओं को ऐसी कौनसी छूट मिल रही थी, जिसे लेकर समान संहिता की मांग को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है. और क्या UCC आया, तो ये छूट मिलना बंद हो जाएगी? इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए हमें ये जानना होगा कि HUF की अवधारणा कहां से आई और इसे टैक्स सिस्टम में जगह क्यों दी गई है. और मुस्लिम समुदाय के लोगों को ये छूट क्यों नहीं मिलती?

कहां से आई HUF की अवधारणा ?

हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली (HUF) जॉइंट फैमिली यानी संयुक्त परिवार के बदले इस्तेमाल किया जाने वाला एक टर्म है. इसकी अवधारणा हिंदू कोड बिल से ली गई है. जो कहता है कि हिंदू परिवार के लोग सपिंड सिद्धांत के तहत एक दूसरे से जुड़े होते हैं. मान्यता है कि एक परिवार के भीतर छह पीढ़ी ऊपर और छह पीढ़ी नीचे तक के लोग सपिंड का हिस्सा होते हैं. तो ये सभी सदस्य एक ही पूर्वज के वंशज माने जाते हैं. यहीं से अविभाजित परिवार की अवधारणा आई.

समाज जर्नल में छपे चैराश्री दासगुप्ता और मोहित गुप्ता के लेख के मुताबिक, आधुनिक काल में हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) को कानूनी मान्यता सबसे पहले 19वीं सदी के आखिर में अंग्रेज़ों ने दी. अंग्रेजों के काल में संयुक्त परिवार काफी बड़े हुए करते थे. उनके पास अच्छी खासी खानदानी जायदाद हुआ करती थी. इसलिए अंग्रेज़ों को परिवार को इकाइ बनाकर टैक्स वसूलना एक फायदे का सौदा लगा. 

मगर इस विचार में एक दुविधा भी थी. कि टैक्स लगाते हुए HUF को क्या माना जाए? क्या वो एक कंपनी है, जो नफे-नुकसान को ध्यान में रखकर काम करती है. या फिर परिवार की पारंपरिक परिभाषा को वज़न दिया जाए, जहां परिवार का मकसद सभी सदस्यों का भरण-पोषण होता है. क्योंकि इस सवाल का कोई स्पष्ट जवाब नहीं था, इसीलिए 1860 और 1886 के इनकम टैक्स एक्ट में HUF को एक ''इंडिवीजुअल'' या व्यक्ति मान लिया गया था. 

जब 1917 में सुपर टैक्स बिल पर बहस हुई, तब HUF को एक अलहदा टैक्स इकाई के रूप में पहचान देने का प्रस्ताव आया, जिसे 1922 के इनकम टैक्स एक्ट में शामिल भी कर लिया गया. तब से अब तक HUF भारत के टैक्स कानूनों का हिस्सा है. ज़ाहिर है, जब आज़ादी के बाद संविधान बना, तब भी HUF पर चर्चा हुई थी और इसे कानूनी रूप से परिभाषित किया गया था. जैसा कि हमने पहले भी बताया, HUF की अवधारणा हिंदू कोड बिल से आती है. इसके तहत चार कानून हैं - 
हिंदू मैरिज एक्ट, 
हिंदू सक्सेशन एक्ट, 
हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्डियनशिप एक्ट  
हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट.

ये कानून ''हिंदू'' शब्द को जिस तरह परिभाषित करते हैं, उनके मुताबिक मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदियों को छोड़कर बाकी सभी हिंदू माने जाएंगे. इस हिसाब से बौद्ध, जैन, सिख और आदिवासी अपने आप ''हिंदू'' के दायरे में आ जाते हैं, कम से कम कानून की नज़र में. इसीलिए इन सबको HUF के तहत फायदा मिलता है.

HUF बनता कैसे है?

IT विभाग के मुताबिक, ‘HUF को बनाना नहीं पड़ता, हिंदू परिवारों में यह खुद ब खुद बन जाता है.’ बस आपको पारिवारिक संपत्ति से हुई आय के मामले में HUF कैटेगरी के तहत टैक्स फाइल करना है. हर HUF में को-पार्सेनर और सदस्य और एक कर्ता होता है. परिवार का वरिष्ठ पुरुष सदस्य ही HUF का कर्ता (मुखिया) माना गया है. परिवार के लोग (जिनके बीच खून का रिश्ता होता है) को-पार्सेनर कहलाते हैं और रिश्तेदार सदस्य कहलाते हैं. बेटा, बेटी और पत्नी कोपार्सेनर माने जाते हैं. मालूम हो कि 2005 से पहले तक पत्नी HUF में सदस्य ही मानी जाती थी, लेकिन सक्सेशन एक्ट में संशोधन के बाद से पत्नी को भी HUF कोपार्सेनर का अधिकार दिया जाने लगा है.

अब जानते हैं HUF और इनकम टैक्स का कनेक्शन. मौजूदा आयकर कानून HUF को ना सिर्फ एक अलग कैटिगरी मानता है. इसके तहत टैक्स जमा करने का अलग प्रावधान भी बनाया गया है. हालांकि, इस कैटेगरी के तहत टैक्स फाइल करने के लिए कुछ शर्तें हैंः

i) HUF हिंदू परिवार ही बना सकते हैं. सभी सदस्यों के बीच कोपार्सेनरशिप होनी चाहिए. जिस संपत्ति को HUF के तहत रजिस्टर कराया जाएगा, HUF खत्म करने तक वह संपत्ति HUF की ही मानी जाएगी. एक HUF में कितने सदस्य होंगे इसकी कोई फिक्स संख्या नहीं है. परिवार में बच्चों के जन्म के साथ संख्या बढ़ती जाएगी और किसी मृत्यु होने पर घट जाएगी.

ii) HUF के तहत टैक्स जमा करने की दूसरी शर्त है, जॉइंट फैमिली के पास खानदानी (सामूहिक) प्रॉपर्टी होनी चाहिए. ये कुछ भी हो सकता है - ज़मीन, दुकान, मकान, गहने या फिर पैसे या खानदानी संपत्ति बेचकर खरीदा हुआ असेट. HUF के सदस्यों को ट्रांसफर से मिली प्रॉपर्टी भी सामूहिक प्रॉपर्टी मानी जाती है. आयकर विभाग ने खानदानी संपत्ति को परिभाषित किया है. किसी भी पुरुष को अपने पिछले तीन पुरुष पीढ़ियों से मिली संपत्ति उसकी खानदानी जायदाद मानी जाएगी. 

कैसे काम करता है HUF?

परिवार के सदस्यों की तरह HUF का भी अलग से परमानेंट अकाउंट( PAN) नंबर बनता है. इसे IT विभाग ही जारी करता है. इस तरह इंडिविजुअल टैक्सपेयर HUF को एक अलग इकाई बताकर पारिवारिक संपत्ति के लिए अलग से टैक्स फाइल कर सकते हैं.

उदाहरण के तौर पर मान लेते हैं किसी शख्स को पैरेंट्स से खानदानी संपत्ति मिली है. उसे बेचने पर जो भी पैसा मिलेगा उसे पर्सनल इनकम मानकर उसी हिसाब से टैक्स लिया जाएगा. अब दिक्कत ये है कि अमूमन लोगों की सैलरी होती है, दूसरी आय होती है. ऐसे में अगर पारिवारिक संपत्ति से हुआ लाभ भी उसके खाते में जोड़ दिया जाए, तो इतना टैक्स बनेगा कि अगले का भट्टा बैठ जाएगा. लेकिन अगर ये शख्स इंडिविजुअल रिटर्न की जगह HUF के अंदर रिटर्न फाइल करे, तो फायदे में रहेगा.

कर्ता की खानदानी संपत्ति जिस पर संयुक्त परिवार का हक हो या ऐसी संपत्ति जो उसने खुद खरीदी हो और उसे अपने परिवार वालों में बांटना चाहता हो उसके लिए HUF बनाया जा सकता है. इस तरह ये कमाई उसके अकेली की नहीं बल्कि परिवार की मानी जाएगी. सादी भाषा में, आपके परिवार से आपको फायदा मिला. लेकिन आपने सरकार को ये बताया कि ये फायदा तो पूरे परिवार को हुआ है, और इस बिनाह पर सरकार ने आपको टैक्स में छूट दे दी.

HUF इन पैसों को एक इंडिविजुअल की तरह इनवेस्ट भी कर सकता है. माने छूट तो छूट, HUF का पैसा ग्रो भी कर सकता है. बस एक बात का ध्यान रखना होता है. जो भी फायदा या नुकसान होगा, वो पूरे HUF का होगा. इंडिविजुअल और HUF दोनों ही सेक्शन 80 के साथ-साथ सभी टैक्स छूट का फायदा ले सकते हैं. HUF चाहे तो अपने परिवार के सदस्यों को सैलरी भी दे सकता है. HUF अपनी आय में से इसे घटाकर दिखा सकता है. HUF को भी इंडिविजुअल की तरह ढाई लाख रुपये तक की कमाई पर टैक्स से छूट मिलती है.

HUF के कोपार्सेनर या सदस्यों के पास कोई शक्ति नहीं होती है. हालांकि, अगर किसी कोपर्सेनर को लगता है कि कर्ता ने गलत तरीके से प्रॉपर्टी बेच दी है तो वह कर्ता के खिलाफ कोर्ट जा सकता है.

टैक्स एक्सपर्ट जितेंद्र सोलंकी ने दी लल्लनटॉप को बताया कि 2005 वाले संशोधन ने खानदानी जायदाद में लड़कियों को बराबर का अधिकार दिया. मुखिया की मौत होने पर पत्नी कर्ता बन सकती है. उसके बाद बेटे या बेटी जो भी उम्र में बड़ा हो उसे HUF का मुखिया यानी कर्ता माना जाएगा. बेटी अगर बड़ी हो तो अपने नाम से HUF बना भी सकती है.

HUF के नुकसान(?)

टैक्स के मामले में HUF का फायदा है, तो घाटा भी है. कई सालों से HUF को खत्म करने की मांग हो रही है. सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि जब तक HUF के सभी सदस्य ना चाहें, तब तक इसे भंग नहीं किया जा सकता. कई बार यह परिवारों में झगड़े का कारण बनता है. जब तक सभी को-पार्सेनर HUF को खत्म करने के लिए राजी नहीं होते, इसे खत्म नहीं किया जा सकता.

2018 में लॉ कमिशन ऑफ इंडिया ने रिफॉर्म इन फैमिली लॉ नाम से एक पेपर पब्लिश किया था. इसमें कुछ संशोधनों की सलाह दी गई थी. पेपर में कहा गया था कि HUF ना तो बिजनेस इकाई की तरह कॉर्पोरेट गवर्नेंस का पालन करता है और ना ही यह टैक्स के ढांचे के अनुरूप है. 

पेपर में ये भी कहा गया,

‘’1936 में इनकम टैक्स एन्क्वायरी रिपोर्ट ने हिदायत देते हुए कहा था कि अगर HUF को खास दर्जा दिया गया तो इससे रेवेन्यू का घाटा होगा. आजादी के बाद कई और समितियों ने भी HUF को विशेष टैक्स छूट देने का विरोध किया था. आजादी को 72 साल बीत चुके हैं. सिर्फ धार्मिक भावनाओं के नाम पर HUF को अस्तित्व में रखने का कोई तुक नहीं है. वो भी तब, जब इससे देश के रेवेन्यू में घाटा हो रहा हो.” 

हालांकि, कमिशन की इस सलाह पर अमल नहीं हुआ. 

UCC पर चर्चा के बाद ओवैसी के बयान ने एक बार फिर HUF पर बहस छेड़ दी है. ओवैसी ने आरोप लगाया कि HUF के नाम पर हर साल 3 हज़ार 064 करोड़ रुपये छोड़ दिए जा रहे हैं, जो देश के खाते में आ सकते थे. इस पर टैक्स एक्सपर्ट विनोद रावल ने कहा कि अब तो HUF के तहत गिने चुने परिवार ही टैक्स फाइल कर रहे हैं. ऐसा भी नहीं है कि HUF टैक्स प्रावधान खत्म करके बहुत बड़ी कमाई बचा ली जाएगी.

मुस्लिम, पारसी, ईसाई को अविभाजित परिवार वाला फायदा क्यों नहीं मिलता?

पारिवारिक मूल्यों का संबंध अगर धर्म से है, तो उससे ज़्यादा स्थान से है. पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में आपको संयुक्त परिवार मिलते हैं. मुस्लिम, ईसाई, यहूदी और पारसी समुदायों में भी बड़े-बड़े संयुक्त परिवारों की परंपरा रही है. ऐसे में ये सवाल लाज़मी है कि जब हिंदू अविभाजित परिवारों को टैक्स में छूट मिल रही है, तो फिर इन 4 धर्मों को छूट से वंचित क्यों रखा गया?

लखनऊ हाई कोर्ट में टैक्स लॉ प्रैक्टिस कर रहे अजय राय ने दी लल्लनटॉप को बताया, ‘HUF हिंदू कोड से प्रेरित है. क्योंकि उस समय हिंदुओं में राजे-रजवाड़े, तालुकेदार जैसे बड़े परिवारों की बड़ी सैलरी हुआ करती थी. इसलिए परिवारिक स्तर पर टैक्स की व्यवस्था बनाई गई थी. रही बात मुस्लिमों को HUF जैसी टैक्स छूट का फायदा देने की तो उनके पर्सनल लॉ में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं थी. इसलिए उन्हें HUF में शामिल नहीं किया गया. इसके अलावा मुस्लिमों की तरफ से HUF जैसी सुविधा की कोई मांग नहीं उठाई गई होगी. वरना उस पर अमल जरूर किया जाता. अगर चाहा जाए तो आराम से एक ऐसी व्यवस्था लाई जा सकती है जो सभी के लिए लागू हो. ये इतनी बड़ी बात नहीं है. चाहें तो ऐसा टैक्स प्रावधान बनाया जा सकता है जो सभी धर्मों में संयुक्त परिवारों के लिए लागू हो.

इसी तरह टैक्स एक्सपर्ट जितेंद्र सोलंकी ने कहा कि हम लोग आमतौर पर HUF टैक्स कैटेगरी को नहीं चुनने की सलाह देते हैं. क्योंकि, HUF के तहत टैक्स फाइल करना आसान है, लेकिन इसे खत्म करना बहुत लफड़े का काम है. इसलिए बेहतर है कि HUF में टैक्स ना फाइल किया जाए. इसके अलावा सरकार नया टैक्स रूल लाने पर काम कर रही, जिसमें सभी तरह की छूट खत्म हो जाएगी. सभी के लिए एक जैसा टैक्स नियम हो जाएगा और किसी को प्राथमिकता नहीं मिलेगी.

हिंदू कानून से प्रेरित है जायदाद बंटवारे का तरीका

हिंदू कानून के सक्सेशन एक्ट के तहत संयुक्त परिवार में जायदाद के मालिकाना हक से जुड़े नियम तय किए गए हैं. हिंदू कोड में प्रॉपर्टी बंटवारे के दो तरीकों का जिक्र आता है. मिताक्षरा और दयाभाग. दोनों सिस्टम में कहा गया है कि खानदान में पैदा होने वाली संतान संपत्ति की हकदार मानी जाएंगी और इन्हें को-पार्सेनर(coparcener) कहा जाएगा. मिताक्षरा सिस्टम में लड़के के जन्म के साथ ही उसे पिता की खानदानी संपत्ति का वारिस मान लिया जाता है. बेटी इस सिस्टम की सदस्य होगी, लेकिन उसका कोई अधिकार नहीं होगा. वैसे 2005 में हुए संशोधन के बाद बेटियों को उनका हक मिलने लगा.

वहीं, दयाभाग सिस्टम में संयुक्त परिवार का कोई मतलब नहीं है. इस सिस्टम के तहत पिता की मृत्यु के बाद ही बेटा एक संयुक्त परिवार बनाता है. देश के पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में ही दयाभाग सिस्टम का पालन किया जाता है. हिंदू कोड के पहले ड्राफ्ट में इन पारंपरिक कानूनों को हटाने की पेशकश की गई थी लेकिन इन्हें नहीं हटाया गया. इस तरह आजादी के बाद HUF को संविधान में जगह मिली. इन दोनों सिस्टम की झलक साफ-साफ HUF के प्रभावी नियमों में देखने को मिलती है.

वीडियो: असदुद्दीन ओवैसी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बड़ी बात बोल दी