आपकी कार या बाइक का इंश्योरेंस नॉर्मल हो या फिर कॉम्प्रिहेंसिव. इसमें एक चीज कॉमन होती है. IDV यानी Insured Declared Value. आसान भाषा में कहें तो गाड़ी की वो कीमत जो बीमा करने वाली कंपनी और आपके बीच तय होती है. गाड़ी की असल कीमत से इसका कोई लेना-देना नहीं होता. IDV हमेशा गाड़ी की असल कीमत से कम होती है भले वो शोरूम से क्यों ना आई हो. समय के साथ IDV कम होती जाती है. इतना सब आपको पता ही होगा. मगर कभी दिमाग में ब्रेक लगा कि ये IDV तय कैसे होती है. कोई फार्मूला है या फिर बस ‘सवारी अपने समान की खुद जिम्मेदार हैं’ वाला मामला है. जानते हैं जरा.
गाड़ी के बीमा के साथ चिपक कर आने वाले IDV का क्या मतलब है, हमेशा घटने वाली कीमत ही क्यों तय होती है
Insured Declared Value: इंश्योर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू (IDV) को कार का वर्तमान मूल्य भी कहा जाता है. गाड़ी खरीदने की शुरुआत में IDV ज्यादा होता है. लेकिन समय के साथ ये घटता चला जाता है. बाकी, आपकी कार की वैल्यू कई फैक्टर्स पर निर्भर करती हैं.


इंश्योर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू (IDV) कार का वो मूल्य होता है, जो गाड़ी चोरी होने या दुर्घटना से नुकसान होने पर गाड़ी मालिक को दिया जाता है. IDV को आपकी गाड़ी का वर्तमान बाजार मूल्य भी कह सकते हैं. आपकी गाड़ी जैसे-जैसे पुरानी होती जाएगी. इसकी वैल्यू भी कम होती जाएगी. बस वैसे ही जैसे बाजार में पुरानी कार की होती है. मतलब कि गाड़ी खरीदने के 6 महीने के अंदर ही आपकी गाड़ी चोरी हो गई या फिर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई, तो आपने जितने रुपये में कार खरीदी थी, लगभग उतने ही पैसे आपको मिलेंगे. मतलब ऐसा होने के चांस बहुत ज्यादा हैं. कम भी मिल सकते हैं लेकिन 4 साल बाद आपकी कार के साथ कुछ होता है, तो इंश्योरेंस क्लेम कम होगा. इसे डेप्रिसिएशनवैल्यू कहते हैं.

कार खरीदने के शुरु-शुरू में डेप्रिसिएशन वैल्यू कम होती है. लेकिन समय के साथ ये बढ़ने लगती है. जैसे 6 महीने तक आपकी कार की IDV 95 फीसदी और डेप्रिसिएशन 5फीसदी होगा. अगर आपकी कार 6 महीने के अंदर चोरी होती है, तो कार की कीमत से हिसाब से आपको इंश्योर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू मिलेगी. लेकिन समय के साथ ये घट जाएगी और कार की डेप्रिसिएशन वैल्यू बढ़ जाएगी. नीचे दिए गए चार्ट से समझिए कि IDV कैसे मिलती है.
| कार की उम्र | डेप्रिसिएशन |
| 6 महीने और उससे कम | 5% |
| 6 महीने से 1 साल | 15% |
| 1 साल से 2 साल | 20% |
| 2 साल से 3 साल | 30% |
| 3 साल से 4 साल | 40% |
| 4 साल से 5 साल | 50% |
| 5 साल से ऊपर | बात करने के बाद जो मिले |
बाकी, आपकी गाड़ी की इंश्योर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू प्रीमियम पर भी निर्भर करती है.जैसे कि आप प्रीमियम ज्यादा लेंगे, तो आपको कार की वैल्यू भी ज्यादा मिलेगी. अगर लो इंश्योर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू ली जाएगी, तो गाड़ी की वैल्यू चोरी या क्षतिग्रस्त की स्थिति में कम मिलेगी.
इसे ऐसे समझिए, आपकी कार की कीमत 6 लाख रुपये है और आपने लो इंश्योर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू लिया है. यानी 5 लाख रुपये. ऐसे में आपको प्रीमियम कम देना होगा. लेकिन कार के साथ कुछ हुआ तो आपको गाड़ी की वैल्यू सिर्फ 5 लाख रुपये मिलेगी. हकीकत में 5 लाख से कम ही क्योंकि बीमा कंपनी तमाम नियम और शर्तें लगाकर वैल्यू को गिरा देती हैं. हां, आपने महंगा प्रीमियम लिया हुआ है मतलब 6 लाख की गाड़ी पर 6.3 लाख रुपये का इंश्योरेंस. ऐसे में आपको प्रीमियम के लिए ज्यादा खर्च करना होगा पर गाड़ी को कुछ हुआ, तो नुकसान की भरपाई बीमा क्लेम में कवर हो जाएगी. इसके अलावा भी व्हीकल की इंश्योर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू कई फैक्टर्स को देखते हुए तय होती है
IDVकैसे होती है तय?कार की उम्र: कार की उम्र IDV तय करने के लिए जरूरी है. गाड़ी जितनी पुरानी होगी, उसकी मार्केट में वैल्यू उतनी ही कम होगी. इसलिए ध्यान रहे कि पुरानी कार की वैल्यू बिल्कुल नए वाहन की तुलना में कम होगी. बाकी पुरानी गाड़ी की कंडीशन अगर अच्छी हुई, तो भी IDV अच्छा मिल जाएगा.
कार का टाइप: मार्केट में कई तरह की कारें हैं. माने कि सेडान, हैचबैक, SUV, MUVs (मल्टी-यूटिलिटी व्हीकल). इसलिए IDV उसके मुताबिक भी बदलती रहती है. जैसे कि Honda कार की IDV BMW की तुलना में सस्ती होगी.
कार मॉडल: एक ही तरह के कई कार मॉडल्स में भी IDV अलग-अलग हो सकते हैं. जैसे कि SUV. यह ब्रांड यानी मैनुफैक्चर और कार के किसी खास मॉडल में दिए गए फीचर्स पर डिपेंड करता है.
खरीद की जगह: आप कार कहां से खरीद रहे हैं, ये भी आपकी कार की इंश्योर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू को प्रभावित करती है. क्योंकि ये वैल्यू एक्स शोरूम प्राइस पर लगता है, जो राज्यों के हिसाब से अलग हो सकती है. माने कि Honda Amaze की एक्स शोरूम कीमत मुंबई, दिल्ली और कर्नाटक में अलग-अलग हो सकती है.
एक्सेसरीज: IDV का अमाउंट तय करते समय एक्सेसरीज पर भी गिरावट लागू होती है. अगर कार में कुछ कंपनी से ही लगा आया है, तो वो एक्स शोरूम कीमत में शामिल होगा. लेकिन आपने कार खरीदने के बाद बाहर से अलॉय व्हील लगवाएं, सीट कवर नए लगवाएं, तो आप उन्हें भी इंश्योरेंस में कवर करवा सकते हैं.
चलिए एक और उदाहरण से समझते हैं कि IDV काम कैसे करता है.
मान लीजिए कि गौरव नाम के शख्स ने एक कार खरीदी, जिसका एक्स शोरूम प्राइस 10 लाख रुपये है. वहीं, गुकेश नाम के भी एक शख्स ने 10 लाख रुपये की कार खरीदी. 1 साल बाद गौरव की कार चोरी और गुकेश की कार बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाती है. ऐसे में 15% डेप्रिसिएशन के हिसाब से दोनों की कार की इंश्योर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू 8 लाख 50 हजार होनी चाहिए थी. लेकिन गौरव को उसकी कार की IDV 8 लाख 85 हजार मिली और गुकेश को 8 लाख 50 हजार. अब ऐसा क्यों? बता दें कि गौरव ने कार खरीदने के बाद अपनी कार में बाहर से 50 हजार की एक्सेसरीज लगवाई थी. हालांकि, समय के साथ एक्सेसरीज का मूल्य भी कम हुआ और गौरव को सिर्फ 35 हजार मिले.
माने पूरा मामला आपके बीमा के प्रीमियम और कंपनी से आपकी बातचीत पर निर्भर करता है. इसलिए हमेशा कंपनी से बात कीजिए. मोल-भाव कीजिए और हर बात को लिखित में जरूर लीजिए.
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