शायद आपमें से बहुत लोग ये बात जानते होंगे कि मुस्लिम पर्सनल लॉ, यानी भारत में रह रहे मुसलमान जिन व्यक्तिगत कानूनों का पालन करते हैं, उनमें किसी बच्चे को गोद लेने (अडॉप्ट करने) की अनुमति नहीं है। यानी भारत के मुसलमान पर्सनल लॉ के तहत किसी बच्चे को गोद नहीं ले सकते.
छूट सिर्फ इतनी है कि उन्हें कुछ गार्डियनशिप राइट्स मिल जाते हैं, लेकिन उसमें बच्चा कानूनी उत्तराधिकारी (legal heir) नहीं बनता. यानी उसे एक बच्चे के रूप में कोई भी कानूनी अधिकार नहीं मिलते.
एक मुस्लिम कपल को अडॉप्शन से रोका गया तो मद्रास हाईकोर्ट ने फटकार लगा दी
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि मुस्लिम कपल भी जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 के तहत बच्चे को गोद ले सकते हैं, और गोद लिया बच्चा अपने जैविक बच्चे जैसा ही हकदार होगा.
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लेकिन अगर ऐसा है, तो क्या भारत में मुसलमान बच्चे गोद नहीं ले सकते?
जवाब है, नहीं, बिल्कुल ले सकते हैं.
क्योंकि हमारे कानून निर्माताओं ने देश की सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए ऐसे कानून बनाए हैं जिनसे ऐसे बच्चों को, जिनका कोई नहीं है, आसानी से गोद लिया जा सके.
इसी उद्देश्य से साल 2000 में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट लाया गया था.
और 2015 में इसमें एक बड़ा संशोधन किया गया, जिसके बाद कोई भी व्यक्ति, धर्म की परवाह किए बिना, किसी बच्चे को गोद ले सकता है.
ये बदलाव इसलिए किया गया क्योंकि भारत में कई कपल केवल अपने धर्म की वजह से बच्चे को गोद नहीं ले पा रहे थे. उनके पास हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट जैसा कोई प्रावधान नहीं था.
अब 22 अक्टूबर को एक मुस्लिम कपल मद्रास हाईकोर्ट पहुँचा. उन्होंने बताया कि उनका कोई बच्चा नहीं है. हाल ही में उनके भाई की मृत्यु हो गई थी, और उनके पीछे तीन बच्चे रह गए. भाई की पत्नी के लिए उन तीनों बच्चों की देखभाल करना बहुत मुश्किल हो रहा था.
भाई की पत्नी ने खुद कपल से कहा कि तीन में से एक बच्चे को वे गोद ले लें और उसकी पूरी जिम्मेदारी उठाएं.
कपल ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत सभी कानूनी प्रक्रियाएँ पूरी कीं, लेकिन फिर भी संबंधित अधिकारियों ने यह कहते हुए अडॉप्शन रजिस्टर करने से इनकार कर दिया कि “मुस्लिम कपल बच्चे को गोद नहीं ले सकते.”
मद्रास हाईकोर्ट ने जब मामले की गहराई से जांच की, तो पाया कि अधिकारियों ने गलत तरीके से कपल के वैध अधिकार को ठुकरा दिया है.
कोर्ट ने कहा,
“जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 को अगर संविधान के अनुच्छेद 15(3) के साथ पढ़ा जाए, तो यह मुस्लिम पर्सनल लॉ पर प्राथमिकता रखता है. कोई भी मुस्लिम कपल इस एक्ट के तहत बच्चे को गोद लेने का अधिकार रखता है. गोद लिया बच्चा जैविक बच्चे के समान सभी अधिकारों का हकदार होगा, और उसे किसी भी तरह दूसरे दर्जे का नहीं माना जा सकता.”
अंत में कोर्ट ने यह भी कहा कि इस देश में ज़रूरी है कि ज़्यादा से ज़्यादा बच्चों को गोद लिया जाए, और प्रशासन को इस प्रक्रिया में रुकावट नहीं डालनी चाहिए, क्योंकि हमारे देश में कई अनाथ बच्चे हैं जो एक बेहतर भविष्य के हकदार हैं.
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