एक परिवार में तीन लोग हैं. वे सभी अपनी गाड़ी से घूमने जा रहे हैं. यहां विक्रांत (पिता) ड्राइव कर रहा है. रिचा (माता) अपने बच्चे (सिया) को लेकर पैसेंजर सीट पर बैठी है. तभी किसी वजह से विक्रांत तेज स्पीड के दौरान ही ब्रेक लगा देता है. इससे वो और उसकी वाइफ रिचा बिल्कुल आगे की तरफ झुक जाते हैं. अगर सीटबेल्ट ना होती, तो उनके सिर डैशबोर्ड पर लग सकते थे.
क्या आपकी कार में भी है Isofix सीट? इसका मतलब जान लीजिए
What is Isofix seat: आज भी कई लोग गाड़ी में बच्चों को गोद में लेकर बैठते हैं, जो खतरनाक है. बच्चों की सुरक्षा के लिए कार में Isofix सीट दी जाती है. ये कई तरह की होती हैं.


खैर, उन्हें तो कुछ नहीं होता, लेकिन सिया को चोट लग जाती है, क्योंकि एक दम लगे धक्के की वजह से रिचा के हाथ से सिया फिसल जाती है. पर उसे थोड़ी ही चोट लगती है. ये सिर्फ एक कहानी है, लेकिन आज भी कई लोग अपने बच्चों केे साथ ऐसे ही सफर करते हैं. माने, बच्चों को गोद में लेकर बैठना या फिर बड़े लोगों के लिए बनी सीट बेल्ट से ही बच्चों की सेफ्टी का भी काम चलाना.
लेकिन ये नया जमाना है और नए जमाने में बच्चों को कार में सेफ रखने वाले एक शब्द का काफी इस्तेमाल हो रहा है. ये शब्द है Isofix Seat. लेकिन ये सीट क्या है और हर माता-पिता को इनके बारे में क्यों जानना चाहिए? इसी पर बात करते हैं.
Isofix यानी इंटरनेशनल स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन फिक्स. इसमें बच्चों की सीट होती है, जिसे आसानी और सुरक्षित तरीके से लगाने (इंस्टॉल करने) का एक मानक सिस्टम है. इस सिस्टम में कार के फ्रेम पर वेल्डेड मेटल एंकर पॉइंट्स दिए जाते हैं.
इन एंकर प्वाइंट्स पर बच्चों की सीट के क्लिप्स सीधे फिट किए जा सकते हैं, जिससे चाइल्ड सीट को सही पोजीशन और मजबूती से लगाया जा सकता है. आसान शब्दों में अगर कार में Isofix सीट फिट करने का फीचर है, तो आप अलग से बच्चों की स्पेशल सीट फिट कर सकते हैं.
इन एंकर-प्वाइंट्स की मदद से चाइल्ड सीट सीधे चेसिस से जुड़ती है, जो इसे और भी मजबूत बनाता है. अचानक ब्रेक लगने या टक्कर की सिचुएशन में Isofix के साथ सीट अपनी जगह पर ही बनी रहती है. इससे बच्चों की गर्दन, सिर और रीढ़ की हड्डी को बेहतर सुरक्षा मिलती है.

Isofix सीट लगाना आसान है. आपको बस चाइल्ड सीट के कनेक्टर को कार में लगे Isofix एंकर पॉइंट्स के साथ जोड़ना है. सीट इंस्टॉल करते समय जब क्लिक की आवाज आए, तो समझ जाइए कि एंकर पॉइंट्स सीट से जुड़ चुके हैं. कुछ प्रीमियम मॉडल्स में विजुअल इंडिकेटर भी होते हैं. ये सीट के ठीक से लॉक होने पर हरे रंग में बदल जाते हैं.
तीन तरह की होती हैं Isofix सीटइंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, Isofix सीट तीन तरह की होती है. इन्हें बच्चों की उम्र और वजन के हिसाब से सेफ्टी के लिए डिजाइन किया जाता है. ये सभी ब्रांड्स और मॉडल के आधार पर इंस्टॉल हो सकती हैं.
1 साल तक (वजन 13 किलोग्राम तक)- इन बच्चों के लिए रियर-फेसिंग सीट सबसे सेफ मानी जाती है. ये सीट टक्कर के समय बच्चे के सिर और गर्दन को बेहतर सेफ्टी देती है.
1-4 साल के बच्चे (वजन 9-18 किलोग्राम )- इस उम्र में फ्रंट-फेसिंग सीट यूज की जाती है. इसमें फाइव प्वाइंट हार्नेस बेल्ट होती है, जो बच्चों को मजबूती से पकड़कर रखती है.
4-12 साल के बच्चे (वजन 15-36 किलोग्राम )- इस उम्र के लिए बूस्टर सीट आती है. यह बच्चे को थोड़ा ऊपर उठाती है, ताकि कार की सीट बेल्ट उसके कंधे और छाती पर ठीक से फिट हो पाए.
कई कार कंपनियां अपनी कारों में Isofix सीट देती है. इन सीट को बनाने का मकसद बच्चों की सुरक्षा है. इसलिए, जब भी आप बच्चों को कार में बैठाएं, तो उनके लिए Isofix सीट बेहतर और सिक्योर ऑप्शन है.
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