ज़हीर खान. स्विंग बॉलिंग के उस्ताद. गेंद जिसका कहना मानती थी. जिसके इशारों पर ठीक वहीं पहुंचती, जहां उसे भेजा जाता था. एक जमाना था, जब जहीर की गेंदों के सामने दुनिया के सबसे बेहतरीन बल्लेबाज भी चकरा जाते थे. लेकिन इस महारत को हासिल करने के पीछे जहीर के जज्बे की कहानी खासी दिलचस्प है. आइए, आज जहीर खान के जन्मदिन पर उनके दो ऐसे किस्से बताते हैं, जिन्होंने 8 साल के अंदर उनकी पूरी इमेज ही बदल दी थी.
2 अप्रैल 2011. वानखेड़े स्टेडियम, मुंबई. पूरा देश टीवी से चिपका हुआ था. स्टेडियम में शोर चरम पर. बॉलर, बॉल फेंकने को दौड़ता है. उसका चौथा ओवर. पहले तीन ओवर मेडेन जा चुके हैं. एक भी रन नहीं. इनिंग्स का सातवां ओवर. इसकी फेंकी हुई 18 गेंदें और सामने वाली टीम एक भी रन बनाने में नाकाम रही. लेफ़्ट आर्म ओवर द विकेट. पहली गेंद. लेंथ बॉल, ऑफ स्टम्प की लाइन में टप्पा खाती हुई. बैट्समैन तक पहुंचते-पहुंचते अच्छा बाउंस पा चुकी थी. साथ ही बाहर की ओर जाने लगी. बैट्समैन न चाहते हुए भी अपना बल्ला छुआ बैठा. सहवाग अपने साइड में डाइव मार के आगे की कार्रवाई पूरी करते हैं. वानखेड़े में शोर और भी बढ़ जाता है. टीवी देखते हुए लोग तालियां पीटने लगते हैं. बैट्समैन पवेलियन की ओर, और बॉलर अपने दोनों हाथ उठाये टीम की ओर चलने लगता है. इंडिया को पहला विकेट मिल चुका था. शेर के मुंह में खून लग चुका था. इसी शेर ने उस शाम एक शिकार और किया. कुछ घंटे बाद इंडिया वर्ल्ड कप जीत चुका था. सफ़लता! जश्न! प्यार! और ज़हीर खान!
*फ्लैशबैक*
ठीक 8 साल 10 दिन पहले. जोहांसबर्ग, साउथ अफ्रीका. इंडिया अपने दूसरे वर्ल्ड कप फाइनल में था. सामने थी ऑस्ट्रेलिया. ये ऑस्ट्रेलिया का वो रूप था, जिसे अजेय कहा जाता था. एक-एक प्लेयर अपने अंदर डायनामाइट लेकर चलता था. वर्ल्ड कप में पहले भी ये दोनों टीमें भिड़ चुकी थीं. इंडिया हार चुकी थी. नतीज़ा – इंडिया पर बढ़ा हुआ प्रेशर. सचिन पर परफॉर्म करने का प्रेशर. दादा पर शॉर्ट बॉल के सामने टिके रहने का प्रेशर. मगर उससे पहले था बॉलर्स पर ऑस्ट्रेलिया को रोकने का प्रेशर.
पहली गेंद. ज़हीर खान. सामने ऐडम गिलक्रिस्ट. सामने वर्ल्ड कप जीतने का ख्वाब. लेफ़्ट आर्म ओवर द विकेट. नो बॉल. ये प्रेशर की कारस्तानी थी. तेज़ गेंद फेंकने का प्रेशर. अड्डे पर गेंद फेंकने का प्रेशर. कोई मौका न देने का प्रेशर. एक ओवर में 6 गेंदें होती हैं. ज़हीर ने उस रोज़ कुल 10 गेंदें फेंकीं. 15 रन आये. 8 रन एक्स्ट्रा आये. और फिर 88.2 ओवर फेंके जाने के बाद इंडिया वर्ल्ड कप हार गया.
अगले दिन अखबार में खबर छपी, “It all started with a no ball.”ज़हीर पर ठीकरा फोड़ दिया गया था. कहते हैं उस पहले ओवर ने मैच हरा दिया था. बाकी के 88.2 ओवर तो औपचारिकता मात्र थे.
8 साल 10 दिन. और इतना बड़ा बदलाव. वर्ल्ड कप हराने से लेकर जिताने तक. ये सफ़र ज़हीर खान की क्रिकेट में कुल जमा कमाई है. और इस कमाई पर कोई टैक्स नहीं लग सकता. ये सब कुछ ज़हीर खान का है. और साथ में है भरपूर प्यार और इज्ज़त.
ज़हीर खान. लेफ़्ट आर्म पेसर. गेंद जिसका कहना मानती थी.
एक अग्रेसिव रन-अप, बॉलिंग स्ट्राइड पर आने पर एक ऊंचा जम्प और कुल मिलाके एक सॉलिड ऐक्शन ज़हीर खान की गेंदों को 140 के आस-पास रखता था. इस पर लेफ़्ट आर्म ऐक्शन चार चांद लगा देता था. लेफ़्ट आर्म पेसर में कुछ ऐसा होता ही है जो राइट आर्म पेसर्स में नहीं मिल पाता. आप चाहते हैं कि वो गेंद फेंकते रहे और आप देखते रहें. वो बैट्समैन के लिए नहीं मैच देखने वालों के लिए गेंद फेंकते हैं. फिर वो चाहे ज़हीर हों या अकरम, नैथन ब्रेकेन हों या मुहम्मद आमिर.
दिलीप ट्रॉफी में ज़हीर, आकाश चोपड़ा और वीरेंद्र सहवाग के ख़िलाफ़ बॉलिंग कर रहे थे. पिच हरी थी, मौसम ठण्डा और ज़हीर गरम. आकाश चोपड़ा खुद कहते हैं कि उन्होंने आज तक ऐसी बाउन्सरें नहीं खेली थीं, जिनसे उन्हें अपनी सेफ्टी पर खतरा मालूम हुआ हो. ज़हीर बॉल-दर-बॉल अग्रेसिव हुए जा रहे थे. वैसे तो बाउंसर से बचने के तरीके होते हैं लेकिन ज़हीर का ऐंगल ऐसा था कि सहवाग और आकाश दोनों को ही बहुत तेज़ी में गेंद के रास्ते से अलग हटना पड़ रहा था. बाउंसर ऐसी कि कंधे तक उठें, पर सर के ऊपर न पहुंचे.
सहवाग ज़हीर का गेम जानते थे. लिहाज़ा आकाश को कहा कि सिर्फ उन्हीं गेंदों को खेलें, जो लेग स्टम्प या उसके बाहर गिर रही हों. बाकी सभी को छोड़ दें. आकाश इस असमंजस में थे कि मिडल या ऑफ स्टम्प पर पड़ी हुई गेंदें अगर अन्दर आ गयी तो क्या होगा? सहवाग ने निश्चिन्त करवाया कि गेंदें अन्दर नहीं आयेंगी. आकाश थोड़ी देर में सहज हो चले और ज़हीर को खेल पाने लगे. लेकिन सवाल ये आया कि आखिर उनकी गेंदें अन्दर क्यूं नहीं आ रही थीं? अगर डोमेस्टिक सर्किट में दो बल्लेबाजों ने उनके गेम को भांप लिया है तो इंटरनेशनल लेवल पर क्या होगा?
इस सवाल का भी जवाब मिला. ठीक दिलीप ट्रॉफी के बाद. ज़हीर ने काउंटी खेलना शुरू किया. वोर्स्टर की ओर से. अपनी स्पीड को हल्का सा कम किया, गेंद फेंकने से पहले लेने वाली जम्प को हल्का सा काटा और गेंद में स्विंग बढ़ा दी. ज़हीर की कलाई अब गेंद के पीछे रहने लगी और बॉल की सीम स्लिप की बजाय स्टम्प को देख रही थी. अब सीधे हाथ से खेलने वाले बैट्समैन के लिए गेंद अन्दर आने लगी थी. आकाश चोपड़ा और सहवाग खुशनसीब थे कि ज़हीर ने उनके साथ ऐसा नहीं किया. लेकिन वोर्स्टर को इसका फ़ायदा मिला.

अपने 13 साल के क्रिकेट करियर में ज़हीर ने रिवर्स स्विंग करने वाले बॉलर्स की लिस्ट में अपना नाम काफी ऊंचा कर लिया. वो ऐसे बॉलर बन गए, जो आखिरी पल तक गेंद की शाइन को छुपाये रखता था. रिलीज़ से ठीक पहले तक बल्लेबाज को नहीं मालूम रहता था कि गेंद की कौन सी साइड चमक रही है और कौन सी खुरदुरी है. ऐसे में स्विंग को समझना मुश्किल था. मज़े की बात ये कि सचिन और द्रविड़ भी उसी टीम में थे, जिसमें ज़हीर. सचिन और द्रविड़ की एक सांठ-गांठ बहुत ही फ़ेमस है. एक समय में सचिन को किसी बॉलर के ऐक्शन की वजह से गेंद के शाइनी साइड के बारे में मालूम नहीं चल रहा था. उन्हें गेंद की स्विंग समझने में तकलीफ़ हो रही थी. ऐसे में उन्होंने द्रविड़ से सेटिंग की. द्रविड़ नॉन-स्ट्राइकिंग एंड पर खड़े होकर बॉलर का हाथ देखते रहते थे. जब वो गेंद फेंकने वाला होता तो बल्ले को उस हाथ में रख लेते थे जिस साइड गेंद की शाइन होती थी. सचिन बैटिंग करते हुए बॉलर की बजाय द्रविड़ का बैट देख रहे होते थे.
ज़हीर खान यानी लेफ़्ट हैंड बैट्समैन के लिए एक बुरा सपना.
ग्रीम स्मिथ, कुमार संगकारा, हेडेन, एंड्रू स्ट्रॉस और टिम मैकिन्टोश. पांचों बैट्समैन लेफ़्ट हैण्डेड. ज़हीर खान के सबसे ज़्यादा बार आउट किये गए बैट्समैन. राइट हैण्डेड बैट्समैन में सबसे ज़्यादा किसी ने गच्चा खाया है तो इयान बेल. ज़हीर के खिलाफ़ बेल ने 44 गेंदों में मात्र 22 रन बनाये और आउट हुए पांच बार. आउट हुए बैट्समैन में दो बड़े नाम और शुमार हैं- माइकल क्लार्क और रिकी पोंटिंग. दोनों को पांच-पांच बार पविलियन भेजा.
ज़हीर खान के सबसे ज़्यादा और फ्रीक्वेंट शिकार- ग्रीम स्मिथ, कुमार संगकारा, हेडेन, एंड्रू स्ट्रॉस, टिम मैकिन्टोश, इयान बेल, माइकल क्लार्क, रिकी पोंटिंग रहे. यानी ज़हीर के साथ खेलने वाले सबसे बेहतरीन बल्लेबाज. बचते हैं सिर्फ़ इंडियन बैट्समेन. जिन्हें न आउट करना ज़हीर की मजबूरी थी. सभी शिकार टॉप-ऑर्डर बैट्समेन. ऐसे बॉलर किसी कप्तान के लिए एक खूबसूरत ख्वाब होते हैं.
2003 वर्ल्ड कप के आसपास टीवी पर एक ऐड आता था. एक लड़का बायें हाथ से तालाब में कंकड़ फेंकता था. ये लड़का कंकड़ यूं फेंकता था मानो उनमें हवा भरी हो. कंकड़ पानी में डूबता नहीं था. सतह पर टप्पे खाता था. एक नहीं 5-6 बार. और वो लड़का आगे चलकर ज़हीर खान बना. हमें मालूम है कि ऐड्स में इमोशन्स को लेकर ही असली खेल खेला जाता है. मगर ज़हीर सचमुच ऐसा कर सकते थे. ऐसा कम से कम मालूम तो देता ही है. ज़हीर गेंद को यूं तैराते थे जैसे वो उसकी किरायेदार हो. ज़हीर खान जब हरे मैदान पर हाथ में लाल गेंद लेकर दौड़ लगा रहे होते थे तो वो दृश्य उतना ही सुख देने वाला होता था, जितना घर में मां के हाथों अपने मनपसंद खाने को बनते देखना. मैं मां के हाथ का खाना और ज़हीर को हाथ में गेंद लेकर दौड़ते देखना वाकई मिस करता हूं.
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