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ट्रेन के इंजन में बोरा भरकर रेत क्यों डाली जाती है, आपकी सुरक्षा से जुड़ा है मामला

ट्रेन को चलाने के लिए जितनी डीजल या करेंट की जरूरत होती है, उतनी ही जरूरत बोरा भरकर रेत (railways sand box) की भी होती है. ट्रेन को सुरक्षित चलाने के लिए रेलवे कई तरह के एहतियात बरतती है. उन्हीं में से एक इंजन के पहिये के पास सैंड बॉक्स यानी रेत से भरा डिब्बा लगाना.

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ट्रेन बिना रेत के नहीं चलती
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सूर्यकांत मिश्रा
24 अप्रैल 2025 (Updated: 24 अप्रैल 2025, 08:41 AM IST) कॉमेंट्स
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हमारी प्रिय लोहपथगामनी बोले तो ट्रेन कैसे चलती है. कोयले से, ना-ना अब तो वो पुरानी बात हो गई. डीजल से, हां अभी भी कई इंजन इसी से ताकत लेते हैं. मगर ज्यादातर ट्रेनें अब इलेक्ट्रिक हो चली हैं. समय के साथ ट्रैवल एक्सपीरियंस को और उम्दा बनाने के लिए नए तरह के रेल कोच बनाए जा रहे हैं जिसमें एक्सीडेंट होने पर भी यात्रियों को कोई नुकसान न हो. ट्रेन का सस्पेंशन बेहतर किया जा रहा है ताकि यात्रा के दौरान ट्रेन के अंदर लोगों को झटके न लगें. मगर रेत अभी भी इंजन में डाली जाती है.

क्या हुई, दिमाग रेत की तरफ फिसल गया. इंजन और रेत. ये क्या बात हुई. अरे दोस्त बात नहीं बल्कि जरूरी बात हुई. इंजन कितने आधुनिक क्यों नहीं हो गए हों. अभी भी उसमें बोरा भरकर रेत डाली  (railways sand box) जाती है. चलिए फिर बोरे खोल ही लेते हैं.

इंजन के नीचु रेत का डिब्बा

ट्रेन में बैठना और पूरी-आलू सब्जी खाते हुए जाना जितना आसान है, उतना ही मुश्किल है इसे तरीके से चलाना. जरा सी चूक और दुर्घटना होते देर नहीं लगती. इसलिए ट्रेन को सुरक्षित चलाने के लिए रेलवे कई तरह के एहतियात बरतती है. उन्हीं में से एक इंजन के पहिये के पास सैंड बॉक्स यानी रेत से भरा डिब्बा लगाना.

दरअसल ट्रेन की पटरियां तो लोहे की होती हैं. पहियों को मक्खन की तरह राउंड-राउंड घुमाने के लिए उन्हें चिकना रखा जाता है. मगर कई बार यही चिकनाहट फिसलन का काम करती है और दुर्घटना को न्योता देती है. स्पेशली बारिश के मौसम में पहिये फिसलने लगते हैं. ब्रेक लगाने पर इसके पटरी से उतरने का खतरा होता है. एकदम वैसे ही जैसे सड़क पर टायर के साथ होता है.

इसी से बचने के लिए एकदम देसी तरीका ट्रेन में अपनाया जाता है. इंजन के नीचे एक बड़े बॉक्स में रेत भरी होती है और इस डब्बे से रेत पटरियों पर गिराई जाती है जिससे पहियों और पटरियों के बीच घर्षण बढ़ता है और ट्रेन ब्रेक लगाने पर बगैर पटरी से उतरे सामान्य तरीके से रुक जाती है. इस रेत को क्रप्रेस्ड एयर के द्वारा फेंका जाता है. जिसका बटन लोको पायलट के पास होता है. वैसे इसका इस्तेमाल अमूमन ट्रेन को चढ़ाई पर ले जाते समय ज्यादा होता है. वैसे सिर्फ बारिश में ही नहीं बल्कि ट्रेन में ज्यादा वजन होने की वजह से भी पहिए स्लिप होने लगते हैं. तब तो इस रेत वाले बॉक्स का काम और बढ़ जाता है.

जानकारी समाप्त वरना हाथ से रेत तो नहीं स्टोरी जरूर फिसल जाएगी. वैसे रेल की बात होगी और Swanand Kirkire याद नहीं आयें, कैसे हो सकता है. उनका GITN जरूर देखिए. लिंक ये रही.  

वीडियो: Pahalgam Attack से पहले Pakistan Army Chief Asim Munir ने क्या कहा था?

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