The Lallantop
Advertisement

कोहली की चौतरफा आलोचना में मैट्रिक्स वाले नियो का क्या रोल है?

भद्रजनों का खेल है क्रिकेट?

Advertisement
Img The Lallantop
Virat Kohli भी सोच रहे होंगे काश The Matrix वााल Neo कामयाब हो गया होता (एपी, स्क्रीनग्रैब)
pic
सूरज पांडेय
14 जनवरी 2022 (Updated: 14 जनवरी 2022, 05:25 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
पहले जोहानसबर्ग और फिर केपटाउन. पहली बार साउथ अफ्रीका में टेस्ट सीरीज जीतने की आस टूट गई. सेंचुरियन में पहली बार जीतने के बाद भारतीय टीम लगातार दो टेस्ट मैच सात-सात विकेट से हारी. हम इतिहास बदलने से चूक गए. ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड को उन्हीं के घर में पस्त करने वाली विराट कोहली की टीम अपेक्षाकृत हल्की मानी गई साउथ अफ्रीका को नहीं हरा पाई. और जैसा कि रवायत है, सीरीज हारते ही चाकुओं पर धार चढ़ा ली गई. और फिर इन धारदार चाकुओं को चलाने के लिए गर्दनें खोजी जाने लगीं. इस बार प्लान में बस इतना अंतर था कि चाकू मैच और सीरीज खत्म होने से पहले ही निकल गए थे. मैच का तीसरा दिन, साउथ अफ्रीका की दूसरी पारी का 21वां ओवर. DRS लेकर साउथ अफ्रीकी कप्तान डीन एल्गर बचे. और उनके बचते ही बवाल शुरू हो गया. # DRS Controversy और ये बवाल होना ही था. क्योंकि घुटने से नीचे लगती गेंद को बॉल ट्रैकिंग ने स्टंप मिस करती हुई करार दे दिया. और ये देखते ही अंपायर समेत पूरी इंडियन टीम बिफर गई. ध्यान दीजिएगा कि अंपायर लोकल थे. इसके बावजूद उन्हें हैरानी हुई. ऐसे में भारतीय खिलाड़ियों को तो बिदकना ही था. बिदके भी. स्टंप माइक पर काफी कुछ कहा गया. और इसी कहासुनी ने लोगों को मौका दे दिया. माइकल वॉन से लेकर गौतम गंभीर तक एक स्वर में कोहली का सर मांगने लगे. कहा गया कि कोहली हमेशा से मैदान पर बदतमीजी करते आए हैं. और उन पर कभी कोई एक्शन नहीं होता. गंभीर तो यहां तक बोल गए कि कोहली को BCCI के दबदबे का फायदा मिलता है. गंभीर और वॉन की खुन्नस तो खैर समझी जा सकती है. लेकिन इन दोनों का साथ देने वाले भद्रजनों का क्या किया जाए? साल 2022 आ चुका है और ये अभी तक इसी मुगालते में हैं कि क्रिकेट भद्रजनों का खेल है. क्यों भाया? क्योंकि इसमें फुलपैंट पहनकर खेलते हैं? फर्स्ट थिंग फर्स्ट, इस सोच को दिल से निकाल दीजिए कि कोई भी खेल भद्रजनों का हो सकता है. क्योंकि खेल में हार और जीत दोनों होते हैं. लेकिन जश्न सिर्फ जीत का होता है. और जीत किसी भी कीमत पर आए, वो जीत ही होती है. और इस जीत का जश्न मनाने वाले अगर बिना कोई नियम तोड़े जश्न मना रहे हैं तो उससे लोगों को समस्या क्या हो जाती है? अगर कोहली का व्यवहार क्रिकेट का कोई नियम तोड़ रहा तो वहां मैच रेफरी हैं, वो फैसला लेंगे. जैसे कि गंभीर के खिलाफ कई बार ले चुके हैं. इंटरनेशनल क्रिकेट से लेकर IPL तक गंभीर पर खराब व्यवहार के लिए फाइन लग चुका है. और फाइन कोहली पर भी लगा है, जब उन्होंने कोई नियम तोड़ा है. लेकिन अगर वह बिना नियम तोड़े अपनी फ्रस्ट्रेशन जाहिर करते हैं, तो इसमें समस्या कहां है? क्या विश्व क्रिकेट के महानतम कप्तानों में से एक को दिनदहाड़े पड़ने वाले डाके पर फ्रस्ट्रेट होने का अधिकार भी नहीं है? जाहिर तौर पर इस सवाल का जवाब हां है, वॉन ने भी अपने रैंट में यही कहा. और अगर इस सवाल का जवाब हां है, तो समस्या कहां है? क्या ये गलत नहीं है कि हम हर हाल में सबसे एक आदर्श व्यवहार की उम्मीद करते हैं? कौन तय करेगा कि आदर्श क्या है? इस तथाकथित आदर्शवाद के चलते प्लेयर्स को रोबोट तो नहीं बना सकते ना? और इस पूरी बहस में सिर्फ कोहली नहीं बल्कि पूरी टीम इंडिया एकमत से फ्रस्ट्रेट थी. फिर सिर्फ कोहली को टार्गेट करना कहां से सही है? अरे हां! इन सबके बीच उस ऐतिहासिक DRS पर तो बहस ही नहीं हुई. मतलब जितनी बार रीप्ले देखा जाए उतनी बार मिस्टर एंडरसन उर्फ नियो से प्यार हो जाता है. कितना दूरदर्शी था हमारा नियो, 90 के दशक में ही मशीनों के खात्मे की बात कर रहा था. काश नियो कामयाब हो गया होता... तो आज इतनी बहस ही नहीं होती.

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement