The Lallantop
Advertisement

कैसे काम करती है 'SAM', जिसने ईरान में 176 यात्रियों से भरा प्लेन गिरा दिया

सर्फेस टू एयर मिसाइल यानी SAM को आसान भाषा में समझिये.

Advertisement
Img The Lallantop
भारत ने हाल ही में रूस से S400 ट्रायम्फ खरीदे हैं. ये सर्फेस टू एयर मिसाइलें ही हैं. फोटो- रॉयटर्स
font-size
Small
Medium
Large
24 जनवरी 2020 (Updated: 24 जनवरी 2020, 13:57 IST)
Updated: 24 जनवरी 2020 13:57 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
8 जनवरी, 2020. इस दिन ईरान में यूक्रेन इंटरनेशनल एयरलाइन्स की फ्लाइट 752 क्रैश हुई. प्लेन में क्रू समेत 176 लोग सवार थे. सभी की मौत हो गई. प्लेन क्रैश क्यों हुआ? क्योंकि 23 सेकेंट्स के भीतर उससे दो मिसाइलें टकराई थीं. 11 जनवरी को 'द वॉशिंगटन पोस्ट' ने इस बात की काफी संभावना जताई थी कि हो सकता है प्लेन को गिराने के लिए SA-15 सर्फेस टू एयर मिसाइल यानी SAM का इस्तेमाल हुआ हो. प्यार से लोग इन्हें सैम भी कह देते हैं. ये रूस द्वारा बनाए गए एयर डिफेंस सिस्टम का हिस्सा है, जिसे टोर मिसाइल सिस्टम भी कहा जाता है. क्रैश की पूरी जांच अभी बाकी है, लेकिन इस बात पर शुबहा न के बराबर है कि इसमें ईरान की दागी SAM का हाथ है. लेकिन ये SAM क्यों खास हैं और कैसे काम करती हैं, आइये समझते हैं आसान भाषा में.
पूरी कहानी इस मिसाइल के नाम ही छुपी है. SAM या Surface to Air Missiles. अपने नाम के ही मुताबिक, किसी एयरक्राफ्ट को गिराने के लिए इन्हें ज़मीन से दागा जाता है. हवा में. आपने खबरों में सुना भी होगा, भारत ने ज़मीन से आसमान पर मार करने वाली मिसाइल का परीक्षण किया. तब ऐसी ही SAMs का टेस्ट किया जा रहा होता है.
अमेरिका के छह F35 मिसाइलों को ठिकाने लगा सकता है एक S400. सोर्स- विकिमीडिया कॉमंस अमेरिका के छह F35 मिसाइलों को ठिकाने लगा सकता है एक S400. सोर्स- विकिमीडिया कॉमंस

क्यों जरूरत पड़ी SAMs की?
दूसरे विश्वयुद्ध तक फाइटर प्लेन्स और बॉम्बर्स लड़ाई को आसमान में ले जा चुके थे. SAM's आसमान से आने वाले इन दुश्मनों को ज़मीन का जवाब थीं. जब कोई दुश्मन जहाज़ आपकी तरफ आए तो उसे एंटी एयरक्राफ्ट गन से निशाना बनाया जाता है. लेकिन इसके साथ दो दिक्कतें पेश आती हैं- पहली- इसकी रेंज उतनी नहीं होती माने दुश्मन ज़्यादा ऊंचाई पर हो तो बच सकता है. और दूसरा- कि एंटी एयरक्राफ्ट गन से निकलने वाला वॉरहेड या गोला अमूमन एक ही दिशा में जा पाता है. तो इसे आसानी से चकमा दिया जा सकता है. इसीलिए बनाई गईं सर्फेस टू एयर मिसाइल.
सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद सैम्स बनाने पर ज़्यादा ध्यान दिया गया. क्योंकि यही वो समय था जब दुनिया में नए और ताकतवर बॉम्बर्स और फाइटर प्लेन्स बनाए जा रहे थे. अमेरिका ने नाइक एजैक्स नाम से पहला ऑपरेशनल गाइडेड SAM सिस्टम बनाया, जो 1954 से काम करने लगा था. दूसरी तरफ USSR ने भी S75 नाम से अपनी SAM बनाई. एक S75 बैटरी ने ही 1 मई, 1960 को USSR पर जासूसी उड़ान भरते CIA के U2 प्लेन को गिराया था. लेकिन वो किस्सा फिर कभी.
अब ये जान लीजिए कि SAM इतनी घातक होती कैसे हैं
SAM सिस्टम्स के दो हिस्से होते हैं. पहला होता है रडार, जो दुश्मन जहाज़ की लोकेशन को पकड़ता है. और दूसरा हिस्सा होती हैं मिसाइलें. मिसाइलों की नोक पर अमूमन एक हीट सीकिंग डिवाइस लगा होता है. ये किसी एयरक्राफ्ट से निकलने वाली गर्मी माने इंफ्रा रेड रेज़ को पकड़ सकता है. जब रडार पर कोई जहाज़ नज़र आता है और मिसाइल फायर की जाती है, तब मिसाइल एक ही दिशा में नहीं उड़ती. इंफ्रारेड रेज़ को पकड़ते हुए वो जहाज़ का पीछा करती है. चाहे वो अपनी दिशा बदल ले. इसी को चकमा देने के लिए जहाज़ फ्लेयर छोड़ते हैं. लेकिन गाइडेड SAM को इतनी आसानी से चकमा नहीं दिया जा सकता. क्योंकि प्लेन की लोकेशन रडार स्टेशन के पास भी होती है. वो लगातार ये जानकारी मिसाइल को देता रहता है और मिसाइल प्लेन के पीछे-पीछे बनी रहती है. कुछ सैम सीधे प्लेन से टकराती हैं और कुछ पास जाकर फटती हैं, जिससे एयरक्राफ्ट की पूरी बॉडी को नुकसान पहुंचता है. इसीलिए फाइटर जेट्स सैम स्टेशन्स से दूर रहने में ही भलाई समझते हैं.

दुनियाभर में सैम्स का इस्तेमाल बड़े शहरों और महत्वपूर्ण सैनिक ठिकानों को बचाने के लिए होता है. खास तौर पर राजधानियों में सैम स्टेशन ज़रूर बनाए जाते हैं. जैसे यूएस में वॉशिंगटन के आसपास जो NCR है, उसकी सुरक्षा के लिए नेशनल एडवांस्ड सर्फेस टू एयर मिसाइल सिस्टम लगाया गया है. भारत के पास भी अपनी सैम्स हैं, जिनकी बैटरीज़ दिल्ली और दूसरे सैनिक ठिकानों पर तैनात हैं. हाल ही में रूस से S400 ट्रायम्फ खरीदी गई हैं. ये भी एक एयर डिफेंस सिस्टम है. बेसिकली सैम्स हैं.
आपको बता दें कि पहले सैम्स बहुत बड़ी और भारी होती थीं. और बड़ी दूर तक जाती थीं. अब ऐसी सैम्स आ गई हैं जो मोबाइल लॉन्चर से चलाई जा सकती हैं. ऐसी शॉर्ट रेंज सैम्स भी हैं जिन्हें कंधे पर रखकर चलाया जा सकता है. इन्हें Man-portable air-defense system या MANPADS कहते हैं. कई बार सर्फेस टू एयर मिसाइलों का इस्तेमाल सिविलियन एयरक्राफ्ट के लिए भी किया गया है, या कहें कि गलती से हो गया है. हाल का उदाहरण तेहरान से है ही. उससे पहले 17 जुलाई, 2014 को एमएच 17 को यूक्रेन के ऊपर क्रूज़िंग हाइट पर एक सैम ने निशाना बनाया था. इसके पीछे रूस समर्थित उग्रवादियों का हाथ सामने आया था. इसके लिए BUK सैम सिस्टम का इस्तेमाल हुआ था. खुद ईरान की ईरान एयर फ्लाइट 655 को 3 जुलाई, 1988 में यूएस नेवी की एक सर्फेस टू एयर मिसाइल ने गिरा दिया था.
लेकिन ये दोनों उहारण सैम के गलत इस्तेमाल के हैं. सैम एक घातक हथियार है. इसका इस्तेमाल ज़िम्मेदारी से हो, तब ये दुश्मन को कम से कम नुकसान पहुंचाते हुए कई जानें बचा भी सकती है.


क्या है S-400 मिसाइल सिस्टम, जिसे रूस से खरीदने के लिए भारत ने अमेरिका को ठेंगा दिखा दिया है

thumbnail

Advertisement

Advertisement