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किस्सा भारत की पहली महिला टेनिस खिलाड़ी का जिसने विंबलडन में इतिहास रचा था

लीला रो दयाल ने भारत में 1930 के दशक में साड़ी छोड़ स्कर्ट पहन टेनिस खेलने की शुरुआत की थी.

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Leela Row Dayal
लीला रो दयाल (फोटो: Paperclip_In)
10 जुलाई 2022 (Updated: 10 जुलाई 2022, 23:02 IST)
Updated: 10 जुलाई 2022 23:02 IST
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1934 का साल और विंबलडन चैंपियनशिप. एक 23 साल की 4’10'' लम्बी भारतीय लड़की जोकि सामना कर रही थी ग्लैडी साउथवेल का. उस वक्त किसी ने सोचा भी ना होगा कि ये 4’10” की लड़की ऐसा कमाल कर जाएगी. लेकिन इस लड़की ने कमाल किया और 4/6 , 10/8, 6/2 से ग्लैडी साउथवेल को मात दे इतिहास रच दिया. हम बात कर रहे हैं लीला रो की जोकि भारत की पहली महिला टेनिस खिलाड़ी हैं जिन्होंने विंबलडन में मैच जीत इतिहास रचा था. 


19 दिसम्बर 1911 को मुंबई के एक संपन्न परिवार में जन्मीं लीला के पास टैलेंट की ख़ान थी. इनके पिता डॉक्टर राघवेंद्र रो थे और माता पंडिता क्षमा रो. जो कि न सिर्फ संस्कृत की विद्वान लेखिका थीं बल्कि टेनिस खेलने में भी माहिर थीं. लीला की पढ़ाई-लिखाई घर से उनकी माता द्वारा ही हुई. लीला इंग्लिश, फ्रेंच और इटैलियन भाषा में कमाल की थीं. लीला ने अपनी माता से बहुत सी चीज़ें हासिल कीं. जिसकी वजह से उन्हें भी संस्कृत, नृत्य कला और टेनिस में रुचि बचपन से ही हो गई. लीला की मां भी शुरुआत से ही टेनिस से जुड़ी रहीं. क्षमा 1920 के दशक में राजकुमारी अमृत कौर (जो आजादी के बाद देश की प्रथम स्वास्थ मंत्री रही) के साथ टेनिस खेला करती थीं और इस जोड़ी की भारत के बेहतरीन खिलाड़ियों में गिनती होती थी.  टेनिस के प्रति प्रेम इन्हे अपनी मां से विरासत के तौर पर मिला. 1930 के दौरान लीला और उनकी मां क्षमा ने कई डबल्स मुकाबले भी एक साथ जीते. 

हालांकि इसके बाद लीला के लिए विंबलडन तक का सफर आसान नहीं रहा. 1931 में वो ऑल इंडिया चैम्पियन होने के बावजूद विंबलडन में एंट्री शुल्क जमा ना कर पाने के कारण भाग नहीं लें सकीं. लेकिन इस साल लीला रो का नाम सुर्खियों मे तब आया जब इन्होंने 1931 के ऑल इंडिया चैम्पियनशिप में लेना मेकैना को सीधे सेट्स मे हराकर महिला सिंगल्स टूर्नामेंट का खिताब जीता. 

इसके बाद साल  1934 में लीला रो को विंबलडन में ब्रिटिश इंडिया का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला. और अपने पहले ही मुकाबले में इन्होंने ग्लैडी साउथवेल को 4/6 , 10/8, 6/2 से सीधे सेट्स में मात दी. इस मैच के साथ लीला प्रथम भारतीय महिला टेनिस खिलाड़ी बन गयीं जिसने विंबलडन का कोई मैच जीता. हालांकि अगले ही मैच में फ्रांस की ईडा एडमऑफ से हारकर लीला विम्बलडन से बाहर हो गयीं. इतना ही नहीं लीला ने ऑल इंडिया चैम्पियनशिप में 1936 से 1943 के बीच महिला सिंगल्स के कुल छह खिताब अपने नाम किए. 

लीला का लेफ्ट हैंड कमजोर होने के बावजूद वो एक सफल टेनिस खिलाड़ी बन कर उभरीं. उनके पावरफुल ड्राइव, प्रीसाईस शॉट प्लेसमेंट और अटैकिंग माइंडसेट की बदौलत वो एक अद्भुत स्टार बन गयीं. 1930 के दौरान जब अधिकतर भारतीय  महिला टेनिस खिलाड़ी साड़ी पहनकर टेनिस खेलती थीं, तब न सिर्फ लीला बल्कि उनकी मां क्षमा ने शॉर्ट स्कर्ट पहन कर टेनिस खेलने की शुरुआत की. इससे उन्होंने ये दर्शाया की टेनिस खेलने के लिए और मूवमेंट के लिए साड़ी से बेहतर स्कर्ट होती है. अपने खेल की बदौलत उन्होंने एक दशक तक भारतीय टेनिस में अपना नाम किया. बाद में लीला ने कलम से भी अपना नाम रौशन किया. उन्होंने शास्त्रीय नृत्य जैसे…भरतनाट्यम और मणीपुरी पर संस्कृत और अंग्रेजी में कई पुस्तकें भी लिखीं. साथ ही उन्होंने अपनी मां की लिखी कई संस्कृत कविताओं और नाटकों का थिएटर पर मंचन भी किया. लीला ने अपने जीवन का पहला स्टेज अपीयरेंस बंगाल के बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए सुभाष चंद्र बोस द्वारा प्रायोजित फंडरेज़र में किया था. बहुमुखी प्रतिभा की धनी लीला वायलिन भी कमाल का प्ले करती थीं. जिसकी कोचिंग उन्होंने पेरिस में ली थी. 
 
1943 में लीला की शादी हरिश्वर दयाल से हुई जोकि सिविल सेवा में कार्यरत थे और बाद में उन्होंने नेपाल में भारतीय एम्बेसडर के तौर पर सेवा भी की. हरिश्वर दयाल को पर्वतारोहण का बहुत शौक था और ये शौक लीला को भी चढ़ गया.  लीला और हरिश्वर ने बहुत से पहाड़ों पर पर्वतारोहण किया और लीला ने पर्वतारोहण पर कई लेख भी लिखे. लीला के पास टैलेंट्स की कमी नहीं थी लेकिन विंबलडन में उनका शिरकत करना भारत के कई युवाओं के लिए बेहद खास उपलब्धि थी.

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