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जब इंडिया को हराने के लिए मूसलाधार बारिश में भी मैच नहीं रोका गया!

कहानी उस मैच की, जिसे कैसे खेलना है, कैसे कप्तानी करनी है, भारत को कुछ पता नहीं था.

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भारत और इंग्लैंड की टीमें. फोटो: Twitter
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13 जुलाई 2021 (Updated: 12 जुलाई 2021, 05:03 AM IST) कॉमेंट्स
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साल 1971. ऑस्ट्रेलिया में ऐतिहासिक एशेज़ सीरीज़ खेली जा रही थी. लेकिन खराब मौसम ने ऐसी मार मारी कि ऑस्ट्रेलियंस को अपने दिमाग पर ज़ोर डालना पड़ गया. मेलबर्न में एशेज़ के पहले तीन दिन का खेल बारिश की वजह से पूरी तरह बर्बाद हो गया. फैंस निराश, ऑर्गनाइज़र्स निराश और खिलाड़ी भी निराश. एशेज़ का महत्व इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में किसी विश्वकप से कम नहीं है.
लेकिन बारिश सीरीज़ तो क्या मैच भी होने नहीं दे रही थी. अब जब मैच बारिश की वजह से रद्द हुआ, तो अधिकारियों को ऐसी खुराफात सूझी जो कि क्रिकेट को बदलने वाली थी. एशेज़ टेस्ट के बीच में ही दोनों टीमों के बीच एक 40 ओवर का मैच खेलने का फैसला किया गया. इस मैच में तेज़-तर्रार गेंदबाज़ी, बल्लेबाज़ी फील्डिंग सब थी. यानी 40 ओवर में जो टीम ज़्यादा रन बनाए जीत उसकी ही होगी. अब ये मैच खत्म भी एक दिन में ही हुआ, तो इसे वनडे क्रिकेट का नाम दिया गया.
लेकिन बारिश के बीच क्रिकेट के इस नए रूप को ऑस्ट्रेलियन्स के साथ-साथ इंग्लैंड में भी खूब पसंद किया गया. तब से इन दोनों देशों ने औपचारिक तौर पर वनडे क्रिकेट की शुरुआत की और अब ये फैसला लिया गया कि हर सीरीज़ में वनडे मैच खेले जाएंगे.

भारत वनडे के लिए कितना तैयार था

इधर 60 के दशक में टाइगर पटौदी ने भारतीय टीम को टेस्ट में लड़ना सिखा दिया था. टाइगर की जलाई मशाल 1971 आते-आते अजित वाडेकर के हाथों में आ गई थी. भारतीय टीम पहले तो वेस्टइंडीज़ को घर में मात दे चुकी थी और दूसरा इंग्लैंड को भी इंग्लैंड में हरा दिया था. अब भारतीय टीम विश्व क्रिकेट की एक नई शक्ति नज़र आने लगी थी.
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Nawab Pataudi की जगह Team India के कैप्टन बने थे Ajit Wadekar (सोशल मीडिया से साभार)

साल 1971 से लेकर 1973 यानी तीन साल तक भारतीय क्रिकेट टीम अपराजित रही. 1974 में जब हम इंग्लैंड पहुंचे, तो दुनिया की नंबर एक टीम थे. भारतीय फैंस और टीम हवा में थी. लेकिन उन्हें क्या पता था कि इंग्लैंड ने इस बार भारत को पछाड़ने का एक नया जाल तैयार कर लिया है.

जब 1974 में भारत, इंग्लैंड पहुंचा

साल 1974 में भारतीय टीम दुनिया की नंबर एक टीम थी. अजित वाडेकर की कप्तानी में टीम इंग्लैंड पहुंची. इंग्लिश समर में वनडे क्रिकेट नाम की नई बला, जो कि इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के अलावा बाकी देशों के लिए हौवा ही थी. उस समय हर जगह इंग्लैंड में बारिश ही बारिश होती है. साथ ही टीम के अंदर का माहौल भी बहुत अच्छा नहीं था. इस दौरे पर टेस्ट में तो 3-0 से डब्बा गोल हो गया था. अब बारी थी वनडे मैच की, जिसे भारतीय टीम किसी वार्म-अप या प्रैक्टिस मैच जितना ही सिरियसली ले रही थी.

वनडे क्रिकेट में पहली बार भारतीय टीम का डेब्यू

तीन मैचों की टेस्ट सीरीज़ में 3-0 से हार के बाद पूरी टीम बिखरी हुई थी. शारीरिक ही नहीं, मानसिक तौर पर भी भारतीय टीम का हाल बहुत बुरा था. क्योंकि इस सीरीज़ में टीम सिर्फ हारी ही नहीं थी, बल्कि बिखर चुकी थी. इसी बीच हेडिंग्ले में अजित वाडेकर के सामने वनडे क्रिकेट टीम की नई चुनौती आ गई. लेकिन चुनौती तो तब होती, जब कोई इसे चुनौती की तरह लेता.
न कोई तैयारी, न कोई प्लानिंग, बस इस मैच को एक मैच की तरह लिया गया. कप्तान अजित वाडेकर का रवैया ऐसा लग रहा था, जैसे ये इंटरनेशनल मैच ही नहीं है. हालांकि कप्तान वाडेकर ने टीम के उन खिलाड़ियों को मैच के लिए तैयार भी किया, जो कि थोड़ा बहुत शॉर्टर फॉर्मेट को समझते थे. उस टीम में मुंबई के कुछ खिलाड़ी थे, जिन्होंने तालीम शील्ड खेली थी. वाडेकर ने उन्हें ही मैच के नियम और तरीका समझाने की कोशिश की.
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इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच पहले वनडे मैच का वीडियो स्क्रीनशॉट.

जहां भारतीय टीम को वनडे क्रिकेट का मतलब भी नहीं पता था, वहीं इंग्लैंड की टीम 1971 से इंटरनेशनल क्रिकेट खेल रही थी. जबकि 60 के दशक से डॉमेस्टिक क्रिकेट में वनडे फॉर्मेट की तैयारी में लगी थी. भारत के पास सिर्फ बिशन सिंह बेदी और श्रीनिवासन वेंकटराघवन ही ऐसे खिलाड़ी थे, जिन्हें वनडे स्टाइल का कुछ ज्ञान था. वजह थी कि ये दोनों ही स्टार्स इंग्लैंड में नॉर्थेन्ट्स और डर्बिशर के लिए खेले शॉर्टर फॉर्मेट खेल चुके थे.

13 जुलाई 1974 का दिन

मैच से पहले ही मैच पर मौसम की मार पड़ गई. बारिश की वजह से मैच को 55 ओवर का कर दिया गया. भारत ने उम्मीदों के विपरीत लगभग पांच के स्ट्राइक रेट से 265 रन बोर्ड पर टांग दिए. इसका पूरा श्रेय टीम इंडिया के बल्लेबाज़ ब्रजेश पटेल(82 रन) और कप्तान अजित वाडेकर (67 रन) को गया. ब्रजेश पटेल, जो कि टेस्ट की चार पारियों में सिर्फ 10 रन जोड़ पाए थे, उन्होंने वनडे में एक पारी में सारी कसर पूरी कर दी. इन दोनों ही बल्लेबाज़ों ने इंग्लैंड में अपने डेब्यू मैच में अर्धशतक जमाया और टीम को एक अच्छा स्कोर दिया.
60 के स्कोर पर गावस्कर (28 रन), नाइक (18 रन) और विश्वनाथ (4 रन) के विकेट गिरने के बाद कप्तान वाडेकर और फारूक इंजीनियर ने मोर्चा संभाला. दोनों ने टीम को 100 रनों के पार पहुंचाया. लेकिन 130 के स्कोर पर टीम का चौथा विकेट गिरने के बाद ब्रजेश ने कप्तान वाडेकर के साथ पारी के आगे बढ़ाया. उन्होंने आखिर ओवरों तक जमकर बल्लेबाज़ी की और अपनी पारी में 105 के स्ट्राइक रेट से आठ चौकों और दो छक्के भी लगाए.
भारतीय टीम बल्लेबाज़ों की मदद से बोर्ड पर 265 रनों का टोटल टांग चुकी थी. लेकिन फिर भी वनडे क्रिकेट दांव-पेच अभी दूर की कौड़ी थी. मैदान पर उतरने के बाद भारतीय टीम ने फील्डिंग में जो किया, वो समझ से परे था. कप्तान वाडेकर ने इस बड़े स्कोर के बावजूद डिफेंसिव फील्ड सेट की, जिसकी वजह से इंग्लैंड के बल्लेबाज़ों आसानी से एक-एक दो-दो रन करके लक्ष्य के पास पहुंच गए.
212 के स्कोर पर जॉन एडरिक (90 रन) के रूप में पांचवा विकेट गिरने के बाद भी भारत को जीत की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी. मैच के आखिरी पलों में मौसम ने भी रुख बदल लिया. मैच के आखिरी के दो ओवर का खेल मूसलाधार बारिश में भीगते-भीगते हुआ. इस तेज़ बारिश के बीच भारत की उम्मीदें धुल गईं और मैच का नतीजा इंग्लैंड के पक्ष में रहा.
टॉनी ग्रेग (40 रन), नोट (15 रन) और ओल्ड (5 रन) ने इंग्लैंड के लिए मैच को खत्म किया. इंग्लैंड ने इस मुकाबले को चार विकेट से जीता.
पहले मैच में हार बाद भारतीय टीम दूसरा वनडे भी हारी और 1975 और 1979 के विश्वकप में भी उसे बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा. आखिरकार 1980 के बाद भारतीय टीम ने वनडे क्रिकेट में अपनी पहचान बनानी शुरू की.


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