2015 वर्ल्डकप के ड्रेसिंग रूम में निराश बैठे कप्तान ने इंग्लैंड को कैसे बनाया वर्ल्ड चैंपियन?
ऑएन मॉर्गन... इंग्लैंड क्रिकेट का चेहरा बदलने वाला कप्तान.

साल 2015. तारीख़ 9 मार्च. पूल ए. विश्वकप का 33वां मैच. इंग्लैंड vs बांग्लादेश. एडिलेड ओवल का मैदान. 276 रन का पीछा करते हुए पारी के 46वें ओवर में जॉस बटलर आउट हुए और उम्मीदों का सारा पहाड़ ढह गया. मैदान पर मौजूद ग्रेट ब्रिटेन के झंडे झुक गए. फ़ैन्स लौटने लगे और ड्रेसिंग रूम में सन्नाटा पसर गया.
आयरिश मूल का एक आदमी ड्रेसिंग रूम में बैठकर ये सब देख निराश हो रहा था. ऑएन मॉर्गन नाम के इस बंदे की निराशा की एक वजह वो सब बयान भी थे, जो उनके साथियों ने दिए थे. टीम के एक साथी ने विश्वकप से पहले कहा था,
'इंग्लैंड अगर बहुत खराब प्रदर्शन करे, तो ही वो क्वॉर्टर फाइनल में क्वॉलिफाई नहीं करेगी. मैं आशा करता हूं कि मेरे ये शब्द मुझे डराने के लिए वापस ना आएं.'
ये बयान था इंग्लैंड के पेसर स्टुअर्ट ब्रॉड का. उनका बयान गलत हुआ और वो शब्द डराने के लिए वापस आए. लेकिन इसे बड़बोला बयान कहा जा सकता है. क्योंकि उस साल इंग्लैंड की टीम विश्वकप से पहले एक भी वनडे सीरीज़ नहीं जीती थी. कप्तान ऑएन मॉर्गन के बल्ले से रन नहीं निकल रहे थे. बांग्लादेश के खिलाफ़ खेले गए उस मुकाबले तक मॉर्गन ने आठ पारियों में चार बार शून्य का स्कोर बनाया था. इंग्लैंड के बल्लेबाज़ उस दौर में ओल्ड स्टाइल वाली क्रिकेट खेल रहे थे. फिर कैसे कोई आदमी अपनी टीम पर इतना ओवर कॉन्फिडेंट हो सकता है?
ख़ैर, ये सब सिर्फ खेल तक ही सीमित नहीं था. टीम के कप्तान ऑएन मॉर्गन की पर्सनल लाइफ भी बहुत कुछ झेल रही थी. उस वक्त ही उन्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश की गई. पांच साल पहले वो जिसके साथ रिश्ते में थे. उन्होंने मॉर्गन से 35,000 यूरो की डिमांड की. लेकिन इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड ने इस मामले को संभाला. और मॉर्गन ने इंग्लिश क्रिकेट को.
2015 की हार के बाद इंग्लैंड ने तय कर लिया कि अब नए कप्तान के साथ एक नई टीम तैयार करनी होगी.
2015 वर्ल्डकप के बाद ECB में बड़े बदलाव शुरू हो गए. एंड्रयू स्ट्रॉस चेयरमैन बने. पीटर मोस की जगह ट्रेवर बेलिस इंग्लैंड के कोच बन गए. ये वही स्ट्रॉस थे, जिनकी कप्तानी में इंग्लैंड की टीम का विश्वकप में बहुत बुरा हश्र हुआ था. बांग्लादेश, आयरलैंड जैसी टीम्स ने इंग्लैंड को विश्वकप में धूल चटाई थी.
स्ट्रॉस, मॉर्गन के साथ खेले भी थे और वो ये जानते थे कि उनकी अप्रोच अलग है. स्ट्रॉस ने यहां से इंग्लैंड के वनडे क्रिकेट पर अपना पूरा फोकस किया. इंग्लैंड टेस्ट क्रिकेट की एक बेहतरीन टीम थी. लेकिन वनडे में उन्हें कोई भी सीरियसली नही लेता था.
मॉर्गन वैसे तो 2011 से टीम की कप्तानी कर रहे थे. लेकिन वो कप्तानी बीच-बीच में, या एलिस्टर कुक के ना रहने पर आती थी. 2014 में उन्हें टीम का उप-कप्तान बनाया गया. और फिर विश्वकप के लिए कप्तान. ऐसा नहीं है कि 2015 विश्वकप के बाद ही इंग्लैंड वनडे में टॉप की टीम बनी. 2012 में भी इंग्लैंड नंबर वन बनी. लेकिन वो टीम स्विंग और सीम बोलर्स के चलते बनी थी. उनकी बल्लेबाज़ी में नंबर वन वाली बात नहीं दिखती थी. लेकिन मॉर्गन ने 2015 के बाद इस अप्रोच को बदला. जेम्स एंडरसन, स्टुअर्ट ब्रॉड, इयान बेल, जेम्स टेलर जैसे टीम के सीनियर्स ने अलविदा बोल दिया. और यहीं से इंग्लैंड क्रिकेट ने एक नई शुरुआत की.
जब मॉर्गन को पहली बार कप्तान बनाया गया. तो टीम के कोच पॉल फारब्रेस को लगता था कि मॉर्गन को कप्तानी बहुत ज़ल्दी दे दी गई है. हालांकि वो ये बात भी जानते थे कि ये सबसे परफेक्ट चॉइस है. मॉर्गन उन कप्तानों में नहीं थे, जो हमेशा अपने लड़कों के सामने खड़े होकर भाषण दिया करते थे. वो अपने शब्द बर्बाद नहीं करते थे. लेकिन जब वो शब्दों का इस्तेमाल करते या कुछ कहते तो वो बहुत शक्तिशाली होते थे.
2015 वर्ल्डकप में इंग्लैंड ने जो कुछ देखा. मॉर्गन ने उसे याद रखा और 2019 में उसी इंग्लैंड की चैम्पियन बनाया. उन्होंने इंग्लैंड को दुनिया की नंबर एक वनडे टीम बनाया. और लॉर्ड्स में विश्वकप की पहली ट्रॉफी भी दिलाई. मॉर्गन की अग्रेसिव अप्रोच वाली थ्योरी आज भी इंग्लिश क्रिकेट में दिखती है. जहां टेस्ट में भी बेन स्टोक्स और जॉनी बेयरस्टो जैसे बल्लेबाज़ वनडे स्टाइल ऑफ बैटिंग करते हैं. अब ऑएन मॉर्गन ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी है. ये इंग्लैंड क्रिकेट के एक बड़े अध्याय का अंत है.