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चंद्रकांत पंडित की कहानी, जो जीत के लिए खिलाड़ियों को थप्पड़ मारने और आर्मी कैम्प में भेजने से भी पीछे नहीं हटते!

चंद्रकांत पंडित, MP को रणजी ट्रॉफी जिताने वाले कोच.

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Chandrakant Pandit
चंद्रकांत पंडित (फोटो - BCCI)
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27 जून 2022 (Updated: 28 जून 2022, 12:06 IST)
Updated: 28 जून 2022 12:06 IST
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कबीर खान. साल 2007 में आई फिल्म 'चक दे इंडिया' का वो कोच, जिसने सालों की मेहनत के बाद अपनी हार को जीत में बदला. खुद खेलते हुए हार गए कबीर ने सालों बाद कोच बनकर इंडिया को चैम्पियन बनाया. और अब ये फिल्मी कहानी सच हो गई है. कोच चंद्रकांत पंडित (Coach Chandrakant Pandit) असल जीवन के कबीर खान बन गए हैं. चंदू सर ने सालों पहले जिस मैदान पर खेलते हुए रणजी ट्रॉफी का फाइनल हारा था, अब वहीं पर कोच के रूप में MP को चैंपियन बना दिया.

अपने क्रिकेटिंग करियर में चंद्रकांत पंडित एक डैशिंग स्ट्रोक प्लेयर और क़ाबिल विकेटकीपर थे. चंद्रकांत ने भारत के लिए 1986 में डेब्यू किया था. 80 के दशक में सैयद किरमानी का उत्तराधिकारी बनने के इच्छुक लड़कों की लिस्ट में चंद्रकांत पंडित भी शामिल थे. उन्हें बैटिंग के दम पर इंडिया डेब्यू का मौका तो मिला, लेकिन पांच में से तीन टेस्ट में उन्हें कीपिंग नहीं करने मिली. फिर 1991-92 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर आखिरकार चंद्रकांत को दस्ताने पहनने का मौका मिला और उन्होंने 11 कैच लपकते हुए अपनी कीपिंग स्किल्स का शो ऑफ कर डाला.

चंद्रकांत का टेस्ट करियर बहुत लंबा नहीं चला, लेकिन अपनी बैटिंग के चलते वो 1986 से 1992 तक 36 वनडे मुकाबले जरूर खेल गए. हालांकि 1992 के बाद उनकी टीम में जगह नहीं बनी. जिसके बाद उन्होंने मध्यप्रदेश टीम का दामन थाम लिया और सालों तक वहां खेलते रहे. चंद्रकांत पंडित के MP से जुड़ने के बाद इस टीम की कहानी पलटनी शुरू हुई. शुरुआत से रणजी ट्रॉफी खेल रही मध्यप्रदेश की टीम साल 1998-99 में पहली बार रणजी ट्रॉफी के फाइनल में पहुंची. जहां एम चिन्नास्वामी स्टेडियम में उनका सामना कर्नाटक की टीम से था. फाइनल तक कमाल की क्रिकेट खेलने वाली एमपी की टीम फाइनल में 96 रन से चूक गई.

मुंबई को बनाया तीन बार चैम्पियन

इसके एक-डेढ़ साल बाद चंद्रकांत पंडित ने अपना आखिरी डॉमेस्टिक मुकाबला खेल क्रिकेट को अलविदा कह दिया. लेकिन ये विदाई किसी और आगाज़ की शुरुआत थी. मैदान पर बल्ला छोड़ उन्होंने एक छड़ी उठा ली थी. कोचिंग वाली छड़ी. शिवाजी पार्क से निकला लड़का अब मुंबई टीम का कोच बन गया. 2003 के सीज़न में उन्हें मुंबई टीम का कोच बनाया गया. पहले ही साल में उन्होंने अपनी कोचिंग में मुंबई को 35वां रणजी ट्रॉफी टाइटल जितवा दिया. इसके बाद 2004 में एक बार फिर मुंबई ने खिताब पर कब्ज़ा जमाया.

चंद्रकांत की कोचिंग में अगला खिताब आया साल 2016 में. जब एक बार फिर उन्होंने मुंबई को ही चैम्पियन बनाया. आपको बता ये मुंबई का आखिरी रणजी ट्रॉफी टाइटल भी था. मुंबई के बाद वो विदर्भ टीम के साथ जुड़े और 2017-18 और 2018-19 में उन्होंने विदर्भ को चैम्पियन बनाया.

मुंबई के बाद विदर्भ को दिलाई ट्रॉफी

चंद्रकांत का विदर्भ से जुड़ने का क़िस्सा भी मजेदार है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक विदर्भ क्रिकेट असोसिएशन के वाइस प्रेसिडेंट प्रशांत वेद्य ने चंद्रकांत को दिलीप वेंगसरकर की बेटी की शादी में अप्रोच किया. चंद्रकांत मान गए. लेकिन विदर्भ का कोच बनने के बाद कई खिलाड़ियों ने उनकी कोचिंग स्टाइल को लेकर शिकायत की. विदर्भ की कोचिंग के वक्त चंद्रकांत पंडित ने एक खिलाड़ी को थप्पड़ मार दिया. हालांकि दिन का खेल खत्म होने पर उन्होंने खुद ही उस लड़के को बुलाकर किस भी किया.

चंद्रकांत पंडित हमेशा आगे की सोच रखते थे. उन्होंने अपनी कोचिंग के वक्त टीम्स में खाने-पीने, मनोरंजन, फिटनेस के लिए अलग-अलग तरह की कमेटी बनाई. विदर्भ टीम को लेकर तो ये भी कहा जाता है कि उन्होंने खिलाड़ियों की फिटनेस को ध्यान में रखते हुए सभी खिलाड़ियों की डाइट में ऑलिव ऑयल शामिल करवा दिया था.

इतना ही नहीं उन्होंने खिलाड़ियों के लिए फाइन का प्रावधान भी किया. विदर्भ के कैम्प में जब भी कोई गेंदबाज़ नो बॉल करता तो 500 रुपये जुर्माना लगाया. जबकि अगर उस नो बॉल पर विकेट आया तो 1000 रुपये का जुर्माना लगता था.

विदर्भ के बाद बारी थी मध्य प्रदेश की

विदर्भ के बाद साल 2020 में मध्यप्रदेश ने चंद्रकांत पंडित को अपने पास बुलाया. 2015-16 में आखिरी बार रणजी ट्रॉफी सेमीफाइनल में पहुंचने वाली MP की टीम एक बड़ा बदलाव चाहती थी. उन्होंने फैसला किया कि अब टीम को एक नया कोच चाहिए. जिसके लिए मध्य प्रदेश क्रिकेट बोर्ड के अधिकारियों ने चंद्रकांत पंडित से मुलाकात की. उन्होंने चंद्रकांत पंडित से MP की टीम की कोचिंग के लिए कहा. लेकिन चंद्रकांत पंडित ने साफ कह दिया,

'नतीजे की गारंटी नहीं ले सकता. लेकिन हां टीम की कड़ी मेहनत, लगन और कार्य नीति की ज़िम्मेदारी लेने के लिए तैयार हूं. जिससे नतीजे अपने आप निकलेंगे.'

पंडित की कोचिंग में बहुत सी और नई चीज़ें थीं. वो टीम के प्रैक्टिस मैच में अंपायरिंग करते. ऑन-द-स्पॉट उन्हें गलतियां बताते और जब मैदान के बाहर होते तो बाउंड्री के पास से माइक्रोफोन के जरिए खिलाड़ियों को निर्देश भी भेजते. इतना ही नहीं, अपनी कोचिंग में चंद्रकांत पंडित खिलाड़ियों को आधी रात के बाद स्टेडियम में फ्लड लाइट में प्रैक्टिस के लिए बुलाते, जिससे खिलाड़ियों की मेंटल टफनेस और बॉडी को समझा जा सके. मध्य प्रदेश को चैम्पियन बनाने के लिए उन्होंने खिलाड़ियों को इन्फैंट्री स्कूल के ट्रेनर्स के साथ भी सेशन करवाए. जो कि भारतीय सेना के तीन प्रमुख ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट्स में से एक है.

टीम की ज़िम्मेदारी संभालते ही चंद्रकांत पंडित ने 405 कैम्प्स लगवाए. जिनमें मध्य प्रदेश से 150 क्रिकेटर्स शामिल हुए. इन क्रिकेटर्स में महिला-पुरुष, सीनियर-जूनियर और सभी रणजी ट्रॉफी खिलाड़ी शामिल हुए.

उन्होंने इन 150 खिलाड़ियों पर नज़र रखी और अपना प्लान बनाना शुरू कर दिया. इन कैम्प्स में ट्रेनिंग सुबह नौ बजे शुरू होती और शाम छह बजे तक चलती. ऐसा सिर्फ एक हफ्ते या एक महीने नहीं हुआ. ऐसा हुआ पूरे दो साल तक. जिसका परिणाम ये हुआ कि मध्य प्रदेश की अंडर-19 महिला टीम वनडे टूर्नामेंट के फाइनल में पहुंची, अंडर-25 मेन्स टीम CK नायुडू ट्रॉफी के क्वॉर्टर-फाइनल में पहुंच गई. जबकि सीनियर टीम रणजी चैम्पियन बनी.

20 दिन पहले टीम को मैच के लिए पहुंचा दिया

रणजी ट्रॉफी की रेस में मध्य प्रदेश की टीम का क्वॉर्टर फाइनल मैच 6 जून से पंजाब के खिलाफ़ शुरू होना था. लेकिन एमपी की टीम 18 मई को ही बेंगलुरु पहुंच गई. इसकी वजह थी मुकाबले से पहले खिलाड़ी परिस्थिति को परख सकें और बेहतर तरीके से तैयारी कर सकें. जहां मध्यप्रदेश की टीम लगभग 20 दिन पहले पहुंची. वहीं बाकी टीम्स नॉक-आउट की तैयारियों के लिए महज़ चार-पांच दिन पहले पहुंची. कोच ने अपनी टीम के लिए कर्नाटक और झारखंड की टीम्स से प्रैक्टिस मैच भी रखवाए.

चंद्रकांत पंडित को क्रिकेट जगत में एक सख़्त कोच माना जाता है. एक पिता की छवि वाला कोच. जो अपने खिलाड़ियों को बच्चों की तरह गलत होने पर मारता भी है. और अगले ही पल उन्हें दुलार भी करता है. हो सकता है चंद्रकांत पंडित की कोचिंग का तरीका कई लोगों को समझ में ना आए. लेकिन उन्होंने खुद को एक सफल कोच साबित ज़रूर किया है.

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