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पादरी ने बनाया विकेटकीपर, और बंदे ने दुनियाभर के बोलर्स को रुला लिया!

क़िस्से 'विस्फोटक रोमेश' के.

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Srilankan batter Romesh Kaluwitharana Sachin Tendulkar
रोमेश कालूवितर्णा (फोटो - Getty Images)
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सूरज पांडेय
9 जनवरी 2023 (Updated: 9 जनवरी 2023, 06:48 PM IST) कॉमेंट्स
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'स्ट्राइक रेट बहुत, बहुत ओवररेटेड चीज है.'

इस ऐतिहासिक कथन के आने से काफी पहले ही क्रिकेट बदल चुका था. विकेट पर रुककर खेलने वालों की जगह ताबड़तोड़ बैटिंग करने वाले ले चुके थे. दुनिया विरेंदर सहवाग, एडम गिलक्रिस्ट, शाहिद अफरीदी और सनथ जयसूर्या को देख चुकी थी. इन प्लेयर्स ने अपने दौर में क्रिकेट देखने वालों को तमाम रोमांचक पल दिए. दुनिया इनके अंदाज की फैन हुई. क्रिकेट देखने वालों की संख्या में उछाल आया. और ऐसे तमाम बदलाव हुए जिनसे क्रिकेट पहले से ज्यादा आकर्षक हुआ.

हालांकि, ये बदलाव इतना आसान नहीं था. ऐसे आक्रामक खेलने वाले प्लेयर्स को अक्सर मिडल ऑर्डर में ही रखा जाता था. लेकिन साल 1996 की 9 जनवरी को कुछ ऐसा हुआ, जिससे ये चीजें बदल गईं. हालांकि ऐसा नहीं था कि यह प्रयोग पहली बार हुआ. पहले भी टीम्स ने क्रिस श्रीकांत और मार्क ग्रेटबैच जैसे प्लेयर्स के साथ ऐसे प्रयोग किए थे. लेकिन 9 जनवरी 1996 को जो प्रयोग हुआ, उसने ऐसे प्रयोगों को मुख्यधारा में शामिल करा दिया. ये प्रयोग किया था श्रीलंका ने और इस प्रयोग के केंद्र में थे विकेटकीपर बल्लेबाज रोमेश कालूवितर्णा.

# Romesh Kaluwitharana

जी हां, वही रोमेश कालूवितर्णा जिन्होंने आगे चलकर सनत जयसूर्या के साथ कमाल की ओपनिंग जोड़ी बनाई. बोलर्स को खूब परेशान किया. और श्रीलंका को 1996 का वर्ल्ड कप जिताने में अहम भूमिका निभाई. हालांकि उनकी इस भूमिका पर कई सवाल भी हैं. उन सवालों पर भी लौटेंगे. लेकिन अभी शुरू करते हैं रोमेश के क़िस्से.

9 जनवरी 1996. बेनसन एंड हेज़्स वर्ल्ड सीरीज़ का मैच. ऑस्ट्रेलियाई कप्तान मार्क टेलर ने टॉस जीता, पहले बैटिंग का फैसला कर लिया. रिकी पॉन्टिंग ने 123 और माइकल बेवन ने 65 रन की पारी खेली. ऑस्ट्रेलिया ने 50 ओवर्स में बनाए 213 रन. अपने घर में ऑस्ट्रेलिया को हराना आसान नहीं होता.

और इसे देखते हुए कप्तान अरविंद डि सिल्वा ने एक बड़ी चाल चली. उन्होंने विकेटकीपर रोमेश कालूवितर्णा को सनत जयसूर्या के साथ ओपन करने भेज दिया. यह पहली बार था जब रोमेश नई गेंद का सामना करने जा रहे थे. हालांकि उन्हें पहले ही इसका हिंट दिया जा चुका था. टीम के रेगुलर कप्तान अर्जुन रणतुंगा पहले ही 1996 वर्ल्ड कप की प्लानिंग शुरू कर चुके थे. और इन प्लांस में रोमेश का रोल ओपनर का था. और उन्हें इसकी प्रैक्टिस इसी ऑस्ट्रेलिया टूर से कराई जानी थी.

रोमेश ओपन करने आए. जयसूर्या सिर्फ आठ रन बनाकर आउट हो गए. जबकि तीसरे नंबर पर आए असंका गुरुसिन्हा तो खाता भी नहीं खोल पाए. लेकिन रोमेश ने अपना काम जारी रखा. ऑस्ट्रेलियन बोलर्स को दम भर कूटते हुए उन्होंने सिर्फ 75 गेंदों पर 77 रन बनाए. श्रीलंका ने मैच तीन विकेट से जीत लिया. इस सीरीज़ में रोमेश ने तीन पचासे मारे. इन तीन में से दो 100 से ज्यादा की स्ट्राइक रेट से आए थे.

बस, फिर क्या था. रणतुंगा ने तय कर लिया कि रोमेश और जयसूर्या की जोड़ी ही वर्ल्ड कप में ओपनिंग करेगी. उनका यह फैसला सही भी साबित हुआ. श्रीलंका इस बरस वर्ल्ड चैंपियन बना. रोमेश क्रिकेट इतिहास के सबसे सफल आक्रामक ओपनर्स में से एक माने गए. लेकिन वह शुरू में तो बल्लेबाज बनना ही नहीं चाहते थे. वो तो भला हो एक ईसाई पादरी का. जिसने रोमेश को बोलिंग की जगह कीपिंग और बैटिंग पर फोकने करने के लिए कहा. इस बारे में रोमेश ने क्रिकइंफो से कहा था,

'कीपर्स की कमी थी और मैं काफी छोटा था, इसलिए मेरे स्कूल के कोच और पादरी ब्रदर गुरुसिंघे ने मुझसे कहा- तुम्हें विकेटकीपर बनना चाहिए. मैंने ट्राई किया. फिर जब मैं 15 बरस का हुआ तो ब्रदर गुरुसिंघे तीन महीने के लिए बाहर गए. उनके जाने के बाद में बोलिंग करने लगा. क्योंकि मैं एक मीडियम पेसर बनना चाहता था.

लेकिन जब गुरुसिंघे लौटे, तो उन्होंने मुझे बहुत डांटा. और सख्ती से कहा कि अब से बोलिंग बंद. उस वक्त मुझे ये अच्छा नहीं लगा, लेकिन अब मुझे पता है कि अगर वह ऐसा नहीं कहते तो मैं एक घटिया बोलर बनता, जिसे थोड़ी-बहुत बैटिंग आती. और मैं कभी भी श्रीलंका के लिए नहीं खेल पाता.'

साल 1992 में अपने टेस्ट डेब्यू पर ही सेंचुरी मारने वाले रोमेश को 1996 वर्ल्ड कप के श्रीलंकाई नायकों में से एक माना जाता है. लेकिन स्टैट्स देखें, तो ये दावा सही नहीं लगता. इस वर्ल्ड कप में रोमेश ने शून्य, 26, 33, 8, शून्य और छह रन की पारियां खेली थीं. उन्होंने यह रन एक, 16, 18, तीन, एक और 13 गेंदों में बनाए थे. यानी पूरे वर्ल्ड कप में रोमेश के नाम 30 से ज्यादा का सिर्फ एक स्कोर रहा. जबकि चार बार वह 10 रन के अंदर आउट हुए.

जबकि ओवरऑल करियर देखें तो रोमेश का वनडे स्ट्राइक रेट 77.70 का रहा. यानी वह 100 गेंदों में लगभग 77 रन बनाते थे. अब आप ही बताइए कि रोमेश कालूवितर्णा को विस्फोटक बल्लेबाज लिखना है या नहीं. हालांकि इन आंकड़ों के बाद भी. रोमेश को एक चीज का क्रेडिट देना ही होगा- वह क्रिकेट इतिहास के उन चुनिंदा ओपनर्स में से एक रहे, जिन्होंने गेंद को छोड़ने की जगह उसे पीट-पीटकर पुराना करने वाली फिलॉसफी चुनी.

भले ही यह फिलॉसफी उनके आंकड़ों में ना दिखे, लेकिन उन्हें खेलता देखने वालों को पता है कि अपना दिन होने पर रोमेश किसी भी बोलर को होपलेस कर सकते थे.

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