द्रविड़ ने सम्मान लेने से मना कर दिया और सब उनके फैन हुए जा रहे हैं
राहुल द्रविड़ ने एक बार फिर साबित किया है कि वो हर चीज़ मेहनत करके हासिल करने में ही रखते हैं.
Advertisement

फोटो - thelallantop
इंटरनेट पर कहीं पढ़ा था, ‘अगर आप क्रिकेट देखने के शौक़ीन हो और राहुल द्रविड़ आपका पहला प्यार नहीं है, तो आपको क्रिकेट समझ ही नहीं आया है’. इस कथन से असहमत होने का कोई कारण नज़र नहीं आता.
राहुल द्रविड़. भारतीय क्रिकेट का शांत, सौम्य चेहरा. भलमनसाहत का इश्तेहार. ‘सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता’ वाली बात को जीने वाला आदमी. तमाम तारीफी विशेषण जिसके आगे बौने लगने लगे ऐसे कद का शख्स. सचिन जैसे बरगद की छाया में रह कर भी फल-फूल कर बड़ा होने वाला, उंचाई की तमाम सीमाएं छूने वाला वृक्ष. जिसका महज़ नाम लेना भी दुनियाभर के क्रिकेटर्स और क्रिकेट के दर्शकों के मन को सम्मान से भर दें ऐसी शख्सियत.एक बार फिर राहुल द्रविड़ ने दिखा दिया है कि वो जितने शानदार क्रिकेटर हैं उतना ही उम्दा उनका व्यक्तित्व भी है. बैंगलोर यूनिवर्सिटी ने ऑफर की हुई ‘ऑनरेरी डॉक्टरेट’ को राहुल ने बड़ी ही विनम्रता से ठुकरा दिया है. उन्होंने कहा, ‘मैं कोशिश करूंगा कि स्पोर्ट्स की फील्ड में कोई अकैडमिक रिसर्च करके ऐसी एक डॉक्टरेट डिग्री का हक़दार बन के दिखाऊं’.
राहुल द्रविड़ के इस फैसले ने तमाम खेल-प्रेमियों के मन में उनके लिए पहले से मौजूद सम्मान को दुगना कर दिया है. राहुल द्रविड़ प्रतीक रहे हैं मेहनत से चीज़ें प्राप्त करने की यूनिवर्सल मेथड़ का. उन्होंने मानद उपाधि को ठुकरा कर साबित कर दिया कि अपनी ज़िंदगी में उन्होंने जो भी हासिल किया वो सब कुछ कड़े परिश्रम से कमाया है. मुफ़्त का कुछ नहीं.इंदौर में पैदा हुए और बैंगलोर में पले-बढ़े राहुल से बैंगलोर शहर को बहुत प्यार है. राहुल को लेकर बहुत इमोशनल है बैंगलोर. बैंगलोर यूनिवर्सिटी ने 27 जनवरी को होने वाले अपने बावनवें दीक्षांत समारोह में राहुल को डॉक्टरेट की उपाधि से नवाज़ने का इरादा किया था. उन्होंने राहुल द्रविड़ से संपर्क किया तो उन्होंने बेहद शालीनता से, जिसके लिए कि वो मशहूर हैं, इस सम्मान को लेने से इंकार कर दिया. यूनिवर्सिटी ने एक प्रेस रिलीज़ जारी कर के कहा कि राहुल ने विश्वविद्यालय का शुक्रिया अदा करते हुए विनम्रतापूर्वक मानद उपाधि को अस्वीकार कर दिया है.

जब आईपीएल में फिक्सिंग की घटनाओं से क्रिकेट कलंकित हो रहा था और बड़े-बड़े धुरंधर चुप का गुड़ खाए बैठे थे, तब उन्होंने बेहद संतुलित शब्दों में अपना विरोध दर्ज किया था. उन्होंने कहा था, “क्रिकेट के प्रशासकों को ये नहीं भूलना चाहिए कि विश्वसनीयता खोकर वो पैसे भले ही कमा लें, लेकिन क्रिकेट के लिए सम्मान नहीं कमा सकेंगे. स्टेडियम में बैठा या टीवी, रेडियो से चिपका हुआ जो आम दर्शक है अगर उसका विश्वास खिलाड़ियों और अधिकारियों पर से उठ गया तो न हम कहीं के रहेंगे न क्रिकेट!”राहुल की इस बात ने उन्हें उन तमाम बड़े नामों से बड़ा कर दिया जिनका क्रिकेटिंग करियर तो शानदार है, लेकिन क्रिकेट के बाज़ारूकरण को जिन्होंने अपनी आंखों के सामने हो जाने दिया. उनका ये स्टेटमेंट उनके स्क्वायर कट की तरह ही दर्शनीय था जिसमें एक सहजता भी होती है और कड़ा प्रहार भी.

कुछ लोग इससे हैरान-परेशान थे कि आख़िर शाहरुख़ ने ऐसा क्या कर दिया जिसे उर्दू की ख़िदमत का, वो भी ‘गैर-मामूली’ ख़िदमत का दर्जा दिया जाए? वहीं कुछ लोगों का तर्क था कि इस तरह किसी सेलेब्रिटी को किसी मरती हुई भाषा से जोड़ने पर कम से कम उसकी तरफ लोगों का ध्यान तो आकर्षित होता ही है. वो चर्चा में तो आती ही है जिससे उसके जीवित बचे रहने की संभावनाओं को ही बल मिलता है.चाहे जो हो, डॉक्टरेट की उपाधि ठुकराकर राहुल ने एक बार फिर साबित किया है कि वो हर चीज़ मेहनत करके हासिल करने में ही रखते हैं. मैथ्यू हेड़न ने एक बार राहुल के लिए कहा था,
“आक्रमकता वो नहीं होती जो क्रिकेट के मैदान पर होती है. अगर आपको आक्रमकता देखनी है तो द्रविड़ की आंखों में देखिए”.इसी बात को ज़रा सा बदल कर हम कहना चाहेंगे कि भलमनसाहत, विनम्रता और जुझारूपन की किसी मिसाल की अगर आपको तलाश है, तो वो राहुल द्रविड़ पर जाकर ख़त्म होगी.
ये भी पढ़िए
डॉक्टर शाहरुख खान, आपने उर्दू की ख़िदमत के लिए क्या किया है?
मैंने पुच्छल तारा देखा है और मैंने द्रविड़ को ज़मीन पर अपनी टोपी पटकते देखा है
'बस क्रिकेट है जिसे मैं अच्छे से निभा सकता हूं : राहुल द्रविड़