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Tokyo Olympics का वो ख़ास पल, जब नीरज ने कहा, 'मैं ही जीतूंगा, रोक सको तो रोक लो'

एक मेडल, जो देश की आधी आबादी को 'सुन्न' कर गया!

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Tokyo 2020 Olympics Gold Medal जीतने से पहले और जीतने के बाद वाले Neeraj Chopra (एपी की तस्वीरें)
7 अगस्त 2021 (Updated: 7 अगस्त 2021, 17:33 IST)
Updated: 7 अगस्त 2021 17:33 IST
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अगस्त का महीना. सातवीं तारीख. Tokyo 2020 Olympics में भारत का आखिरी दिन. सुबह की शुरुआत अदिति अशोक की कमाल की परफॉर्मेंस से हुई. अदिति बेहद क़रीबी अंतर से अपने पहले ओलंपिक्स मेडल से चूक गईं. Rio 2016 में 41वें नंबर पर रहीं अदिति ने इस बार चौथे नंबर पर फिनिश किया. इस इवेंट के बाद अगले इवेंट में टाइम था. किसी तरह घड़ी देखते हुए वह टाइम भी काटा. और फिर आया बजरंग पूनिया का ब्रॉन्ज़ मेडल मैच. पूनिया पहले मिनट से सामने वाले पहलवान पर पिल पड़े. लगा जैसे सेमीफाइनल की हार का गुस्सा उतार रहे हों. पूनिया ने फटाफट मैच खत्म किया और अपना पहला ओलंपिक्स मेडल गले में टांग ही लिया. # Neeraj Tiger Chopra और इस मैच के लगभग एक घंटे बाद मैदान में उतरने वाले थे नीरज चोपड़ा. नीरज के करियर पर नज़र होने और इस सीजन का उनका प्रदर्शन जानने के चलते उनसे उम्मीद थी. और उम्मीद भी इतनी कि हमने अपनी Tokyo Olympics Special Series का पहला एपिसोड ही नीरज पर किया था. लेकिन ईमानदारी से कहें तो मेडल की उम्मीद थी, गोल्ड की नहीं. ख़ैर किसी तरह वक्त बीता और नीरज का मैच आ ही गया. इस बीच हमारी साथी स्वाती ने फोन किया और ऐसा किया कि काटा ही नहीं. हम लगातार फोन पर बात कर रहे थे. मैं बेहद खुश, लाइव ट्वीट्स के लिए GIF फाइल्स खोज रहा था. नीरज के थ्रो देख रहा था और साथ में स्वाती से बात भी कर रहा था. नीरज का पहला थ्रो 87 मीटर के पार. स्वाती खुश हो गईं, लेकिन मेरे मन में कहीं ना कहीं जोहानेस वेटा का डर बैठा हुआ था. लगातार 90 मीटर से ज्यादा थ्रो कर रहे वेटा गोल्ड मेडल के सबसे बड़े दावेदार थे. नीरज के थ्रो से पगलाई स्वाती लगातार गोल्ड-गोल्ड चिल्ला रही थीं. लेकिन मेरे मन का डर माने ही ना. लेकिन जब वेटा की शुरुआत खराब हुई. उनका पहला थ्रो 82.52 मीटर ही गया तब दिल में हल्की सी उम्मीद जगी. और फिर नीरज के दूसरे थ्रो ने इसे और बढ़ा दिया. नीरज ने अगला थ्रो 87.58 मीटर फेंक दिया. और यह थ्रो करते ही नीरज पलटे और उन्होंने अपने दोनों हाथ हवा में उठाकर जश्न मनाना शुरू कर दिया. उनका यह जश्न कुछ ऐसा था जैसे टाइगर वुड्स किसी टूर्नामेंट के आखिरी दिन लाल टी-शर्ट पहनकर आ गए हों. और जानने वालों को पता है कि वुड्स की ये लाल टी-शर्ट ऐलान होती है,
'मैं ही जीतूंगा, रोक सको तो रोक लो'
# भाग्य भी था साथ और इस ऐलान पर मुहर लगाई वेटा ने. वह अपने अगले दोनों प्रयास में फाउल कर गए. लेकिन फिर नीरज का तीसरा थ्रो भी 76.79 मीटर ही गया और मुझे फिर हेरा-फेरी याद आ गई.
'मेरा तो ऐसे धक-धक हो रहा'
ख़ैर, सारे एथलीट्स के तीसरे थ्रो के साथ ही क्लियर हो गया कि वेटा आगे नहीं जा रहे. वह टॉप-8 एथलीट्स में जगह नहीं बना पाए. और ये बात क़न्फर्म होने पर मेरे मुंह से जो चीख निकली उसने सोसाइटी में हंगामा कर दिया. पड़ोसियों ने तो दरवाजा ही पीट दिया. लेकिन मैं डटा रहा. एकसाथ दो स्क्रीन पर नज़र जमाए. टॉप-8 प्लेयर्स के हर थ्रो के बाद मेरा जोश बढ़ जाता. वैसे ये नॉर्मल सी बात है, लेकिन सब समझ नहीं पाएंगे. ख़ैर नीरज अपने पहले थ्रो के बाद से ही टॉप पर बने हुए थे. और फिर जब पहले राउंड में 85+ फेंकने वाले जर्मन जूलियन वेबर मेडल की रेस से बाहर हो गए. अब नीरज और उनके बाद के दो चेक रिपब्लिक के एथलीट बचे हुए थे. और तभी इनमें से पहले, वेसेली वितस्लाव अपने आखिरी प्रयास में फाउल कर गए. # अब कौन रोकेगा? इसी के साथ नीरज का मेडल पक्का हो गया. और इसके बाद जाकुब वालेच ने भी आखिरी प्रयास में फाउल कर दिया. मैंने स्वाती से कहा कि अब तो गोल्ड आ रहा है. और मेरे इतने कहने के बाद जब कैमरा नीरज की ओर घूमा तो वो शेर की तरह दहाड़ रहे थे. हाथ के भाले को नीरज ने ट्रैक पर पटका और हुंकार भरी, मानो कह रहे हों-
'है कोई, जो गोल्ड रोकेगा?'
और इस दहाड़ के बाद मुझे समझ ही नहीं आया कि अब क्या करूं. ये कुछ ऐसा था जैसे गाड़ी के पीछे भागता कुत्ता एकाएक गाड़ी के पास पहुंच जाए, गाड़ी रुक जाए. अब वो क्या करेगा? क्योंकि उसने ये वाली पोजिशन तो कभी इमेजिन की नहीं की थी. उसे पता ही नहीं है कि अब क्या करना है? मेरा हाल भी उस कुत्ते जैसा ही था. सालों से गाड़ी के पीछे भाग रहा था, भौंक रहा था और जब गाड़ी रुक गई तो समझ ही नहीं आ रहा क्या करना है. ना कुछ बोल पा रहा था, ना कुछ लिख पा रहा था. बस आंख से आंसू गिरे जा रहे थे, पूरा शरीर सुन्न पड़ गया था. आमतौर पर ऐसी बड़ी घटना पर मेरे पेशे के लोग दोगुने एक्टिव हो जाते हैं, लेकिन मैं जम गया था. मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि अब करूं क्या? चीखने लगूं, उछल जाऊं या जोर-जोर से रो लूं. ये स्थिति किसी भी खेल पत्रकार के लिए बेहद खतरनाक होती है. क्योंकि आप अपनी पूरी जिंदगी ओलंपिक्स गोल्ड का वेट करते हैं. योजनाएं बनाते हैं कि गोल्ड आएगा तो ये करेंगे, वो करेंगे. सबसे पहले न्यूज़ ब्रेक करेंगे, लोगों से खुशी शेयर करेंगे. लेकिन यहां उल्टा हो रहा था. अपने छोटे से पत्रकारिता करियर में मैं सिर्फ दूसरी बार ओलंपिक्स कवर कर रहा था. और इससे पहले मैंने कभी इस बड़े स्टेज पर राष्ट्रगान नहीं सुना था. अफसोस, इस बार भी नहीं सुन पाया. लेकिन मैं नहीं सुन पाया तो क्या? लाखों-करोड़ों भारतीयों ने सुना. और शायद इसका महत्व समझा भी. क्योंकि हमारे लिए ओलंपिक्स गोल्ड इतनी रेयर चीज है कि पिछले 41 सालों में हमने सिर्फ दो बार इसे घर आते देखा था. यानी हमारी लगभग 60 प्रतिशत आबादी ने अपने जीवन में सिर्फ एक बार ओलंपिक्स गोल्ड भारत आते देखा है. और इसमें से आधों को तो 2008 ओलंपिक्स याद ही नहीं होंगे. और मुझे पूरा यकीन है कि नीरज का गोल्ड देख इन 60 परसेंट की आंखों में आंसू जरूर आए होंगे. थोड़ी ही देर के लिए सही, लेकिन इन्हें भी समझ नहीं आया होगा कि अब करें क्या? लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है कि जल्दी ही हम सबको इसकी आदत लग जाएगी और अगली बार हममें से कोई सुन्न नहीं होगा.

तब तक के लिए शुक्रिया नीरज, बहुत शुक्रिया.

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