2 अगस्त 2021 (Updated: 2 अगस्त 2021, 10:35 AM IST) कॉमेंट्स
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कहते हैं कि साल 1996 के अटलांटा ओलंपिक्स ने भारतीय खेलों को हमेशा के लिए बदल दिया. ये वो पल था जिसने भारत के खिलाड़ियों को भरोसा दिलाया कि ओलंपिक्स अजेय नहीं हैं. वहां खेलने आने वाले भी इंसान हैं और उनको भी हराया जा सकता है. और आंकड़े भी इस बात के पक्ष में हैं. इस ओलंपिक्स के बाद से भारत कभी भी ओलंपिक्स से खाली हाथ नहीं लौटा.
और भारत द्वारा जीते गए इन्हीं मेडल्स पर है हमारी ये सीरीज जिसे हमने नाम दिया है 'विजेता'. और विजेता के इस एपिसोड में बात आज़ाद भारत के तीसरे व्यक्तिगत ओलंपिक्स मेडल की. साल 2000 के सिडनी ओलंपिक्स से आया यह मेडल कई मायनों में ऐतिहासिक था. आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार कोई भारतीय महिला ओलंपिक्स पोडियम पर खड़ी थी. इस महिला का नाम था कर्णम मल्लेश्वरी और ये पैदा हुई थी सिडनी से लगभग 9200 किलोमीटर दूर आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में.
# कौन हैं Karnam Malleswari?
सीधी लाइन में कहें तो कर्णम मल्लेश्वरी ओलंपिक्स मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं. लेकिन इस सीधी लाइन में ना तो मल्लेश्वरी का संघर्ष दिखता है और ना ही उनकी मेहनत. मेहनत, जिसकी शुरुआत बचपन में ही हो गई थी. 1 जून 1975 को पैदा हुई मल्लेश्वरी की मां ने बचपन से ही अपनी बेटियों को वजन उठाने की प्रैक्टिस करानी शुरू कर दी थी. वह एक बांस के दोनों ओर वजन टांग इनसे प्रैक्टिस करातीं. यहां जानने लायक यह भी है कि मल्लेश्वरी की मां, श्यामला ये किसी मेडल के लिए नहीं करती थीं. उनका लक्ष्य बस अपनी बेटियों को मजबूत बनाना था.
मल्लेश्वरी और उनकी तीन बहनों के अलावा उनके चाचा और चचेरे भाई भी घर में वेटलिफ्टिंग की प्रैक्टिस करते थे. मतलब पूरा माहौल ही 'भारी' था. जल्दी ही मल्लेश्वरी को समझ आ गया कि ये वजन उठाना भी करियर बना सकता था. और उन्होंने घरवालों से कह दिया कि 'अब तो यही करना है.' स्पोर्ट्स कोटे से रेलवे में नौकरी पाने वाले पिता क्यों मना करते, इसका फल तो उन्हें पता ही था. बस, बात तय हुई और मल्लेश्वरी पहुंच गईं श्रीकाकुलम के अम्मी नायडू जिम में. सिर्फ 12 साल की मल्लेश्वरी यहां आने के बाद दुनिया ही भूल गईं.
उन्होंने पढ़ाई छोड़ जिम को ही स्कूल बना लिया और यहां से वक्त मिलते ही वह घर पर भी प्रैक्टिस करने लगीं. अब ट्रेनिंग बढ़ी तो खुराक बढ़नी ही थी. यहां काम आईं मल्लेश्वरी की मां, जिन्होंने अपनी पूरी सेविंग्स मल्लेश्वरी की खुराक में डालनी शुरू कर दी. फिर जब मल्लेश्वरी इवेंट्स के लिए दूसरी जगहों पर जाने लगीं तो श्यामला भी अपनी बेटी के साथ ही होतीं. और मिट्टी के तेल से जलने वाले स्टोव पर खाना बनाकर उन्हें खिलातीं. मल्लेश्वरी ने अपनी शुरुआत के हर इवेंट में मां के हाथ का खाना ही खाया.
थोड़ा वक्त बीता और फिर मल्लेश्वरी को नीलम शेट्टी अपन्ना के रूप में पहली प्रोफेशनल कोच मिल गई. फिर आया 90 का दशक. सिर्फ 16 साल की उम्र में मल्लेश्वरी नेशनल स्टार बन गईं. उन्होंने साल 1991 के सीनियर नेशनल्स का सिल्वर मेडल जीत लिया. और फिर 1993 की वर्ल्ड चैंपियनशिप का ब्रॉन्ज़ जीतने के बाद मल्लेश्वरी 1994 में वर्ल्ड चैंपियन बन गईं. मल्लेश्वरी यहां तक आने वाली पहली भारतीय महिला थीं.
साल 1994 के एशियन गेम्स में सिल्वर जीतने वाली मल्लेश्वरी ने अगले साल वर्ल्ड चैंपियन का अपना खिताब भी बरक़रार रखा. इस तरह साल 2000 के सिडनी ओलंपिक्स तक आते-आते मल्लेश्वरी के खाते में 29 इंटरनेशनल मेडल्स आ चुके थे. और इनमें से 11 शुद्ध सोने के थे, बोले तो गोल्ड मेडल. फिर आ गए सिडनी ओलंपिक्स.
# 2000 Sydney Olympics
इंटरनेशनल ओलंपिक्स कमिटी यानी IOC ने पहली बार विमिंस वेटलिफ्टिंग को ओलंपिक्स में जगह दी. और इस फैसले से दुनिया भर की विमिन वेटलिफ्टर्स बेहद खुश हुईं. इन खुश होने वालों में मल्लेश्वरी भी थीं. लेकिन मल्लेश्वरी के आलोचकों का अलग ही मत था. उनका मानना था कि मल्लेश्वरी का वक्त बीत चुका है. उनसे कुछ नहीं हो पाएगा. इसके पीछे दिए जा रहे तमाम तर्कों में से एक उनकी वेट कैटेगरी भी थी. कहा जाता था कि जिंदगी भर 54kg में खेलती आईं मल्लेश्वरी 69kg में नहीं टिक पाएंगी. उन्हें लोग अनफिट भी बता रहे थे.
यहां तक कि जिस दिन मल्लेश्वरी सिडनी में इतिहास रच रही थीं, उन्हें सपोर्ट करने मुट्ठीभर लोग ही इकट्ठा थे. यहां तक कि एथलीट्स और मीडिया के लोग भी उस दिन भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हो रहे हॉकी मैच को देख रहे थे. मल्लेश्वरी के इवेंट में कुल 42 में से सिर्फ चार भारतीय पत्रकार ही मौजूद थे.
लेकिन मल्लेश्वरी काफी पहले से इन सब चीजों का लोड लेना बंद कर चुकी थीं. ओलंपिक्स से ठीक पहले एक पत्रिका ने उन्हें फ्राइड फूड और बियर की शौकीन बता दिया. मल्लेश्वरी के घरवाले बहुत नाराज़ हुए और उन्हें मनाने के बाद मल्लेश्वरी ने मीडिया को बाय-बाय कर दिया.
20 years ago at #Sydney2000.. The moment of glory, honor and pride to see the Indian tricolor go up and create history as India's first woman Olympic medallist . Years of sweat and blessings of my family , coaches and country. pic.twitter.com/bN3TygeTGW
सिडनी में अपने इवेंट की शुरुआत से ही वो टॉप एथलीट्स में शामिल रहीं. उन्होंने स्नैच कैटेगरी में अपनी लिफ्ट 110 किलो पर खत्म की. यह उनका पर्सनल बेस्ट था. जबकि क्लीन एंड जर्क में मल्लेश्वरी ने शुरुआत 125 किलो से की. और दूसरे प्रयास में 130 किलो उठाया. दो राउंड के बाद चाइना और हंगरी की लिफ्टर्स 242.5 किलो के साथ टॉप पर थीं. जबकि मल्लेश्वरी कुल 240 किलो के साथ मेडल की रेस में. और यहीं गड़बड़ हो गई. और इस गड़बड़ के चलते भारत को पहला व्यक्तिगत ओलंपिक्स गोल्ड मिलते-मिलते रह गया. इस बारे में मल्लेश्वरी ने बाद में कहा था,
'हम तीसरे प्रयास में ओलंपिक्स रिकॉर्ड के चक्कर में पड़ गए. तीसरे प्रयास में हमने 137.5 किलो का प्रयास करने की सोची. वजन कैल्कुलेट करने में गलती हुई, नहीं तो मैं गोल्ड जीत सकती थी.'
दरअसल मल्लेश्वरी अपने आखिरी प्रयास में 133 किलो उठाकर ही गोल्ड मेडल जीत सकती थीं. क्योंकि बाकी की दोनों लिफ्टर्स अपने आखिरी प्रयास में फेल हो गई थीं. लेकिन 137.5 का फेल प्रयास मल्लेश्वरी को ब्रॉन्ज़ मेडल जीतने से नहीं रोक पाया. कुल 240 किलो की लिफ्ट के साथ वह ओलंपिक्स मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं.
# ब्रॉन्ज़ के बाद क्या?
सिडनी 2000 ओलंपिक्स का ब्रॉन्ज़ मेडल मल्लेश्वरी के करियर का हाईपॉइंट माना जाता है. और नज़रिया बदल दें तो यही हाईपॉइंट मल्लेश्वरी के करियर का अंतिम पॉइंट भी है. इस ओलंपिक्स के बाद साल 2001 में मल्लेश्वरी के बेटे का जन्म हुआ. और फिर अगले ही साल मल्लेश्वरी के पिता नहीं रहे. बेटे के जन्म के चलते लिया ब्रेक कुछ लंबा ही खिंच गया. मल्लेश्वरी 2002 के कॉमनवेल्थ गेम्स में नहीं खेल पाईं.
उन्होंने 2004 के एथेंस ओलंपिक्स में हिस्सा जरूर लिया, लेकिन इन ओलंपिक्स में उनके हाथ कुछ नहीं लगा. दो अन्य भारतीय वेटलिफ्टर डोपिंग में फेल हुईं, इंटरनेशनल वेटलिफ्टिंग फेडरेशन ने 2004 से 2006 के बीच भारत को दो बार इंटरनेशनल कंपटिशन से बैन किया. और इन सबके बीच मल्लेश्वरी ने चुपचाप इस खेल को अलविदा कह दिया.