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रूस के टॉप-सीक्रेट डूम्सडे प्लेन में चोरी कैसे हो गई?

न्यूक्लियर हमला होने पर हवाई वॉर रूम की भूमिका में होते हैं डूम्सडे प्लेन.

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इल्यूशिन Il-86 रूसी रक्षा विभाग का सबसे सीक्रेट एयरक्राफ़्ट है. (गेटी इमेजेज़)
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स्वाति
10 दिसंबर 2020 (Updated: 10 दिसंबर 2020, 01:27 PM IST) कॉमेंट्स
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आज आपको बताएंगे एक चोरी की कहानी. ये कोई मामूली चोरी नहीं है. चोरी हुई है एक टॉप सीक्रेट मिलिटरी प्लेन के भीतर. उस विमान के अंदर, जिसे एक सुपरपावर कंट्री अपना डूम्सडे एयरक्राफ़्ट कहती है. मतलब, किसी दिन प्रलय आए, तो भी इस विमान पर उसका कोई असर नहीं पड़ेगा. उस देश के लीडर्स इस विमान में बैठकर आसमान से ही युद्ध संचालित कर सकेंगे. किस तरह के प्रलय की सोचकर तैयार किया गया है ये डूम्सडे प्लेन? क्या ख़ासियत है इसकी?
इतने टॉप सीक्रेट विमान में चोरी कैसे हुई?
बाइबल की एक अवधारणा है- डूम्सडे. माने, प्रलय का दिन. इस दुनिया के अस्तित्व का आख़िरी दिन. कैसा होगा वो दिन, इसका ज़िक्र है बुक ऑफ रिविलेशन में. ये क्रिश्चन बाइबल का फाइनल हिस्सा है. इसके 12वें अध्याय में कहानी है एक महिला और ड्रैगन की. महिला यानी वर्जिन मैरी, जो ईसा को जन्म देती हैं. उस बालरूप ईसा पर शैतानरूपी ड्रैगन हमला कर देता है. फिर होती है एक भयंकर लड़ाई. इसे कहते हैं- आमगेडन. यानी, ईश्वर और शैतान के बीच की निर्णायक लड़ाई. और ये लड़ाई होगी मेगिडो नाम की एक जगह पर.
क्या इस नाम की कोई जगह है दुनिया में? जी, है. इज़रायल में टेल मेगिडो नाम का एक शहर है. मान्यता है कि फाइनल जज़मेंट वाले दिन यहीं पर होगी आख़िरी लड़ाई. उस रोज़ ईश्वर सबका फैसला करेंगे. वो अपने सच्चे भक्तों को बचा लेंगे. और ईश्वर में आस्था न रखने वालों को यातना भोगने के लिए छोड़ दिया जाएगा.
Megiddo Israel
इज़रायल का मेगिडो शहर. (गूगल मैप्स)


ऐसा नहीं कि दुनिया के अंत की कल्पना बस ईसाई धर्म में हो. अलग-अलग धर्मों ने अपने-अपने हिसाब से इस अंत की कल्पना की है. इन धार्मिक कल्पनाओं से इतर एक और अनुमान है दुनिया के अंत का, जो ज़्यादा ठोस, ज़्यादा वस्तुनिष्ठ लगता है. ये आशंका जुड़ी है, न्यूक्लियर वॉर से.
आप जानते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका ने जापान पर ऐटम बम गिराया था. तब अकेले अमेरिका के पास ही ये हथियार था. मगर अब दुनिया के नौ देशों के पास न्यूक्लियर वेपन्स हैं. इन सबको मिलाकर दुनिया में हैं करीब 14 हज़ार न्यूक्लियर हथियार. इनमें से करीब 93 पर्सेंट अकेले अमेरिका और रूस के पास हैं. इतने हथियारों के होते हुए न्यूक्लियर वॉर की आशंका कभी शून्य नहीं हो सकती. 2018 में वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम ने एक सर्वे किया था. इसमें करीब 1,000 वर्ल्ड लीडर, बिज़नसमैन और इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स से बात की गई थी. इन लोगों ने माना कि उन्हें न्यूक्लियर वॉर सबसे बड़ा ख़तरा लगता है.
न्यूक्लियर हथियार बनाने के पीछे दो बड़ी वजहें होती हैं. पहला, आत्मरक्षा. दूसरा, अंतरराष्ट्रीय रसूख़. मगर परमाणु हथियार पा लेने का मतलब ये नहीं कि आप ऐसे किसी हमले से इम्यून हो गए. मुमकिन है कि कोई और न्यूक्लियर पावर्ड देश आप पर औचक हमला कर दे? ऐसी स्थिति में शायद ज़मीन पर स्थित सारा इन्फ्रास्ट्रक्चर ध्वस्त हो जाएगा. ग्राउंड-बेस्ड सारे कमांड सेंटर ख़त्म हो जाएंगे. आप जवाबी हमला करने की स्थिति में नहीं रहेंगे.
Nuclear Attack
जापान पर गिराए गए ऐटम बम के ऐसे कई दिल दहला देने वाले असर दिखे. (एएफपी)


अगर ऐसा हुआ, तो क्या होगा?
अगर किसी देश ने औचक हमला कर दिया, तो हमारी क्या स्ट्रैटजी होगी? ये सवाल न्यूक्लियर पावर्ड देशों की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है. और इन्हीं चिंताओं से निकलकर आया एक जवाब है- डूम्सडे प्लेन. इसे समझिए युद्ध का एक हवाई कमांड सेंटर. एयरबोर्न कमांड पोस्ट. इस विमान के पीछे आइडिया क्या है? आइडिया है, न्यूक्लियर अटैक की स्थिति में सरेंडर न हो जाना. ऐसा इंतज़ाम तैयार रखना कि औचक हमले की स्थिति में भी देश का सर्वोच्च नेता और उसके सैन्य विशेषज्ञ एक सुरक्षित जगह बैठकर युद्ध संचालित कर सकें. दुश्मन पर जवाबी हमला कर पाएं. युद्ध जारी रख सकें.
क्या ख़ासियत होती है डूम्सडे प्लेन्स की?
ये ख़ास डिजाइन और टेक्नॉलज़ी से लैस होते हैं. न्यूक्लियर हमले को भी झेल सकते हैं. किसी भी एयरफील्ड से उड़ान भर सकते हैं. इनमें मौजूद लाइफ़ सपोर्ट सिस्टम इन्हें कई दिनों तक हवा में बने रहने की क्षमता देता है. कॉकपिट पर लगे विंडशील्ड के अलावा इसमें कोई खिड़की नहीं होती. ताकि न्यूक्लियर धमाके से निकली रोशनी विमान में बैठे लोगों की आंखें न चौंधिया दे. आर्म्ड फोर्सेज़, फिर चाहे आर्मी हो या नेवी या एयरफोर्स, उन्हें कंट्रोल करने के लिए जिस-जिस चीज की ज़रूरत पड़ सकती है, सब होता है इस प्लेन में. ज़रूरत पड़ने पर ये समूची रक्षा व्यवस्था का वन-पॉइंट कमांड सेंटर बन सकता है.
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मौजूदा वक्त में डूम्सडे प्लेन सिर्फ अमेरिका और रूस के पास हैं. (गेटी इमेजेज़)


किन-किन देशों के पास है ये डूम्सडे प्लेन?
ये केवल दो देशों के पास है- अमेरिका और रूस. सबसे पहले ये प्लेन बनाया अमेरिका ने. बल्कि उसी ने इसे डूम्सडे प्लेन का नाम भी दिया. उसके पास इस श्रेणी के चार विमान हैं. इनका नाम है बोइंग-E4B उर्फ़ नाइटवॉच. इसको समझिए अमेरिका का बैकअप पेंटागन. जो कि ऑरिजनल पेंटागन से भी ज़्यादा सुरक्षित है. इन चारों विमानों को कहा जाता है अमेरिका का नैशनल एयरबोर्न ऑपरेशन्स सेंटर. इन्हें हैंडल करने की जिम्मेदारी है US एयरफोर्स की.
ये नाइटवॉच प्लेन्स 24 घंटे, 365 दिन ड्यूटी अलर्ट पर रहते हैं. इसमें करीब 112 लोगों के बैठने की व्यवस्था है. बिना ईंधन भरवाए ये 12 घंटे लगातार उड़ सकता है. इसके अंदर हवा में रहते हुए ही रिफ्यूलिंग की भी व्यवस्था है. इसकी वजह से ये बिना ज़मीन पर उतरे कई दिनों तक हवा में रह सकता है. इस विमान में तकरीबन 67 सैटेलाइट डिशेज़ और एंटेना लगे हैं. किसी भी तरह की स्थिति में इसका संचार सिस्टम ठप नहीं पड़ सकता. इन विमानों के पिछले हिस्से में एक पूंछनुमा एंटेना की व्यवस्था होती है. ज़रूरत होने पर ये एंटेना विमान के पीछे कुछ किलोमीटर तक फैल जाता है. इसके सहारे समंदर के नीचे ऐक्टिव पनडुब्बियों से भी संपर्क किया जा सकता है.
अब आते हैं रूसी डूम्सडे प्लेन्स पर. इनका नाम है, इल्यूशिन-80. ये प्लेन उसके इल्यूशिन II-86 विमानों को मोडिफ़ाई करके बनाए गए हैं. रूस के पास इस श्रेणी के चार विमान हैं. वो इन्हें इनविनसिबल, माने अजेय बताता है. मई 2010 में हुए सालाना रशियन विक्ट्री परेड में एक बार इसे जनता को दिखाया गया था. इसके अलावा ये बहुत दुर्लभ ही लोगों को नज़र आते हैं.
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अमेरिकी डूम्सडे प्लेन बोइंग-E4B (गेटी इमेजेज़)


रूस ने जिन इल्यूशिन विमानों को अपग्रेड करके ये डूम्सडे प्लेन बनाया है, उन्होंने मई 1985 में पहली बार उड़ान भरी थी. ये अब 35 बरस के हो गए हैं. इसीलिए 2025 तक इन्हें रिप्लेस किया जाना है. अबकी इल्यूशिन II-96 मॉडल के विमानों को मोडिफ़ाई करके ज़्यादा उन्नत डूम्सडे प्लेन बनाए जाएंगे.
आप कहेंगे कि हम आज ये सब क्यों बता रहे हैं आपको?
इसलिए बता रहे हैं कि रूस के डूम्सडे प्लेन से जुड़ी एक ख़बर आई है. इस अति टॉप-सीक्रेट मिलिटरी विमान के भीतर एक चोरी हो गई है. वो भी एक हाई-सिक्यॉरिटी मिलिटरी एयरफील्ड के भीतर से.
रूस के दक्षिण-पश्चिम में तगनरोग नाम का एक शहर है. यहां पर है रूसी वायुसेना का एक हाई-सिक्यॉरिटी परिसर. यहीं पर मेंटेनेस के लिए भेजा गया था उसका एक डूम्सडे प्लेन. 26 नवंबर को जब इसका निरीक्षण हुआ, तो सब ठीक था. मगर फिर 4 दिसंबर को हुए इंस्पेक्शन में अधिकारियों को सेंधमारी के निशान मिले. पता चला कि कार्गो हैच के रास्ते कुछ लोग विमान में घुसे और चोरी की.
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रूस के दक्षिण-पश्चिम का शहर तगनरोग. (गूगल मैप्स)


क्या चुराया?
विमान के भीतर लगे रेडियो उपकरण के 39 पुर्जे और पांच रेडियो बोर्ड. इनमें से कई उपकरण गोल्ड और प्लैटिनम जैसी महंगी धातुओं से बने हैं. इनकी कुल कीमत करीब 10 लाख रुपये बताई जा रही है. 4 दिसंबर को ही स्थानीय पुलिस ने इस मामले में केस दर्ज कर लिया. उन्हें अपनी तफ़्तीश में कुछ फिंगरप्रिंट और जूतों के निशान मिले हैं. मगर इस मामले में अभी तक कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई है.
रूस ने आधिकारिक तौर पर क्या कहा इस चोरी पर?
उसके आंतरिक मामलों के मंत्रालय ने इस चोरी की पुष्टि की. बताया कि क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन चालू है. क्रेमलिन का भी बयान आया इसपर. उसके प्रवक्ता हैं दिमित्री पेसकोव. प्रेस ब्रीफिंग के दौरान उन्होंने पत्रकारों से कहा कि ये गंभीर घटना है. इसकी न केवल जांच होगी, बल्कि आगे इस तरह का वाकया न हो, इसके भी पुख़्ता इंतज़ाम किए जाएंगे.
Dmitry Peskov Statement
दिमित्री पेसकोव और उनका बयान. (एएफपी)


इस चोरी का मतलब क्या है?
इसका मतलब है, रूस की किरकिरी. ये डूम्सडे प्लेन रूसी रक्षा विभाग का सबसे सीक्रेट एयरक्राफ़्ट है. चोरों का मिलिटरी कंपाउंड में घुसकर इस तरह चोरी कर लेना रूसी सैन्य प्रतिष्ठानों की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाता है. वो अपने हथियारों पर अंधाधुंध ख़र्च कर रहा है. साल 2000 से 2019 तक रूस का सैन्य ख़र्च 175 फीसद बढ़ गया है. जबकि पिछले नौ सालों के दौरान अमेरिका के सैन्य ख़र्च में 15 पर्सेंट की गिरावट आई.
इस तुलना से आपको अंदाज़ा लग गया होगा कि रूस अपने हथियारों पर कितना ख़र्च कर रहा है. लेकिन तब भी हालत ये है कि उसके सबसे सीक्रेट विमान पर चोर हाथ साफ कर जा रहे हैं. सोचिए, जिस विमान पर न्यूक्लियर हमले के वक़्त देश की जवाबी सैन्य कार्रवाई को संचालित करने का दारोमदार हो, उसकी सुरक्षा में कितनी लापरवाही बरतता है रूस. चोर रेडियो उपकरण ले गए. क्या गारंटी है कि कोई विमान में लगे बेहद सेंसेटिव उपकरणों को नहीं चुरा सकता था. अगर ये मशीनरी ग़लत हाथों में पड़ती, तो उसका खामियाज़ा काफी गंभीर हो सकता था.

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