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हम इतना समझते हैं कि समझने से डरते हैं

आज है मूर्ख दिवस, पढ़िए इस मौके पर समझदारों का गीत...

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अविनाश
1 अप्रैल 2017 (Updated: 1 अप्रैल 2017, 05:09 AM IST)
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आज मूर्ख दिवस है, इस मौके पर एक कविता रोज़ में पढ़िए समझदारों का गीत. इसे रचा है क्रांतिकारी कवि गोरख पांडेय ने... 

समझदारों का गीत

हवा का रुख कैसा है, हम समझते हैं हम उसे पीठ क्यों दे देते हैं, हम समझते हैं हम समझते हैं ख़ून का मतलब पैसे की कीमत हम समझते हैं क्या है पक्ष में विपक्ष में क्या है, हम समझते हैं हम इतना समझते हैं कि समझने से डरते हैं और चुप रहते हैं चुप्पी का मतलब भी हम समझते हैं बोलते हैं तो सोच-समझ कर बोलते हैं हम हम बोलने की आजादी का मतलब समझते हैं टुटपुंजिया नौकरी के लिए आज़ादी बेचने का मतलब हम समझते हैं मगर हम क्या कर सकते हैं अगर बेरोज़गारी अन्याय से तेज़ दर से बढ़ रही है हम आज़ादी और बेरोज़गारी दोनों के ख़तरे समझते हैं हम ख़तरों से बाल-बाल बच जाते हैं हम समझते हैं हम क्यों बच जाते हैं, यह भी हम समझते हैं हम ईश्वर से दुखी रहते हैं अगर वह सिर्फ़ कल्पना नहीं है हम सरकार से दुखी रहते हैं कि समझती क्यों नहीं हम जनता से दुखी रहते हैं कि भेड़ियाधसान होती है हम सारी दुनिया के दुख से दुखी रहते हैं हम समझते हैं मगर हम कितना दुखी रहते हैं यह भी हम समझते हैं यहां विरोध ही वाजिब क़दम है हम समझते हैं हम क़दम-क़दम पर समझौते करते हैं हम समझते हैं हम समझौते के लिये तर्क गढ़ते हैं हर तर्क गोल-मटोल भाषा में पेश करते हैं, हम समझते हैं इस गोल-मटोल भाषा का तर्क भी हम समझते हैं वैसे हम अपने को किसी से कम नहीं समझते हैं हर स्याह को सफे़द औरसफ़ेद को स्याह कर सकते हैं हम चाय की प्यालियों में तूफ़ान खड़ा कर सकते हैं करने को तो हम क्रांति भी कर सकते हैं अगर सरकार कमज़ोर हो और जनता समझदार लेकिन हम समझते हैं कि हम कुछ नहीं कर सकते हैं हम क्यों कुछ नहीं कर सकते हैं यह भी हम समझते हैं... ***

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