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'स्लो सुसाइड यानी एक आराम की मौत मर रहे हैं लोग'

शिव कुमार बटालवी के लिखे गीत बॉलीवुड में इतने यूज़ हुए हैं कि दो तीन गीतकार तो उनको कॉपी करके ही फेमस हो गए.

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6 मई 2020 (Updated: 6 मई 2020, 07:51 AM IST)
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आज शिव कुमार बटालवी (23 जुलाई 1936 - 06 मई 1973) का जन्मदिन है. इन्हें आज भी पंजाब में सुपरस्टार का दर्जा मिला हुआ है. पहला और शायद एकमात्र सुपर स्टार शायर. जैसे बॉलीवुड के राजेश खन्ना.
उस शायर के लिखे हुए गीत - अज्ज दिन चढ्या, इक कुड़ी जिद्दा नां मुहब्बत, मधानियां, लट्ठे दी चादर, अंख काशनी आदि आज भी न केवल लोगों की जुबां पर हैं बल्कि बॉलीवुड भी इन्हें समय समय पर अपनी फिल्मों को हिट करने के लिए यूज़ करता आ रहा है. नुसरत फतेह अली, महेंद्र कपूर, जगजीत सिंह, नेहा भसीन, गुरुदास मान, आबिदा, हंस राज हंस.... ...पंजाब और पाकिस्तान से जुड़ा ऐसा कोई गायक कोई कलाकार नहीं जिसने शिव के गीतों को अपनी आवाज़ न दी हो. शिव कुमार बटालवी के BBC को दिए इस इन्टरव्यू को देखते हुए आपको इस बिरह के सुल्तान से प्रेम न हो जाए तो कहिएगा. एक जगह वो बड़े ही मासूम ढ़ंग से पूछ रहे हैं,”तो मैं क़ताब(किताब) उठा लूं?”:
एक प्रश्न के उत्तर में वे कहते हैं,"आदमी, जो है, वो एक धीमी मौत मर रहा है. और ऐसा हर इंटेलेक्चुअल के साथ हो रहा है, होगा."“असां ते जोबन रुत्ते मरना...” यानी “मुझे यौवन में मरना है, क्यूंकि जो यौवन में मरता है वो फूल या तारा बनता है, यौवन में तो कोई किस्मत वाला ही मरता है” कहने वाले शायर की ख़्वाहिश ऊपर वाले ने पूरी भी कर दी. मात्र छत्तीस वर्ष की उम्र में शराब, सिगरेट और टूटे हुए दिल के चलते 7 मई 1973 को वो चल बसे. लेकिन, जाने से पहले शिव 'लूणा' जैसा महाकाव्य लिख गये, जिसके लिए उन्हें सबसे कम उम्र में साहित्य अकादमी का पुरूस्कार दिया गया. मात्र इकतीस वर्ष की उम्र में. 'लूणा' को पंजाबी साहित्य में ‘मास्टरपीस’ का दर्ज़ा प्राप्त है और जगह जगह इसका नाट्य-मंचन होता आया है. ज़्यादा पुराने न होते हुए भी उनके गीतों को भारत और पाकिस्तान में लोकगीत का दर्जा मिला हुआ है. वहीं दूसरी ओर ये गीत नए संस्करणों, नई आवाजों, नए संगीत  के साथ बार बार हमारे सामने आते रहे हैं. आईये पंजाबी में लिखी उनकी एक ग़ज़ल ‘मैंनूं तेरा शबाब ले बैठा’, जिसे जगजीत ने भी गाया है, का हिंदी अनुवाद आपको पढ़वाते हैं:
मुझको तेरा शबाब ले बैठा, रंग गोरा, गुलाब ले बैठा.कितनी पी ली, कितनी बाकी है, मुझको यही हिसाब ले बैठा.अच्छा होता सवाल न करता, मुझको तेरा जवाब ले बैठा.फुर्सत जब भी मिली है कामों से, तेरे मुख की किताब ले बैठा.मुझे जब भी तुम हो याद आए, दिन दहाड़े शराब ले बैठा.
ये रही जगजीत की मखमली आवाज़ में यही ग़ज़ल:

विडियो- एक कविता रोज: जब वहां नहीं रहता

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