एक कविता रोज़ : मंगलेश डबराल की कविता ‘अत्याचारियों के प्रमाण’
उसके नाखून या दाँत लंबे नहीं हैं/आँखें लाल नहीं रहतीं/बल्कि वह मुस्कराता रहता है
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फोटो - thelallantop
टिहरी गढ़वाल में जन्मे मंगलेश डबराल की कविताओं पर हमारा उतना ही हक़ है जितना किसी को अपनी पुरखे की पुरानी कुर्सी पर होता है. हाल ही में वो हमें छोड़कर चले गए. उनका जाना सिर्फ़ मंगलेश डबराल का या फिर एक कवि का जाना नहीं था. उनका जाना, सिर से पुरखों का हाथ उठ जाना था. जैसे कोई सालों पुराना बरगद अचानक से ओझल हो जाए और उसकी शाखों-टहनियों पर खेलने को बच्चे तरसें. मंगलेश डबराल के जाने के बाद ऐसा ही कुछ हिन्दी साहित्य के साथ हो रहा है. इस मौके पर आपको उनकी एक कविता 'अत्याचारी के प्रमाण' सुनाते हैं.