दिल अगर है तो दर्द भी होगा, उसका कोई नहीं है हल शायद
दिन गुलज़ार में जल्द ही आ रही किताब 'कुछ तो कहिये' की चार रचनाएं पढ़िए.


शीघ्र प्रकाश्य
गुलज़ार! वो जो किसी की कमर के बल पर नदी को मोड़ देता है. वो जो किसी की हंसी सुनवा के फ़सलों को पकवा देता है. वो जो गोरा रंग देकर काला हो जाना चाहता है. वो जिसका दिल अब भी बच्चा है. वो जिसके ख्वाब कमीने हैं. वो जो ठहरा रहता है और ज़मीन चलने लगती है. वो जिसकी आंखों को वीज़ा नहीं लगता. वो जो सांसों में किमाम की खुशबू लिए घूमता है. वो जिसका आना गर्मियों की लू हो जाता है. वो जो दिन निचोड़ रात की मटकी खोल लेता है. वो जो आंखों में महके हुए राज़ खोज लेता है. वो जो बिस्मिल है. वो जो बहना चाहता है. वो जो हल्के-हल्के बोलना चाहता है. वो जिसने कभी चाकू की नोक पर कलेजा रख दिया था. वो जो है तो सब कोरमा, नहीं हो तो सत्तू भी नहीं. वो जिसे अब कोई इंतज़ार नहीं. आज जन्मदिन है. गुलज़ार के शीघ्र प्रकाश्य संग्रह ‘कुछ तो कहिये...’ से चार रचनाएं हम आपके लिए लाए हैं. शुक्रिया वाणी प्रकाशन का. जिनके सौजन्य से ये रचनाएं हमें मिल सकीं.
1
कोई अटका हुआ है पल शायदवक़्त में पड़ गया है बल शायद
दिल अगर है तो दर्द भी होगाउसका कोई नहीं है हल शायद
कश्ती काग़ज़ की बहते पानी मेंकोई मिल जाये, पार चल शायद
सब्र के पत्ते सख़्त कड़वे हैंसब्र का होगा मीठा फल शायद
राख को भी कुरेदकर देखोअब भी जलता हो कोई पल शायद
2
तुझको देखा है जो दरया ने इधर आते हुए
कुछ भंवर डूब गये पानी में चकराते हुए
हमने तो रात को दांतों से पकड़कर रक्खाछीना-झपटी में उफ़क़ खुलता गया जाते हुए
मैं ना हूंगा तो ख़िज़ां कैसे कटेगी तेरीशोख़ पत्ते ने कहा शाख़ से मुर्झाते हुए
हरसतें अपनी बिलखतीं न यतीमों की तरहहमको आवाज़ ही दे लेते ज़रा, जाते हुए
सी लिए होंठ, वो पाकीज़ा निगाहें, सुनकरमैली हो जाती है आवाज़ भी, दोहराते हुए
3
खुली किताब के सफ़हे उलटते रहते हैं हवा चले न चले, दिन पलटते रहते हैंबस एक वहशते-मंज़िल है और कुछ भी नहींकि चंद सीढियां चढ़ते-उतरते रहते हैंमुझे तो रोज़ कसौटी पे दर्द कसता है कि जां से जिस्म के बखिये उधड़ते रहते हैंकभी रुका नहीं कोई मुक़ाम सहरा मेंकि टीले पांव तले से सरकते रहते हैंये रोटियां हैं, ये सिक्के हैं और दायरे हैंये एक-दूजे को दिन-भर पकड़ते रहते हैंभरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आंखों मेंउजाला हो तो हम आंखें झपकते रहते हैं
4
राख में सो गई, हिलाओ ज़राआग रौशन हो, गुदगुदाओ ज़रा
आफ़ताब एक उठा के लायें चलोमैं भी चलता हूं, तुम भी आओ ज़रा
रौशनी का कोई वसीला बनेघुप अंधेरा है, मुस्कुराओ ज़रा
नाम अपना बताऊंगा, पहलेअपना मज़हब मुझे बताओ ज़रा
एक ओंकारा, ला इलाह इलल्लाहसूफ़ियों संग गुनगुनाओ ज़रा