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पेट की ये बीमारी हो गई तो जिंदगीभर खानी पड़ेगी दवा!

इस बीमारी में इम्यून सिस्टम अपनी ही आंतों पर हमला बोल देता है.

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अल्सरेटिव कोलाइटिस में बड़ी आंत पर असर पड़ता है
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18 जनवरी 2022 (Updated: 18 जनवरी 2022, 18:11 IST)
Updated: 18 जनवरी 2022 18:11 IST
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(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

मदन 27 साल के हैं. जबलपुर के रहने वाले हैं. उन्हें अल्सरेटिव कोलाइटिस है. ये पेट की एक बीमारी है. आसान भाषा में समझें तो इसमें इंसान की बड़ी आंत को नुकसान पहुंचता है. कुछ महीने पहले मदन को पेट में दर्द शुरू हुआ. मल के साथ खून आने लगा. उन्हें दिन में कई बार स्टूल पास होता था. उनके जोड़ों में दर्द शुरू हो गया. वज़न गिरने लगा. टेस्ट होने पर अल्सरेटिव कोलाइटिस का पता चला.
मदन बताते हैं कि इसका इलाज ज़िंदगीभर चलेगा. उन्हें हमेशा दवा खाने की सलाह दी गई है. वो चाहते हैं हम अल्सरेटिव कोलाइटिस पर एक एपिसोड बनाएं. ये क्या होता है, क्यों हो जाता है, इसका कोई और इलाज है क्या, डॉक्टर से बात करके ये जानकारी लोगों तक पहुंचाएं. तो सबसे पहले समझ लेते हैं अल्सरेटिव कोलाइटिस क्या है? अल्सरेटिव कोलाइटिस क्या होता है? ये हमें बताया डॉक्टर पंकज पुरी ने.
Dr Pankaj Puri - Medx Health Assistance डॉक्टर पंकज पुरी, डायरेक्टर, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, फ़ोर्टिस, नई दिल्ली


-दो तरह की इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज होती हैं.
-क्रॉन्स डिजीज और अल्सरेटिव कोलाइटिस.
-क्रॉन्स डिजीज में छोटी आंत और बड़ी आंत दोनों पर असर पड़ता है.
-अल्सरेटिव कोलाइटिस में बड़ी आंत पर असर पड़ता है. लक्षण -मल में खून आता है.
-दिन में कई बार मल होता है.
-मल पास करने के लिए बहुत कोशिश करनी पड़ती है, दर्द होता है.
-आंव के साथ खून आता है.
-रात में भी कई बार मल होता है.
-शरीर में खून कम हो जाता है.
-जोड़ों में दर्द होता है.
-पीठ में दर्द होता है.
-आंखें लाल रहती हैं.
-अल्सरेटिव कोलाइटिस एक ऑटोइम्यून बीमारी है.
-अल्सरेटिव कोलाइटिस के साथ-साथ और ऑटोइम्यून बीमारियां हो सकती हैं.
-जैसे लिवर की बीमारी PSC.
-गठिया.
Differences Between Ulcerative Colitis and Crohn's Disease - Elitecare Emergency Hospital मल पास करने के लिए बहुत कोशिश करनी पड़ती है, दर्द होता है

कारण -शरीर का इम्यून सिस्टम बीमारियों और कीटाणु से लड़ने के लिए बना होता है.
-इस बीमारी में शरीर का इम्यून सिस्टम खुद पर ही हमला बोल देता है.
-उसे अपनी आंत पराई आंत लगने लगती है.
-शरीर का इम्यून सिस्टम अपनी ही आंत को चोट पहुंचाना शुरू कर देता है.
-इसलिए आंतें छिल जाती हैं.
-उनसे खून निकलने लगता है.
-क्रॉन्स डिजीज में आंतों पर रुक-रूककर असर पड़ता है.
-अल्सरेटिव कोलाइटिस में लगातार नुकसान पहुंचता रहता है.
-बीच में स्किप नहीं होता.
-ये नुकसान रेक्टल से शुरू होकर ऊपर तक पहुंचता है.
-अलग-अलग पेशेंट्स में अलग-अलग स्तर पर नुकसान पहुंचता है.
-कुछ लोगों में केवल 5-10 सेंटीमीटर ही नुकसान पहुंचता है.
-कई लोगों में पूरी बड़ी आंत पर असर पड़ता है.
Ulcerative Colitis शरीर का इम्यून सिस्टम अपनी ही आंत को चोट पहुंचाना शुरू कर देता है


-पूरी बड़ी आंत पर घांव पड़ जाते हैं.
-इससे ब्लीडिंग होती है और बार-बार मल होता है.
-इस बीमारी होने के पीछे कई थ्योरी हैं.
-पर कोई एक कारण बताना मुश्किल है.
-शरीर में जींस होते हैं.
-जींस इस बीमारी में बड़ा रोल प्ले करते हैं.
-पर ज़रूरी नहीं है कि ऐसे जींस होने पर अल्सरेटिव कोलाइटिस हो ही.
-अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए जेनेटिक फैक्टर, वातावरण, खाना-पीना, इन्फेक्शन जैसे कारण ज़िम्मेदार हैं.
-एक बार अल्सरेटिव कोलाइटिस हो जाए तो जिंदगीभर दवाई खानी पड़ती है. डायग्नोसिस -सबसे पहले देखा जाता है कि लक्षण किस बीमारी के साथ आ रहे हैं.
-आमतौर पर मल में खून आएगा.
-दिन में 5-10 बार मल होगा.
-रात में भी उठने की ज़रूरत पड़ती है.
-खून के साथ आंव आएगी.
-कई बार केवल खून के साथ आंव आएगी, मल नहीं होगा.
-अल्सरेटिव कोलाइटिस के साथ और ऑटोइम्यून बीमारियां होंगी.
-जांच करने के लिए सबसे ज़रूरी टेस्ट है कोलोनोस्कोपी.
-इसमें एक एंडोस्कोप मल के रास्ते शरीर में डाला जाता है और अंदर देखा जाता है.
Ulcerative colitis and a missing microbe in the gut एक बार अल्सरेटिव कोलाइटिस हो जाए तो जिंदगीभर दवाई खानी पड़ती है


-पहली बार एंडोस्कोपी अल्सरेटिव कोलाइटिस में तब की जाती है जब पुख्ता तौर पर पता करना हो.
-देखा जाता है कि आंतों पर कितने और किस तरह के घांव हैं.
-फिर बायोप्सी की जाती है.
-आंत का एक छोटा सा टुकड़ा लेकर जांच के लिए भेजा जाता है.
-उसे माइक्रोस्कोप के नीचे देखा जाता है.
-फिर अल्सरेटिव कोलाइटिस का पक्के तौर पर पता चलता है.
-कोलोनोस्कोपी बाद में भी की जाती है.
-अगर पेशेंट को दवाई लेने के बाद भी मल में खून आए या दिक्कत हो.
-तो स्क्रीनिंग कोलोनोस्कोपी की जाती है.
-इसमें देखा जाता है कि कहीं कैंसर तो नहीं हो गया.
-या कोई और इन्फेक्शन तो नहीं हो रहे.
-डायग्नोसिस लक्षण, कोलोनोस्कोपी और बायोप्सी पर निर्भर करता है. इलाज -इस बीमारी का इलाज गोलियां हैं.
-मेन इलाज का नाम है 5 ASA.
-इनके ऊपर शरीर की इम्युनिटी कम करने के लिए दवाइयां दी जाती हैं.
-जैसे स्टेरॉयड और बाकी दवाइयां.
-ये दवाइयां काफ़ी स्ट्रोंग होती हैं.
-गोलियां खाकर पेशेंट नॉर्मल ज़िंदगी जी सकता है.
-जैसे ब्लड प्रेशर के पेशेंट नॉर्मल ज़िंदगी जी पाते हैं.
अल्सरेटिव कोलाइटिस का इलाज संभव है, पर हां जैसे डॉक्टर साहब ने बताया इसकी दवाइयां जीवनभर खानी पड़ती हैं. ठीक वैसे ही जैसे ब्लड प्रेशर यानी हाइपरटेंशन के पेशेंट्स को कहानी पड़ती हैं. पर इन दवाइयों की मदद से लक्षणों पर कंट्रोल किया जा सकता है. इसलिए अगर आपको अल्सरेटिव कोलाइटिस के लक्षण महसूस हों तो देरी न करें. डॉक्टर से मिलें और टेस्ट करवाएं. सही समय पर इलाज लेना बेहद ज़रूरी है.

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