(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
प्रदीप की शादी को तीन साल हो गए हैं. वो और उनकी पत्नी काफ़ी समय से प्रेग्नेंसी प्लान कर रहे थे. जून के महीनें में उन्हें पता चला उनकी पत्नी प्रेग्नेंट हैं. वो और उनका परिवार बहुत ख़ुश था. सब उनकी पत्नी की सेहत का काफ़ी ख्याल रखते थे. उनका खाना-पीना, सेहत, बाकी ज़रूरतों का ख़ास ख्याल रखा जाता. पर कुछ महीने पहले उन्होंने अपनी पत्नी में एक बदलाव देखा. वो काफ़ी उदास रहतीं. उनका कुछ खाने-पीने का मन नहीं करता. यहां तक कि जो चीज़ें उन्हें करना पसंद थीं, उनमें भी उनका मन नहीं लगता.
प्रदीप बताते हैं कि उनकी पत्नी को काफ़ी गुस्सा आने लगा है. पहले सबको लगा कि प्रेग्नेंसी के कारण उनका मूड बदलता रहता है. वैसे भी प्रेग्नेंसी के दौरान शरीर में हॉर्मोनल बदलाव होता है, जिसके कारण औरतों के मूड, स्वभाव पर असर पड़ता है. पर दो महीने पहले प्रदीप को अहसास हुआ कि बात इतनी सिंपल नहीं है. उनकी पत्नी ने अपना ध्यान रखना एकदम बंद कर दिया. उल्टा वो कुछ ऐसी चीज़ें करतीं जो उनकी और उनके बच्चे की सेहत को नुकसान पहुंचा सकती थीं.
प्रदीप अपनी पत्नी को डॉक्टर के पास लेकर गए. एक मनोचिकत्सक को दिखाया. पता चला उनकी पत्नी प्रीनेटल डिप्रेशन से जूझ रही हैं. अब आपने डिप्रेशन के बारे में तो काफ़ी सुना होगा. पर ये प्रीनेटल डिप्रेशन क्या है?
ये ऐसा डिप्रेशन है जो प्रेग्नेंसी के दौरान होता है. ये काफ़ी आम भी है. प्रदीप चाहते हैं हम सेहत पर प्रीनेटल डिप्रेशन के बारे में बात करें. इसके कारण, लक्षण, बचाव और इलाज जैसी चीज़ें डॉक्टर से पूछकर अपने शो पर बताएं ताकि और लोग जो इस सिचुएशन में हैं, उनको मदद मिल सके.
हमने पोस्टपार्टम डिप्रेशन के बारे में पहले बात की है. पोस्टपार्टम डिप्रेशन यानी वो डिप्रेशन जो डिलीवरी के बाद औरतों को होता है. प्रीनेटल डिप्रेशन इससे अलग है. अगर इसका पता सही समय पर न चले, तो इससे मां और बच्चे दोनों की सेहत पर असर पड़ सकता है. इसलिए ज़रूरी है कि प्रीनेटल डिप्रेशन के बारे में लोगों को जानकारी को. प्रेग्नेंसी के दौरान अगर मां उदास रहती है तो उसे केवल हॉर्मोन्स या प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली आम चीज़ न समझा जाए. तो डॉक्टर्स से सबसे पहले जानते हैं प्रीनेटल डिप्रेशन क्या है और क्यों होता है.
प्रीनेटल डिप्रेशन क्या है?
ये हमें बताया डॉक्टर परमजीत सिंह ने.

-आमतौर पर समाज में सभी मानते हैं कि प्रेग्नेंसी हर्षोल्लास का समय है.
-हर महिला को प्रेग्नेंसी के समय ख़ुशी का अनुभव होता होगा.
-मोटे तौर पर शायद ऐसा होता भी है.
-पर प्रीनेटल डिप्रेशन एक बीमारी है.
-ये ख़ास तरह का डिप्रेशन है जो प्रेग्नेंसी या गर्भ धारण के समय महिलाओं को महसूस होता है.
-प्रीनेटल डिप्रेशन लगभग 7 से 10 प्रतिशत महिलाओं को होता है.
-इस बीमारी का सही समय पर निदान और इलाज न किया जाए तो ये मां और बच्चे की सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है.
कारण
-प्रीनेटल डिप्रेशन के पीछे कई जटिल कारण होते हैं.
-ये जेनेटिक, शारीरिक, ब्रेन की बनावट, ब्रेन में मौजूद न्यूरोकेमिकल (ब्रेन में मौजूद केमिकल), इन सबके मिले-जुले प्रभाव के कारण होता है.
-इन कारणों के साथ-साथ, इंसान की पर्सनालिटी, सामाजिक परिस्थिति का भी बड़ा हाथ होता है.
-इन तीनों के मिले-जुले प्रभाव से प्रीनेटल डिप्रेशन होता है.

-यहां हम उदासी नहीं, उदासी की बीमारी के बारे में बात कर रहे हैं.
-प्रीनेटल डिप्रेशन की शुरुआत मिले-जुले कारणों से होती है.
-पर कुछ महिलाओं में ये ज़्यादा आम है.
-जैसे उन महिलाओं में जिन्होंने अपनी प्रेग्नेंसी प्लान नहीं की हो.
-वो मांएं जो अपने बच्चों को अकेले पालेंगी यानी सिंगल मदर.
-घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं.
-जिन महिलाओं को एंग्जायटी या डिप्रेशन की बीमारी हो चुकी है.
-इन कुछ ख़ास ग्रुप्स का ख़ास ध्यान रखना ज़रूरी है.
लक्षण
-जब किसी महिला को प्रीनेटल डिप्रेशन होता है तो उसका मन हर समय या ज़्यादतर उदास रहता है.
-कोई भी पसंदीदा चीज़ उसके मन को ठीक नहीं कर पाती.
-परिवारवाले बात करने की कोशिश करें, कोई अच्छी खाने की चीज़ दें तो भी मन में वो ख़ुशी नहीं महसूस होती.
-काफ़ी महिलाओं में ये उदासी घबराहट और चिड़चिड़ेपन के साथ होती है.
-छोटी-छोटी बात पर झुंझुला जाना, चिड़चिड़ा जाना.
-इसी के साथ बहुत कमज़ोरी महसूस होती है.

-नींद न आना.
-भूख न लगना.
-छोटी-छोटी बातों में आंसू आ जाना.
-नेगेटिव ख्याल आना.
-नाउम्मीदी महसूस करना.
-प्रीनेटल डिप्रेशन में काफ़ी गिल्ट महसूस होता है, अपनी तरफ़, अपने होने वाले बच्चे की तरफ़, परिवार की तरफ़.
-कॉन्फिडेंस कम हो जाना.
-अगर बीमारी को सही समय पर पहचाना न जाए या इलाज न किया जाए तो ख़ुदख़ुशी के विचार भी आ सकते हैं.
-इन लक्षणों को देखकर प्रीनेटल डिप्रेशन का पता जल्दी लगाया जा सकता है.
बचाव
-बीमारी से बचने के लिए बीमारी को और इंसान को समझना ज़रूरी है.
-कुछ रिस्क फैक्टर्स हैं. जैसे प्रेग्नेंसी की प्लानिंग बेहतर हो.
-महिला को बेहतर पोषण दिया जाए.
-परिवार बेहतर तरह से सपोर्ट करे.
-पति प्रेग्नेंसी से पहले और इसके दौरान अंडरस्टैंडिंग हो.
-डॉक्टर से चेकअप सही समय पर करवाया जाए.

-जिन महिलाओं को पहले से डिप्रेशन या एंग्जायटी की शिकायत है, उनका इलाज किया जाए.
-परिवार के माहौल को बेहतर रखा जाए.
-इन सब चीज़ों से प्रीनेटल डिप्रेशन से बचा जा सकता है.
-सप्लीमेंट्स समय से महिलाओं को दिए जाएं.
इलाज
-प्रीनेटल डिप्रेशन का इलाज संभव है.
-प्रीनेटल डिप्रेशन के पहले चरण में काउंसलिंग की जाती है यानी बात-चीत की जाती है.
-इंसान की समझ के ढांचे को जाना जाता है.
-उसमें मामूली बदलाव के ज़रिए उसे पॉजिटिव बनाया जा सकता है.
-सोच में मौजूद कॉग्निटिव एरर (ग़लत सोच) को पहचाना जा सकता है.
-ये काम मनोचिकत्सक या मनोविज्ञानिक कर सकते हैं.
-हर बार दवाई देना अनिवार्य नहीं है.

-इसका इलाज बातचीत से भी किया जा सकता है.
-पर अगर डॉक्टर को लगता है कि दवाइयां दी जाएं तो कई सेफ़ दवाइयां उपलब्ध हैं जो प्रेग्नेंसी के दौरान दी जा सकती हैं.
-10-15 सालों पहले ऐसी दवाइयां कम उपलब्ध थीं जो प्रेग्नेंसी में सेफ़ली दी जा सकें.
-अभी प्रेग्नेंसी में एंटीडिप्रेसेंट और कुछ और दवाइयां दी जा सकती हैं जो प्रीनेटल डिप्रेशन का इलाज कर सकती हैं बिना नुकसान पहुंचाए.
-इलाज से डरे नहीं.
-डॉक्टर के पास जाएं.
-डिस्कस करें और अपने लिए बेहतर इलाज ढूंढें.
-इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है.
प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं के शरीर में काफ़ी बदलाव हो रहे होते हैं. उसका असर उनके मूड पर भी पड़ता है. पर अगर डॉक्टर साहब के बताए गए लक्षण आप महसूस कर रहे हैं या आप किसी ऐसी महिला को जानते हैं जिनमें ये लक्षण दिख रहे हैं, तो प्रोफेशनल मदद ज़रूर लें. इन्हें इग्नोर न करें. सही समय पर सही इलाज मिलने से प्रीनेटल डिप्रेशन को ठीक किया जा सकता है.
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